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Pitru Paksha 2023 : पुष्कर में सात कुल का होता है श्राद्ध, भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का किया था यहां श्राद्ध

पुष्कर के पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर देश के कोने-कोने से आए तीर्थ यात्री अपने पूर्वजों के निमित्त यहां श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करवाते हैं. हालांकि वर्षभर यह सिलसिला चलता रहता है लेकिन श्राद्ध पक्ष में यहां का महत्व अधिक है. जानते है श्राद्ध पक्ष का महत्व...

Pitru Paksha 2023
पितृ पक्ष 2023

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Sep 29, 2023, 7:12 AM IST

Updated : Sep 29, 2023, 7:22 AM IST

पुष्कर में सात कुल का होता है श्राद्ध

अजमेर.आज शुक्रवार सेश्राद्ध पक्ष शुरू होने जा रहा है. हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है. यूं तो 16 दिन श्राद्ध पक्ष रहते हैं लेकिन इस बार 17 दिन तक श्राद्ध पक्ष रहेगा. तीर्थराज गुरु पुष्कर में पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि करने का सदियों से महत्व रहा है. पुष्कर के पवित्र सरोवर के 52 घाटों पर देश के कोने-कोने से आए तीर्थ यात्री अपने पूर्वजों के निमित्त यहां श्राद्ध तर्पण और पिंडदान करवाते हैं. हालांकि वर्षभर यह सिलसिला चलता रहता है लेकिन श्राद्ध पक्ष में यहां का महत्व अधिक है.

पंडित कैलाश नाथ दाधीच ने बताया कि श्रद्धा का नाम ही श्राद्ध है. एक साल में 16 दिन श्रद्धा के होते हैं. इस बार 17 दिनों का श्राद्ध है. तिथियां में अष्टमी की वृद्धि है चतुर्थी तिथि टूटी हुई है. 10 अक्टूबर एकादशी के दिन कोई श्राद्ध नहीं है. 29 सितंबर 2023 से 15 अक्टूबर 2023 तक 17 दिन श्राद्ध रहेंगे. उन्होंने बताया कि सर्वप्रथम अमावस्या 14 अक्टूबर को रहेगी. इस दिन सभी पितरों के नाम से जिनकी पुण्यतिथि नहीं मालूम है उन सभी मृत आत्माओं के लिए नारायण बलि, पिंड दान, तर्पण, दान पुण्य करने का विधान है. दाधीच में एक कथा के माध्यम से श्राद्ध के महत्व को बताया. उन्होंने बताया कि महाभारत में वर्णित है कि राजा कर्ण प्रतिदिन सवा मन सोना दान करते थे. इसके अलावा कोई कार्य नहीं किया स्वर्ग में जाने पर उन्हें वहां केवल सोना ही मिला. राजा कर्ण ने भगवान नारायण से प्रार्थना की. भगवान नारायण ने राजा कर्ण को पृथ्वी लोक पर भेजा. यहां राजा कर्ण ने श्राद्ध पक्ष में दान, हवन, पूजन, कुआं, बावड़ी धर्मशालाओं, मंदिरों का निर्माण किया और अपने पूर्वजों के निमित्त यहां श्राद्ध किए. इससे उनके पितरों की मोक्ष गति हुई और पितृ प्रसन्न हुए. श्राद्ध पक्ष करने से राजा कर्ण को मोक्ष गति मिली. साथ ही उन्हें भगवान नारायण के चरणों में स्थान मिला.

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श्राद्ध पक्ष में यह रहेगी तिथियां :पूर्णिमा का श्राद्ध 29 सितंबर को रहेगा. प्रतिपदा और दूज का श्राद्ध 30 सितंबर तृतीया का श्राद्ध 1 अक्टूबर चतुर्थी का श्राद्ध 2 अक्टूबर को पंचमी का श्राद्ध 3 अक्टूबर को छठ का श्राद्ध 4 अक्टूबर को सप्तमी का श्राद्ध 5 अक्टूबर को अष्टमी का श्राद्ध 6 अक्टूबर को नवमी का श्राद्ध 7 अक्टूबर को दसवीं का श्राद्ध 8 अक्टूबर को एकादशी का श्राद्ध 9 अक्टूबर को द्वादशी श्राद्ध 11 अक्टूबर को त्रयोदशी का 12 अक्टूबर को श्राद्ध रहेगा. इसी प्रकार चतुर्दशी का श्राद्ध 13 अक्टूबर और सर्वप्रथम अमावस्या 14 अक्टूबर एवं 15 अक्टूबर को नाना नानी के श्राद्ध के बाद शारदीय नवरात्रि घट की स्थापना होगी. शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध की पितरों की पुण्य तिथि के अनुसार ही होगा.

