कोटा.कोरोना की दूसरी लहर काफी घातक हो रही है. हर दिन प्रदेश में करीब 10 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित मिल रहे हैं. इसके अलावा सैकड़ों लोगों की मौत भी हो रही है. कोटा मेडिकल कॉलेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ. मनोज सलूजा ने ईटीवी भारत से कोरोना की दूसरी लहर पर बात करते हुए कहा कि यह नया स्ट्रेन है. इसमें केवल चार दिनों में ही मरीज के फेफड़े खराब हो रहे हैं. यहां तक कि युवा इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं. कोविड-19 के लिए निश्चित किए गए आरटी-पीसीआर टेस्ट में भी वायरस पकड़ में नहीं आ रहा है. ऐसे में अधिकांश मरीजों में उनकी हालात को देखते हुए सीटी स्कैन करवाना चिकित्सकों को पड़ रहा है. साथ ही कोविड-19 पॉजिटिव आ जाने के बाद भी बीमारी की गंभीरता के लिए छाती का सीटी स्कैन करवाया जा रहा है, जिसमें बीते एक-दो दिनों में ही संक्रमण काफी ज्यादा बढ़ा हुआ नजर आ रहा है.
न्यू स्ट्रेन के लिए सीटी स्कैन जरूरी
कोविड-19 मरीजों के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिए ही पॉजिटिव और नेगेटिव तय होता है. अभी कई मरीज ऐसे आ रहे हैं, जिनमें आरटी-पीसीआर नेगेटिव होने के बाद भी फेफड़े में संक्रमण ज्यादा होता है और मौतें भी ऐसे लोगों की हो रही है. डॉ. मनोज सलूजा का कहना है कि पहले भी मैंने यह आशंका व्यक्त की थी. साथ ही कई मेडिकल के जनरल्स में भी यह प्रकाशित हुआ है. नया स्ट्रेन वायरस की बदली है, जिससे आरटी-पीसीआर टेस्ट का डिटेक्शन है, वह वायरस को छोड़ रहा है. आरटी-पीसीआर टेस्ट जिन प्रोटीन को डिटेक्ट करके कोविड-19 पॉजिटिव बताता है. अगर उन्हीं में कुछ म्यूटेशन हो गया है, तो वह आरटी-पीसीआर में नहीं आएगा. ऐसे में चिकित्सकों को विजिलेंट रहते हुए मरीज की हालात को देखते हुए एचआरसीटी स्कैन भी कराना चाहिए.
सांस में तकलीफ हो तो चिकित्सक की जरूर ले सलाह
छाती का सीटी स्कैन जिसे एचआरसीटी कहा जाता है. कोरोना वायरस के समय फेफड़े संक्रमित कितने हो गए हैं, इसकी जांच के लिए यह काफी उपयोगी साबित हो रही है, लेकिन यह जांच भी मरीजों को तभी करवानी चाहिए, जब ऑक्सीजन का स्तर उनका गिर रहा हो. अगर बुखार और सांस लेने में तकलीफ है तो ऑक्सीजन सैचुरेशन पर पूरी तरह से मॉनिटरिंग रखनी चाहिए. ऑक्सीजन सैचुरेशन 92 प्रतिशत से कम हो या फिर सांस लेने में ज्यादा तकलीफ हो रही हो तब ही चिकित्सक को दिखाना चाहिए.
गंभीर बीमारी लेकर अस्पताल पहुंच रहा है मरीज
डॉ. सलूजा ने कहा कि फेफड़ों में इन्फेक्शन 3 से 4 दिनों में काफी ज्यादा बढ़ जाता है, जो शुरुआत के दिनों में एचआरसीटी का स्कोर 5 के आसपास रहता है, वह 4 दिनों में ही 17 से 18 पहुंच जाता है. ऐसे बहुत ज्यादा मरीज हमारे पास पहुंच रहे हैं, जो काफी एडवांस स्टेज पर बीमारी को लेकर पहुंच रहे हैं. उन पर बहुत ज्यादा दवाइयां इफेक्टिव साबित नहीं हो रही है. ऑक्सीजन और वेंटिलेटर सपोर्ट ज्यादा हेल्पफुल हो रहा है.
शुरुआत में काफी कारगर है रेमडेसिविर
डॉ. सलूजा ने मेडिकल कॉलेज के नए अस्पताल में भर्ती मरीजों के उपचार के अनुभव के आधार पर कहा कि रेमडेसिविर इंजेक्शन से हमारा अनुभव अच्छा रहा है, लेकिन इसके लिए मरीज को उपचार समय से मिलना चाहिए. यह इंजेक्शन एंटीवायरल ड्रग है, जोकि वायरस के रिप्लिकेशन को रोकती है. वायरस शुरुआती 7 से 9 दिन की अवधि में तेजी से शरीर में बढ़ रहा होता है. इस अवस्था में इंजेक्शन लग गए और रिप्लिकेशन रुक गया, तो ऐसे व्यक्ति में बीमारी का प्रसार नहीं होगा. अगर देरी से रेमडेसिविर इंजेक्शन 9 से 10 दिन की अवधि निकल गई और बाद में लगाए जाते हैं, तो उनका असर नहीं हो पाता है.
प्रति मरीज ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ी