अजमेर. पुष्कर के जंगलों में स्थित अजयसर की पहाड़ियों के बीच एक प्राचीन शिवालय है. पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने बकरे का रूप धरकर इसी स्थान पर वश्कली नाम के एक दैत्य का वध किया था. वश्कली का वध करने के बाद जगतपिता ब्रह्मा के निवेदन पर भगवान शिव वहीं पर अजगंधेश्वर नाम से शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए. ऐसा माना जाता है कि प्रातः स्नान करने के बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद श्रद्धा से कोई भी व्यक्ति शिवलिंग को दोनों हाथों से रगड़ता है, तो उसके हाथों से अजहा यानी बकरे की गंध आने लगती है. ब्रह्मा को दिए वचन के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी ही वह दिन है जब भगवान शिव शंकर परिवार सहित यहां विराजते हैं. इस मौके पर आइए जानते हैं ये पौराणिक कथा...
स्थानीय पंडित रवि शर्मा बताते हैं कि पदम पुराण में अजगंधेश्वर महादेव का उल्लेख है. पुष्कर की आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर वश्कली नाम के दैत्य ने यहां के जंगलों में 10 हजार वर्षों तक ब्रह्म देव को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया था. तप के शुरुआती 2 हजार साल में वश्कली 6 दिन में भोजन करता था. अगले 2 हजार साल उसने इसी तरह 6 दिन में एक बार पत्ते खाकर तप किया. इसके बाद अगले 2 हजार साल उसने छह दिन में एक बार केवल सूखे फल खाए और अगले दो हजार साल केवल जल पिया. आखरी दो हजार साल में उसने अपने शरीर को इतना साध लिया कि वह केवल हवा पर निर्भर रहकर तप करता रहा.
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जगत पिता ब्रम्हा ने वश्कली की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए. वश्कली ने ब्रह्मदेव से स्वर्ग पर आधिपत्य और दिव्य अस्त्र-शस्त्र एवं देव-दानव किसी से भी उसकी मृत्यु नहीं होने का वरदान हासिल कर लिया. ब्रह्मदेव के वरदान के कारण इंद्र को स्वर्ग से हाथ धोना पड़ा. वहीं समस्त देवताओं को स्वर्ग त्यागना पड़ा. शर्मा ने बताया कि स्वर्ग पर आधिपत्य रखने के बावजूद वश्कली प्रतिदिन पुष्कर आता और पवित्र सरोवर में स्नान करने के बाद ब्रह्मा की पूजा-अर्चना करता था.