नागौर. राजस्थान की धरती को वीर प्रसविनी कहा जाता है क्योंकि इस धरती पर ऐसे बहादुर योद्धाओं ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने वचन का पालन करने और सत्य की रक्षा के लिए प्राणों तक का बलिदान कर दिया. ऐसे ही एक वीर योद्धा हुए सत्यवादी वीर तेजाजी. जो अपना वचन निभाने और गौमाता की रक्षा के लिए अकेले ही 365 चोरों से लड़े और विजयी हुए. इसके बाद एक नाग को दिया वचन निभाने के लिए उस नाग को अपनी जीभ पर डसवाया और प्राणों का बलिदान कर दिया.
जनमानस में आज वीर तेजाजी लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं और ना केवल राजस्थान बल्कि देश के कई इलाकों में उनकी वीरता की गाथाएं आज भी सुनाई जाती हैं. नागौर जिले के खरनाल गांव में वीर तेजाजी के जन्मस्थान पर आज एक भव्य मंदिर बना है, जहां देशभर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. यहां भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजादशमी के मौके पर हर साल भव्य मेला भी लगता है और लाखों श्रद्धालु धोक लगाते हैं.
खरनाल गांव में हुआ था तेजाजी का जन्म
वीर तेजाजी का जन्म खरनाल गांव में पिता ताहड़देव और माता रामकंवरी के घर साल 1074 में हुआ था. उनका विवाह पनेर गांव के रायमल जाट की बेटी पेमल से हुआ था. जनश्रुतियों के अनुसार तेजाजी 9 महीने के और पेमल 6 महीने की थीं, तभी दोनों के माता-पिता ने उनका विवाह पुष्कर घाट पर कर दिया था.
तेजादशमी की कथा
समय आने पर तेजाजी पत्नी पेमल को लेने ससुराल पनेर पहुंचे, जहां उन दिनों गायों को चुराने वाले लुटेरों के गिरोह का आतंक फैला था. जब तेजाजी अपने ससुराल थे तभी ऐसे ही एक गिरोह ने लाछा नाम की गुर्जर समाज की महिला की गायों को चुरा लिया था. उसने गांव वालों से मदद मांगी लेकिन चोरों के आतंक को देखते हुए कोई भी ग्रामीण उसकी मदद को आगे नहीं आया. इसके बाद वह अपनी सहेली पेमल के पास पहुंची और तेजाजी से उसकी गायों को चोरों से छुड़ाकर लाने की गुहार लगाई. वीर तेजाजी ने उसे वचन दिया कि वे उसकी गायों को सुरक्षित लेकर आएंगे और अपनी लीलण घोड़ी पर सवार होकर चोरों के पीछे चल पड़े.
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इस दौरान रास्ते में उन्हें एक नाग आग में जलता हुआ दिखाई दिया तो दया भाव दिखाते हुए तेजाजी ने अपने भाले से नाग को आग से बचा लिया. इस पर नाग क्रोधित हुआ. बताया जाता है कि वह अपना शरीर त्यागने जा रहा था और तेजाजी ने उसे बचा लिया. इसलिए उसने तेजाजी को डसना चाहा. तेजाजी ने गायों को छुड़ाकर लाने के अपने वचन की दुहाई दी और नाग से वादा किया कि वह गायों को छुड़ाकर वापस उसके पास आएंगे. इसके बाद आगे जाकर तेजाजी ने गायों को चुराने वाले गिरोह को ललकारा और युद्ध किया. इस युद्ध में तेजाजी ने चोरों को परास्त किया और गायों को लेकर पनेर गांव पहुंचे.
तेजाजी के भाले पर नाग के लिपटा होने का कारण
पनेर गांव जाकर पता चला कि एक बछड़ा अभी भी उन चोरों के चंगुल में रह गया है. तेजाजी वापस गए और बछड़े को भी छुड़ाकर लाए. लेकिन इस युद्ध में तेजाजी घायल हो गए. गायों को सुरक्षित छोड़ने के बाद तेजाजी अपना वचन निभाने के लिए नाग के पास गए. तेजाजी का पूरा शरीर लहूलुहान था, इसलिए नाग ने ऐसी जगह डसना चाहा जहां घाव नहीं हो. तब तेजाजी ने नाग को अपने भाले पर लिया और अपनी जीभ पर डसवाया. इसलिए आज भी तेजाजी की घोड़ी पर बैठी प्रतिमा के साथ भाले पर लिपटा नाग भी होता है.