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आश्रम सेवा संस्थान में संवर रही इन बालिकाओं की जिंदगी

रिश्ते खून से नहीं दिल से बनते हैं. अपनेपन से बनते हैं. अब चाहे वह किसी भी जाति का हो या धर्म का. एक बार रिश्ता जुड़ने के बाद जन्म-जन्मों का बंधन बन जाता है. आज मदर्स डे पर ईटीवी भारत ने बांसवाड़ा में एक ऐसे संस्थान को खोज निकाला, जहां निराश्रित और अनाथ बच्चियों को न केवल घर के सदस्य की तरह रखा जा रहा है, बल्कि उन्हें एक परिवार जैसा स्नेह भी दिया जा रहा है.

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Published : May 12, 2019, 7:06 PM IST

आश्रम में रह रही बालिकाएं

बांसवाड़ा.लंबे समय तक अपने परिवार से दूर रहने के बावजूद आश्रम सेवा संस्थान में इन बालिकाओं की जिंदगी संवारना ही संस्थान की प्रभारी पुष्पलता दवे का मकसद बन गया है. इस संस्था की शुरुआत नरोत्तम पांडेय ने अपनी माता उमा देवी के नाम पर मां उमा देवी निराश्रित गृह नाम से की और आज यहां पर जिला मुख्यालय के आसपास की 30 निराश्रित और अनाथ बालिकाओं का जीवन संवारा जा रहा है. आश्रम सेवा संस्थान के माध्यम से पुष्पलता दवे ने इन बालिकाओं को कामयाबी के शिखर तक पहुंचाने का संकल्प कर लिया. उदयपुर निवासी पुष्पलता दवे के साथ भी पहले बहुत बड़ी ट्रेजडी हुई थी. उसके बाद उनका मन परिवार से हट गया और उदयपुर में ही नारायण सेवा संस्थान सहित विभिन्न समाजसेवी संस्थानों में पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना उद्देश्य बना लिया.

आश्रम सेवा संस्थान में संवर रही इन बालिकाओं की जिंदगी

करीब 30 साल से निराश्रित बालिकाएं ही पुष्पलता का परिवार बन चुका है. सितंबर 2018 में बांसवाड़ा में संस्थान खोलने के बाद आज उमा देवी निराश्रित ग्रह में 30 बालिकाएं अपने परिवार की तरह ही शिक्षा के साथ हर प्रकार की फैसिलिटी हासिल कर रही है. सुबह अपने बच्चों की तरह जल्दी बच्चियों को जगाना और उन्हें तैयार करवा कर स्कूल भेजना. उनके लिए नाश्ते की व्यवस्था के बाद खाना और रात को सभी के साथ मिलकर डिनर कर इन बालिकाओं की हर समस्या का समाधान करवाने का हर संभव प्रयास करती हैं.

इन बालिकाओं में शामिल आठवीं कक्षा की छात्रा रेखा के माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं है. लेकिन पुष्पलता की ओर से मिल रहे स्नेह से वह बेहद खुश है. रेखा का कहना है कि मैडम ही हमारी मां है. वहीं पुष्पलता दवे से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि इन बच्चियों का जीवन संवर जाए, यही उनकी जिंदगी का असली फल होगा. वहीं मां उमा देवी निराश्रित गृह के संचालक नरोत्तम पांड्या बताते हैं कि उन्होंने भी बचपन में अपनी मां को दुख सहते देखा है. इसलिए उनके मोहल्ले में ही यह संस्था खोलकर वे उनकी यादों को अमिट बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

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