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Rajasthan Agriculture Budget 2022 : कृषि बजट से आदिवासी किसानों को हैं बड़ी उम्मीदें..वाग्धारा संस्था ने दिये ये सुझाव - राजस्थान कृषि बजट 2022

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार फरवरी में बजट पेश करने जा रही है. इस बार कृषि बजट अलग पेश किया जाएगा. गहलोत सरकार के बजट से किसानों को बड़ी उम्मीदें (Expectations from Rajasthan Agriculture Budget) हैं. खासतौर से आदिवासी (TSP) क्षेत्र के किसान उम्मीद लगाए हुए हैं.

Rajasthan Agriculture Budget 2022
कृषि बजट से किसानों को उम्मीद

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Published : Jan 14, 2022, 5:10 PM IST

Updated : Jan 14, 2022, 7:07 PM IST

जयपुर. राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के कृषि आधारित बजट से किसानों को काफी उम्मीदें (Expectations from Rajasthan Agriculture Budget) हैं. खास तौर से जैविक खेती करने वाले आदिवासी क्षेत्र किसान बजट को लेकर आशान्वित हैं. तो क्या सरकार किसानों की उम्मीदों पर इस बार के कृषि बजट में खरी उतरेगी.

टीएसपी क्षेत्र के किसानों के लिए काम कर रहे संगठन वाग्धारा (Vagdhara Four Tribal Area Farmers Rajasthan) के एग्रीकल्चर साइंटिस्ट डॉ प्रमोद रोकडिया ने कहा कि पिछले बजट में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बजट सत्र 2021-22 में एक अलग कृषि बजट में पेश करने की घोषणा की थी. इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है. इस संबंध में हाल ही में एक वर्चुअल मीटिंग हुई. जिसमें जैविक खेती को लेकर सुझाव मांगे गए थे. सरकार जैविक खेती को प्रतोत्साहन देना चाहती है. वाग्धारा संगठन ने भी सुझाव दिये हैं और मांगें रखी हैं.

आदिवासी क्षेत्र के किसानों को कृषि बजट से क्या चाहिए

राजस्थान कृषि बजट 2022 (Rajasthan Agriculture Budget 2022 ) से आदिवासी किसानों को उम्मीदें हैं. राजस्थान की 70 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है. राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर जिले शामिल हैं. जहां लाखों हेक्टेयर में किसान जैविक खेती कर रहे हैं. उनके सामने कुछ समस्याएं भी आ रही हैं, जिन्हें सरकार के सामने रखा है.

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वाग्धारा ने दिये ये सुझाव

1. बीज उत्पादन बोनस : जनजातीय समुदाय के उन्नत बीज उत्पादन और पारिवारिक आय के लिए बोनस राशि में 200 रुपये से 400 रुपये की वृद्धि की जानी चाहिए.

2. बीज परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना : वर्तमान में बांसवाड़ा या आसपास के जिलों में कोई बीज परीक्षण प्रयोगशाला (एसटीएल) नहीं है. किसान अपने बीज चित्तौड़गढ़ या जयपुर भेज रहे हैं. इसलिए किसान बांसवाड़ा में एसटीएल की स्थापना की मांग कर रहे हैं.

3. दुग्ध डेयरी और संवन्धित गतिविधियों के क्रियान्वयन की मांग : वर्ष 1986 में बांसवाड़ा में एक दुग्ध डेयरी थी, जो अब काम नहीं कर रही है. डेयरी को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है, इससे कृषक समुदायों को आय का अवसर मिलेगा. इसके अलावा हरे चारे के उन्नत बीज की मिनी किट, रियायती दर पर पशु चारा, और मवेशी शेड सब्सिडी एक प्रमुख मांग है.

4. मिश्रित फसल पैटर्न वाली प्राकृतिक खेती : आदिवासी बेल्ट के किसान मिश्रित फसल का पालन कर रहे हैं, जिसमें मुख्य फसल के रूप में मक्का और उरद, अरहर, कपास, सोयाबीन, लोबिया, तिल, धान शामिल हैं. यह एक सामान्य पारंपरिक प्रथा है, जिसका इस क्षेत्र के किसानों की ओर से बिना अधिक तकनीकी, वित्तीय और सरकारी सहायता के बिना पालन किया हैं. इसलिए, प्रमुख मांगों में से एक तकनीकी सहायता और वित्तीय सहायता है.

