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कोटा में घास से बनेगी BIO-CNG...संभाग में लगेंगे 9 प्लांट, किसानों ने नेपियर घास उगाना किया शुरू

कोटा संभाग में घास, पशुओं के अपशिष्ट, फूड और एग्रीकल्चर वेस्ट से बायो सीएनजी, पीएनजी और जैविक खाद का निर्माण होगा. इसके लिए संभाग में 9 प्लांट लगाए जाएंगे. प्लांट्स के लिए जमीन खरीद ली गई है. एक प्लांट के लिए रोजाना 100 टन नेपियर घास की जरूरत होगी. इससे 10 टन बायो सीएनजी का उत्पादन होगा. साथ ही 15 टन जैविक खाद भी बनेगी.

कोटा में घास से बनेगी BIO-CNG
कोटा में घास से बनेगी BIO-CNG

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Published : Nov 13, 2021, 5:18 PM IST

Updated : Nov 15, 2021, 12:15 PM IST

कोटा. राजस्थान के कोटा संभाग में तीन प्लांटों के जरिए बायोमास से बिजली उत्पादन हो रहा है. यह उत्पादन करीब 24 मेगावाट है. अब घास और एग्रीकल्चर वेस्ट के जरिए बायो सीएनजी, पीएनजी और जैविक खाद बनाने का काम भी जल्द शुरू होगा. इसके लिए संभाग में 9 प्लांट प्रस्तावित हैं.

अधिकतर प्लांट्स के लिए जमीन खरीद ली गई है. इनमें नेपियर घास के जरिए फर्टिलाइजर, बायो सीएनजी व पीएनजी बनाई जाएगी. इलाके के सैकड़ों किसानों ने नेपियर घास उगाना शुरू कर दिया है. यह घास पशु आहार के तौर पर भी काम आती है. योजना को पूरी रूप से स्थापित होने में तकरीबन 4 साल लगेंगे. कोटा संभाग में प्लांट पर कंपनियां काम कर रही हैं. इनमें से कुछ के लिए जमीन तय कर ली गई है और बाकी जगह जमीन का कन्वर्जन सहित अन्य कार्य किए जा रहे हैं. प्लांट लगने से पहले ही इलाके में हजारों टन घास उत्पादित हो रही है. कोटा संभाग के लाड़पुरा, दीगोद, सांगोद, किशनगंज, अटरू, बारां, अंता, छबड़ा, बकानी व खानपुर में ये प्लांट स्थापित होंगे.

कोटा में घास से बनेगी BIO-CNG

घास और एग्रीकल्चर वेस्ट का होगा इस्तेमाल

फसल का उत्पादन लेने के बाद किसान पराली को जला देते हैं. कई फसलों का कचरा कोई उपयोग में नहीं आता. ऐसे एग्रीकल्चर वेस्ट को बायोमास के प्लांटों में दिया जा सकता है. सरसों की तूड़ी को बायोमास के प्लांट खरीद लेते हैं. इसी तरह से हर फसल का बचा हुआ एग्रीकल्चर बेस्ट भी बायो सीएनजी के उत्पादन कर रहे प्लांट खरीद लेंगे. इसके साथ पशुओं का अपशिष्ठ गोबर भी खरीदा जाएगा. इसके साथ ही फूड वेस्ट को भी ये लोग खरीदेंगे और इन सब के साथ नेपियर घास को कंप्रेस कर बायो सीएनजी बनाई जाएगी.

नेपियर घास की एक साल में 4 बार हो सकती है फसल

इलाके के किसानों को नेपियर घास का बीज कंपनी ही उपलब्ध करा रही है. बीज के बारे में कंपनी के प्रतिनिधियों का दावा है कि किसान को 5 से 7 साल तक इस बीज के जरिए नेपियर घास का प्रोडक्शन मिल सकता है. साल में 4 बार किसान इसकी फसल ले सकते हैं. हर 3 महीने में यह फसल कटेगी. किसान ही घास को प्लांट तक पहुंचा देगा, जिसके बाद इससे बायो सीएनजी का उत्पादन लिया जा सकेगा. अधिकांश प्लांट शहर से दूर ग्रामीण इलाकों में ही स्थापित किए जा रहे हैं.

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10 टन बायोसीएनजी, 15 टन ऑर्गेनिक खाद

कंपनी के प्रतिनिधियों का कहना है कि 10 टन घास से 1 टन बायो सीएनजी उत्पादित होगी. रोज प्लांट को 100 टन नेपियर घास की जरूरत होगी. जिससे 10 टन बायो सीएनजी का उत्पादन कर सकेंगे. इसके साथ ही 15 टन जैविक खाद भी प्राप्त होगी. टेक्नोलॉजी उपलब्ध करवाने वाली कंपनी ही इन प्लांटों में पार्टनर के तौर पर भी काम करेगी. प्लांट के लिए स्थानीय स्तर पर ही लोगों को अप्वॉइंट किया गया है. किसानों से घास को लेकर प्लांट तक पहुंचाने के लिए भी तहसील स्तर पर किसानों के प्रतिनिधि के रूप में किसान को ही नियुक्ति दी गई है. कंपनी से जुड़े लोगों का कहना है कि किसान के बच्चे को ही प्लांट में नौकरी दी जाएगी.

क्या होती है बायो सीएनजी

सीएनजी का मतलब कंप्रेस्ड नेचुरल गैस होता है. जबकि बायो सीएनजी का मतलब कंप्रेस्ड बायोगैस यानी कि सीबीजी है. इसे बायो सीएनजी भी कहा जाता है. कंपनी के प्रतिनिधियों का कहना है कि बायो सीएनजी बनाने वाले प्लांट को खेत खलियान में बना सकते हैं. इसके लिए 2 से 3 एकड़ जमीन पर्याप्त है. इसके जरिए रोज 100 टन तक एग्रीकल्चर वेस्ट और घास का प्रोसेस कर सकते हैं.

किसान बोले घास बेचने से मिल रहे लाखों रुपए

कई किसानों ने नेपियर घास का उत्पादन करना शुरू कर दिया है. इसे राजा या हाथी घास भी कहा जाता है. खानपुर इलाके के किसान भैरूलाल का कहना है कि पहले उन्हें एक बीघा से 20 हजार रुपए की आमदनी होती थी, लेकिन जब से उन्होंने नेपियर घास की पैदावार लेना शुरू किया है, उनकी आमदनी एक लाख से ज्यादा में पहुंच गई है. उन्होंने चार बीघा में यह फसल की है.

पशुओं से दुग्ध उत्पादन लेने वाले पशुपालक ज्यादातर पशुओं को खल, बाटा और चूरा खिलाते हैं. ताकि उनके दूध में फैट की मात्रा बनी रहे और पौष्टिक दूध मिले. नेपियर घास का उत्पादन कर रहे किसानों ने दावा किया है कि पशुपालक इस घास का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में करते हैं तो उन्हें खल, बाटा और चूरा की जरूरत नहीं पड़ेगी, पशुओं के दूध में फैट की मात्रा भी बनी रहेगी.

Last Updated : Nov 15, 2021, 12:15 PM IST

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