राजस्थान का पहला शुलब्रेड चर्च अजमेर. राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर हर धर्म के लोगों की धर्मस्थली है. जहां एक ओर पुष्कर में हिंदू धर्म का पांचवा तीर्थ ब्रह्म मंदिर है तो वहीं शहर में ही ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह स्थित है. इसी कड़ी में यहां मसीह समाज की आस्था का केंद्र भी है. मसीह समाज की धर्मस्थली खूबसूरत प्राचीन चर्च भी इस जिले में मौजूद है. उत्तर भारत का सबसे प्राचीन चर्च ब्यावर में है. बता दें कि अजमेर ही नहीं, बल्कि प्रदेश में मिशनरी की शुरुआत ब्यावर से हुई थी.
राजपूताना के बीचों बीच होने और अपनी नैसर्गिक सौंदर्यता के कारण अजमेर अंग्रेजों का पसंदीदा शहर रहा है. अंग्रेजों के उस काल के कई शिक्षण संस्थान और रेल कारखाने आज भी मौजूद है. अजमेर डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनएन नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा केंद्र है. नॉर्थ इंडिया में 66 छोटे बड़े चर्च इसके अधीन है और यहीं से उन तमाम चर्चों में पादरी की नियुक्ती की जाती है. साथ ही चर्च के संचालन पर नजर भी रखी जाती है.
डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनएन नार्थ इंडिया के विशप रेमसन विक्टर ने बताया कि अजमेर में नार्थ इंडिया का सबसे पुराना चर्च ब्यावर में है. यह चर्च करीब 162 वर्ष पहले बनाया गया था. ब्यावर अंग्रेजों के जमाने में छावनी था. उन्होंने बताया कि अजमेर के लगभग सभी चर्च में स्कॉटिश आर्टिटेक्चर का प्रभाव है. ब्यावर के पहले चर्च में स्कॉटलैंड से आए स्कॉटिश आर्किटेक ने चर्च का निर्माण करवाया था. चर्च की छत खिड़कियां, खिड़कियों पर लगे गिलास, सीलिंग बहुत ही आकर्षक है. यह सभी चर्च एक सदी बीत जाने के बाद भी पूरी मजबूती के साथ खड़े हैं और अपनी सुंदरता से सभी को आकर्षित करते हैं.
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ब्यावर में सबसे पुराना चर्च : राजस्थान का सबसे पुराना ऐतिहासिक फ्यूल ब्रेड मेमोरियल चर्च ब्यावर में है. इस चर्च को मदर चर्च के नाम से भी जाना जाता है. ब्यावर की टेकरी पहाड़ी पर 3 मार्च 1960 को इसकी नींव रखी गई थी. इस चर्च के निर्माण में अद्भुत स्थापत्य कला का समावेश है. इस चर्च के निर्माण में लगाई गई पट्टियां एक-दूसरे से लॉकिंग सिस्टम से जुड़ी हुई है. खास बात यह है कि चर्च के निर्माण को प्रभु यीशु की जन्मस्थली येरूसलम में बनाए गए चर्च के समान ही स्वरूप दिया गया है.
इस चर्च के इतिहास पर एक नजर बताया जाता है कि इस चर्च के निर्माण के बाद ही राजस्थान में मसीह समाज का विस्तार हुआ है. इस चर्च में घंटाघर भी है जिसकी आवाज कभी कई किलोमीटर तक सुनी जा सकती थी. डायसिस का राजस्थान सीएनएन के बिशप सैमसंग विक्टर ने बताया कि 1858 में स्कॉटलैंड से दो पादरी रेव्ह विलियम और रेव्ह स्टील शूल ब्रेड प्रभु यीशु का संदेश भारत में पहुंचाने के उद्देश्य से आए थे. उनका जहाज मुंबई बंदरगाह पर उतरा और यहां से वो बैलगाड़ी से आबू रोड शिवगंज आए, जहां लीवर में बीमारी के कारण रेव्ह स्टील की मौत हो गई. उसके बाद रेव्ह विलियम ने आगे की यात्रा की.
3 मार्च 1860 को रेव्ह विलियम ने टेकरी पहाड़ी पर चर्च की नींव रखी. 12 वर्ष में चर्च का निर्माण हुआ. इस चर्च के बाद चित्तौड़गढ़ में भी दूसरा चर्च बनाया गया. ब्यावर से ही मिशनरी की शुरुआत हुई. उन्होंने बताया कि प्रदेश के पहले चर्च ब्यावर में पीतल का घंटा 1871 में इंग्लैंड से मंगवाया गया था, जिसका वजन 18 मण है. इसके बाद 12 मण का पीतल का घड़ियाल भी मंगाया गया था. इसको चर्च के ऊपर की ओर लगाया गया था. इसकी आवाज पूरे अजमेर में गूंजती है.
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अजमेर में ये चर्च भी खूबसूरत : अजमेर में भी स्कॉटिश स्थापत्य कला को दर्शाते कई चर्च हैं. इनमें सेंट मेरी चर्च काफी पुराना है. 1903 में सेंट मेरी चर्च का निर्माण हुआ था. पाल बिचला में स्थित इस चर्च की ईमारत इतनी खूबसूरत है, इसको लोग निहारते ही चले जाते हैं. चर्च की छत, टावर, खिड़कियां, दरवाजे, भीतर सीलिंग, प्रार्थना सभागार, पिलर्स काफी मजबूती से टिके हुए हैं. पूरे चर्च में पत्थर को ईंट की शेप देकर चुनाई की गई है. इसी तरह से अजमेर का सबसे बड़ा सेंट एनस्लम चर्च भी अपनी खूबसूरती से आकर्षित करता आया है. भीतर विशाल प्रार्थना सभागार है. भीतर लकड़ी की शानदार कारीगरी देखने को मिलती है.
यहां क्रिसमस पर भव्य मेले का आयोजन होता है. शहर के बीच रोबसन मैमोरियल चर्च की अंदर और बाहर की खूबसूरती को देख लोग इसको निहारना नही भूलते. अग्रसेन सर्किल के समीप सेंट्रल मेथोडिस्ट चर्च डायलिसिस का राजस्थान सीएनएन का हिस्सा नहीं है, लेकिन इस चर्च की बनावट भी आकर्षित है. इसके अलावा सेंट पॉल चर्च, सेंट जोसफ, नसीराबाद में प्राचीन चर्च भी अपने स्थापत्यकला के कारण वर्षों से सुंदर और मजबूती से खड़े हैं.