बायोचार और सूक्ष्मजीव बैंक की मांग

5. बाजरे की छोटी फसलों के उन्नत किस्म के बीज की मिनी किट: आदिवासी क्षेत्र के किसानों को छोटी बाजरा फसलों की उन्नत किस्मों के बीजों की आवश्यकता होती है. जैसे कि प्रोसो बाजरा, बार्नयार्ड बाजरा, फिंगर बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा और अन्य. ये बाजरा आदिवासी समुदाय की पारंपरिक फसलों का एक हिस्सा रहा है, यह वर्षा आधारित पारिस्थितिक तंत्र में मौजूदा ढीली भूमि और भौगोलिक स्थिति का समर्थन करता है. इसलिए प्रमुख मांग बेहतर बीज और तकनीकी सहायता है.

6. जैविक खाद की उपलब्धता: आदिवासी बेल्ट के किसान ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं और वे ज्यादातर अपने पोषण और आजीविका के लिए कृषि उपज पर निर्भर हैं. उनके सामने सबसे बड़ी समस्या रासायनिक खाद और इसका असंतुलित उपयोग है, जो मिट्टी को अनुपजाऊ बना रहा है और उसकी भौतिक स्थिति को खराब कर रहा है. इसलिए किसानों की मांग है की जैविक उर्वरक और जो उपकरण इसे घरेलू स्तर पर तैयार करने के लिए जरूरी है, उन्हें उपलब्ध कराया जाए.

एग्रीकल्चर एक्सपर्ट पीएल पटेल ने मीटिंग में आदिवासी समुदाय की ओर से कृषि बजट में उनकी मांगें शामिल किए जाने का मुद्दा (Demands of Vagdhara Sanstha) उठाया. पटेल ने कहा कि पिछले साल विधानसभा ने कृषि क्षेत्र में नई सुविधाएं प्रदान करने के लिए 3,756 करोड़ का बजट पारित किया था. कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने भी इसका उल्लेख किया कि जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा. कुछ मुद्दों में मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने के उपाय के रूप में बायोचार (पौधे के पदार्थ से उत्पन्न चारकोल जो कि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के साधन के रूप में मिट्टी में संग्रहीत किया जाता है) और सूक्ष्मजीवों के उपयोग के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार शामिल है.

कृषि बजट से आदिवासी किसानों को उम्मीद

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किसानों ने आदिवासी जिलों की हर पंचायत मुख्यालय पर बायोचार और सूक्ष्म जीव बैंक की मांग की है. पटेल ने कहा कि जायद (जैद) सीजन के दौरान हरे चने की खेती के प्राचर गतिविधियां आयोजित करने की दरकार है. जायद सीजन रबी और खरीफ के बीच का मौसम है, जो मार्च-अप्रैल से मई-जून तक होता है. पीएल पटेल ने कहा कि जैद के मौसम में हरे चने की खेती मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के साथ-साथ दलहन उत्पादन के लिए एक सामान्य पारंपरिक प्रथा थी. दलहन की खेती अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों और नहरों और तालाबों जैसी सिंचाई सुविधाओं के कारण संभव हो सकी.

पारंपरिक खेती जारी नहीं रख पा रहे आदिवासी किसान

उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वर्तमान में किसान मवेशियों, सिंचाई के पानी की अनुपलब्धता और समय पर गुणवत्तापूर्ण बीज नहीं मिलने के कारण इस फसल को जारी नहीं रख पा रहे हैं. किसानों ने कम से कम 15 मई तक नहर खोलने मांग की हैं, संबंधित पंचायत परिधि में पुआल मवेशियों को नियंत्रित करने के लिए एक तंत्र और एक मिनी किट में हरे चने के बीजों की उन्नत किस्म की मांग की है. पटेल ने कहा कि अगर हरे चने की खेती को पुनर्जीवित किया जाता है, तो इससे न केवल दलहन उत्पादन में वृद्धि होगी बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य में भी सुधार होगा.

Last Updated : Jan 14, 2022, 7:07 PM IST

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