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Special: भरतपुर में किसानों पर दोहरी मार, पछाई बरसात और मजदूरी के बढ़े रेट ने बढ़ाई मुश्किलें - COVID-19 in Bharatpur

भरतपुर के किसानों के सामने संकट खड़ा हो गया है. एक तरफ बाजरे और ज्वार पर पछाई बरसात का प्रकोप छाया है. तो वहीं दूसरी तरफ पिछले साल की तुलना में इस बार मजदूर तो काफी संख्या में हैं लेकिन फसल कटाई के लिए मजदूरों ने 40 फीसदी कीमत बढ़ा दी है.

भरतपुर न्यूज, Bharatpur farmer
भरतपुर में खरीफ फसल की बुवाई

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Published : Sep 8, 2020, 2:50 PM IST

भरतपुर. कोरोना संक्रमण के कारण सबसे ज्यादा मजदूर प्रभावित हुए हैं. काम धंधा ठप होने से भारी संख्या में मजदूर बेरोजगार होकर घर पर बैठे हैं. वहीं अब खरीफ की फसल की कटाई का समय भी आ गया है, लेकिन भरतपुर के किसानों को कटाई से पहले दोहरे संकट का सामना करना पड़ा रहा है.

ज्वार व बाजरे की कटाई पर संकट

कोरोना काल मजदूरों के लिए विपदा लेकर आया है. कोरोना ने मजदूरों का रोजगार तो छीना ही, यहां तक की खाने के लाले पड़ गए. जिसके बाद पूरे देश में भारी संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ. वहीं हर साल किसानों को खरीफ की फसल की कटाई के लिए मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ता था, लेकिन इस बार मजदूर घर पर ही हैं. ऐसे में किसानों को आसानी से कटाई के लिए आदमी तो मिल रहा है, लेकिन समस्या यह है कि इस साल पिछले साल की तुलना में मजदूरों ने फसल कटाई का रेट बढ़ा दिया है.

मजदूरों ने 40 प्रतिशत तक बढ़ाया रेट

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किसानों के सामने अब दूसरी परेशानी भी खड़ी हो गई है. इस बार पछाई बरसात की वजह से बाजरे और ज्वार की फसल के पकने में भी देरी हो रही है. जिससे किसानों को फसल कटाई के लिए इंतजार करना पड़ रहा है.

भरतपुर में खरीफ फसल की बुवाई

देर से पक रही फसल

बछामदी गांव के किसान वीरेन्द्र सिंह ने बताया कि इस बार जिले में मानसूनी बरसात देर से शुरू हुई और अभी भी बीच-बीच में बरसात हो रही है. इससे बाजरे और ज्वार की फसल को पकने में समय लग रहा है. इस बार फसल करीब 20-25 दिन देरी से पकेगी. हालांकि, कुछ किसानों ने पहले फसल की बुवाई कर दी थी. जिसकी कटाई शुरू हो गई है.

मजदूरी की रेट में 40% तक बढ़ोतरी

बछामदी गांव के किसानों का कहना है कि फसल कटाई के लिए मजदूरों से संपर्क किया जा रहा है लेकिन मजदूर पिछले साल की तुलना में इस साल ज्यादा मजदूरी की मांग कर रहे हैं. पिछले साल जहां प्रति मजदूर, प्रतिदिन के लिए 200 से 250 रुपए में उपलब्ध थे, वही मजदूर इस बार 300 से 350 रुपए की मांग कर रहे हैं.

कई माह से बेरोजगार, मजदूरी ही सहारा

बछामदी निवासी मजदूर कमलेश और सुनीता ने बताया कि इस बार कोरोना संक्रमण के चलते कई महीने से कहीं कोई काम नहीं मिला. अब खरीफ की फसलों की कटाई के मजदूर ही एकमात्र सहारा हैं. बीते वर्ष मजदूरों की रेट 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से रही थी, लेकिन इस वर्ष 350 रुपए रहने की संभावना है.

गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के चलते मजदूर वर्ग बीते कई महीने से घरों पर बेरोजगार बैठा है. ऐसे में अब खरीफ की फसल की कटाई से इन्हें बड़ी उम्मीदें हैं. इसलिए मजदूर पिछले साल की तुलना में अधिक मजदूरी लेने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन किसानों के लिए यह चिंता की बात साबित हो रही है.

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