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स्पेशल: बिना केमिकल का उपयोग किए गन्ने के रस से बनाया जा रहा गुड़, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में होता है कारगर

सर्दी बढ़ने के साथ ही भीलवाड़ा के मांडलगढ़ और मांडल क्षेत्र में गन्ने के रस से गुड़ बनाने का काम शुरू हो गया है. यहां बिना केमिकल और सोडा का यूज किए गुड़ बनाया जा रहा है. इस बार कोरोना के चलते किसान गन्ने की उपज बाहर न बेचकर उनका गुड़ बनाकर बेच रहे हैं. किसानों का कहना है कि बिना केमिकल से बने इस गुड़ को खाने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकती है.

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भीलवाड़ा में बड़े पैमाने पर बन रहा गुड़

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Published : Dec 4, 2020, 9:58 AM IST

भीलवाड़ा.गन्ने की खेती करने वाले किसानों ने सर्दी के बीच गन्ने की कटाई शुरू कर दी है. भीलवाड़ा के मांडलगढ़ और मांडल एरिया में सैकड़ों किसान गन्ने की बुवाई करते हैं. उपज की आवक शुरू होने के साथ ही गन्ने से जूस निकालकर, बिना केमिकल युक्त गुड़ बनाया जाता है.

भीलवाड़ा में बड़े पैमाने पर बन रहा गुड़

ईटीवी भारत की टीम गन्ने के रस से गुड़ बनाने वाले किसानों के पास पहुंची. जहां किसानों ने बातचीत करते हुए कहा कि इस बार कोरोना के चलते हमारी उपज को दूसरे राज्य और दूसरे जिलों में नहीं बेच पा रहे हैं. यहां गन्ने से रस निकालकर बिना केमिकल और सोडा का यूज किए गुड़ बना रहे हैं. गुड़ शुद्ध और विश्वसनीय होने के कारण लोग खूब पसंद कर रहे हैं.

खेत से निकला हुआ गन्ना

क्या कहना है गुड़ बनाने वालों का?

गुड़ बना रहे फतेह लाल ने कहा कि एक बीघा फसल में 200 से 300 क्विंटल गन्ने की उपज होती है. एक बीघा फसल बुवाई में 20 हजार का खर्चा आता है. लेकिन कोरोना के चलते गन्ना बाहर बिकने नहीं जा रहा है. इसलिए हम गन्ने के रस से गुड़ बना रहे हैं. गुड़ शुद्ध होने के कारण लोग खूब खरीद रहे हैं.

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गन्ना बेचने आए किसान नानूराम ने कहा कि हम खेती बाड़ी का काम करते हैं. मक्का, गन्ना, सरसो और चने सहित सभी तरह की फसल की बुवाई करते हैं. एक बीघा गन्ने के फसल की बुआई की थी. जहां 200-300 क्विंटल ऊपज होती है, यहां 100 किलो गन्ना की ऊपज का हमें 250 रुपए मेहनताना मिलता है. बिना केमिकल का यूज किए हुए भिंडी के पानी का उपयोग कर गन्ने के रस से गुड़ बनाया जा रहा है. यह गुड़ 40 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रहा है.

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वहीं हरियाणा के पानीपत से गन्ने के रस से गुड़ बनाने वाले ओम सिंह ने कहा कि वो गुड़ बनाने हर साल भीलवाड़ा आते हैं. मशीन से जूस निकालकर अलग-अलग श्रेणी क्रम में इनको गर्म करके उबालते हैं. फिर बिना केमिकल और सोडे का यूज किए गन्ने के रस से गुड़ बनाते हैं. गुड़ शुद्ध होने के कारण इसकी विश्वसनीयता ज्यादा है और लोग इसको खरीदकर सर्दी में खाते हैं. मजदूर गोपाल और मुकेश ने कहा कि पूरे दिन काम करते हैं और शाम को पैसे मिलते हैं. एक बीघा में 200 से 250 क्विंटल गन्ने की उपज होती है. 50 क्विंटल गन्ने में 25 डिब्बे गुड़ बनते हैं. एक डिब्बे में 25 किलो गुड़ होता है.

क्या होता है गुड़?

गुड़ को गन्‍ने से तैयार किया जाता है. इसे चीनी का स्‍वस्‍थ विकल्‍प कहा जाता है. वैसे तो चीनी और गुड़ दोनों में ही समान मात्रा में कैलोरी होती है, लेकिन गुड़ में शरीर के लिए जरूरी कई तरह के विटामिंस और मिनरल्‍स भी मौजूद होते हैं. यह सुनहरे भूरे रंग से गहरे भूरे रंग का हो सकता है. ऐसा कहा जाता है कि गुड़ का रंग जितना ज्‍यादा गहरा होगा, उसका फ्लेवर उतना ही ज्‍यादा अच्‍छा होगा. बता दें कि सांभर के स्‍वाद को बढ़ाने के लिए उसमें एक चुटकी गुड़ डाला जाता है. गुड़ और मूंगफली से बनी चिक्‍की भी बहुत पसंद की जाती है.

गुड़ पकाते हुए किसान

विश्‍व स्‍तर पर महाराष्‍ट्र गुड़ का सबसे बड़ा उत्‍पादक है. अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में गुड़ का काफी उपयोग किया जाता है. भारत में गन्ने से बना गुड़ ज्‍यादा पसंद किया जाता है. गुड़ से सेहत को कई तरह के फायदे मिलते हैं. आयुर्वेदिक और पारंपरिक औषधियों में गुड़ को विशेष स्‍थान दिया गया है. इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में होता है, जिससे एनीमिया की समस्‍या दूर करने में मदद मिलती है. भोजन के बाद थोड़ा-सा गुड़ खाने से पाचन में सुधार होता है. मिर्च के साथ गुड़ खाने से भूख बढ़ती है.

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