श्राद्ध में यह करना फलदायक :उन्होंने बताया कि श्राद्ध पक्ष में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और तामसी भोजन नहीं करना चाहिए. श्राद्ध पक्ष में प्याज लहसुन का उपयोग नहीं करें. पितरों के नाम से तर्पण मार्जन तीर्थ में नदियों में समुद्र में या कुआं बावड़ी पर अवश्य करें. दाधीच ने बताया कि विष्णु सहस्त्रनाम, गीता का पाठ, श्रीमद् भागवत गीता, पितृ संहिता, नारायण मंत्र का जाप अवश्य करना चाहिए. इसके अलावा सूर्य को अर्क देना पीपल में जल चढ़ाना तेल, जौ, तुलसी पत्र पुष्प दूभ का इसमें आवश्यक उपयोग करें. श्राद्ध पक्ष में कौवा, श्वान, गाय, कीट को पंच ग्रास दान अवश्य करें.

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तीर्थ पुरोहित हरि गोपाल पाराशर बताते हैं कि श्राद्ध पक्ष में पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं. घर में वह देखते हैं कि उनके निमित्त क्या खाद्य बनाए गए हैं. यदि पितरों के निमित्त भोजन घर में नहीं बना है तो पितृ रुखा सुखा जो भी मिला उसे खाकर नाराज होकर लौट जाते हैं. इससे जातक को उन पितरों के वंशजों को पितृ दोष लगता है. इससे घर में अशांति रहती है, बीमारियां नहीं जाती है. घर में क्लेश हो होता रहता है, पैसा नहीं रुकता है. विवाह में अड़चन आती है. संतान पैदा नहीं होता है. अगर होता है तो वह संतान मंदबुद्धि का होता है. यह सभी पितृ दोष के लक्षण हैं. उन्होंने बताया कि पुष्कर सभी तीर्थ का गुरु है. पुष्कर में ही सात कुल का पिंडदान किया जाता है. जबकि अन्य किसी भी तीर्थ में सात कुल का पिंडदान नहीं होता.

भगवान राम ने भी पिता दशरथ का किया श्राद्ध :तीर्थ पुरोहित हरि गोपाल पाराशर बताते हैं कि भगवान राम गयाजी में अपने पिता दशरथ का श्राद्ध करने के लिए गए थे लेकिन यहां श्राद्ध करने के बावजूद भी उनके पिता दशरथ को मोक्ष नहीं मिला. उसके बाद राम पुष्कर आए और उन्होंने यहां बालू मिट्टी से पिंड बनाकर पिंडदान किया था. इसका उल्लेख पद्म पुराण, रामायण, गीता, श्रीमद् भागवत में है. पुष्कर राज में श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, नारायण बलि आदि पितरों के निर्माता अनुष्ठान करने का बड़ा महत्व है. ऐसा करने से पितृ संतुष्ट होते हैं और घर परिवार में सुख शांति और खुशहाली आती है. वहीं रोग, दोष, कष्ट भी दूर हो जाते हैं. एक श्लोक के माध्यम से उन्होंने बताया कि सतयुग का तीर्थ पुष्कर है, त्रेता का तीर्थ नैमिषारण्य है, द्वापर युग का तीर्थ कुरुक्षेत्र और कलयुग का तीर्थ गंगा है. तीर्थ पुरोहित हरि गोपाल पाराशर बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार इन जगह पर ही मोक्ष प्रदान होते हैं. इनमें अयोध्या, माया, काशी, कांची, अवंतिका, पूरी आदि है.

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पुष्कर में अपने पितरों के निमित्त पिंडदान करने के लिए झारखंड से आए श्रद्धालु ने बताया कि पुष्कराज में अपने सात कुल के पितरों का श्राद्ध, तर्पण करने के लिए श्रद्धापूर्वक आए हैं. साथ ही यथा शक्ति दान पुण्य भी करेंगे. अपनी भावना प्रकट करते हुए श्रद्धालु ने कहा कि यहां का वातावरण आध्यात्मिक है. ऐसा लगता है कि साक्षात भगवान ब्रह्मा आशीर्वाद दे रहे हैं. पुष्कर में यह ब्रह्म सरोवर है जो ब्रह्माजी के कमंडल के जल से भरा हुआ है. उन्होंने कहा कि यह ब्रह्म तीर्थ है विश्व में यह दूसरा नहीं है.

Last Updated : Sep 29, 2023, 7:22 AM IST

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