उदयपुर.होली का पर्व नजदीक आने के साथ ही मंदिरों में फाग (Dwarkadhish temple on phag festival) का रंग चढ़ने लगा है. ऐसे में पुष्टिमार्गीय मंदिर में होली का अपना विशेष महत्व है. राजसमंद के पुष्टिमार्गीय वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली स्थित प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर में होली का पर्व अपने आप में अनूठे अंदाज में मनाया जाता है. होली के 1 महीने पहले से मंदिरों में फाग की धूम दिखने लग जाती है. होली के रंग यहां देखते ही बनते हैं.
वैसे तो समस्त पुष्टिमार्गीय मंदिरों में होली का पर्व विशेष महत्व रखता है, लेकिन वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ श्री द्वारकाधीश मंदिर में फाग की रंगत दोगुनी रहती है. कोरोना संक्रमण की वजह से एक साल बाद श्रद्धालु प्रभु श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल के दर्शन (Devotees did ral darshan in Dwarkadhish temple) का आनंद ले रहे हैं. मंदिर में नाच गाकर श्रद्धालु प्रभु की भक्ति में रंगे नजर आ रहे हैं.
बसंत पंचमी से शुरू होती है गुलाल की सेवा
श्री द्वारकाधीश मंदिर के कार्यकारी अधिकारी विनीत सनाढ्य ने बताया कि कोरोना के कारण एक वर्ष बाद श्रद्धालु श्री द्वारकाधीश मंदिर में राल के दर्शन कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि बसंत पंचमी से ही प्रभु श्री द्वारिकाधीश को गुलाल की सेवा आरंभ होती है. यहां राजभोग के दर्शन में प्रतिदिन प्रभु द्वारकाधीश को गुलाल की सेवा अंगीकार कराई जाती है. यहां पर गोस्वामी परिवार की ओर से प्रभु को गुलाल से खेल खिलाया जाता है. यह दर्शन एक घंटे तक ही चलता है. जैसे-जैसे होली नजदीक आती है, गुलाल की सेवा में बढ़ोतरी होती जाती है.
इसी क्रम में होली डंडा रोपण के साथ एक विशेष तरह के दर्शन होते हैं. इसे राल का दर्शन कहा जाता है. दर्शन में प्रभु द्वारिकाधीश के सम्मुख लकड़ी के बड़े-बड़े बांसों पर कपड़ा बांधा जाता है. उन कपड़ों को तेल में भिगोकर बांधा जाता है जिससे अग्नि प्रज्वलित की जाती है. फिर गोस्वामी परिवार की ओर से उस अग्नि में राल और सिंघाड़े का आटा डाला जाता है. इससे वह अग्नि प्रज्वलित होती है और उससे जबरदस्त लपटें उठती हैं. इसके दर्शन के लिए दूरदराज से लोग द्वारकाधीश मंदिर पहुंचते हैं.