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SPECIAL : आदिवासियों के स्वाभिमान के सामने हारा 'कोरोना', मुफ्त में नहीं काम के बदले लिया अनाज - initiative of mai bharat organization

कोरोना महामारी में जहां लाखों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं और सरकार या फिर भामाशाहों के भोजन वितरण पर निर्भर हैं, इसी बीच राजस्थान के आदिवासी इलाके से स्वाभीमान की एक जीती जागती मिसाल देखने को मिली है. सिरोही जिले के कुछ आदिवासियों ने ये जता दिया कि राजस्थान उन वीरों की धरती है, जहां स्वाभीमान का मोल तो गर्दन कटवाकर भी नहीं चुकाया जा सका. देखिए ये खास रिपोर्ट...

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आदिवासी क्षेत्रों के लोग कर रहे वर्क फ्राम होम

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Published : May 12, 2020, 9:02 PM IST

जयपुर. वैश्विक महामारी कोरोना और लॉकडाउन के चलते लाखों लोगों का रोजगार छिन गया है. लोगों के सामने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के भी लाले पड़ रहे हैं. राज्य सरकार के साथ मिलकर विभिन्न सामाजिक संस्थाएं लोगों तक राशन पहुंचाने का काम भी कर रही है.

'मैं भारत' संस्था भी जरूरतमंद लोगों को राशन बांटने का काम करती है. लेकिन जब यह संस्था सिरोही के एक आदिवासी क्षेत्र में पहुंची तो आदिवासियों ने राशन लेने से साफ इंकार कर दिया. इन आदिवासियों ने अपने स्वाभिमान के चलते काम के बदले अनाज लेने की बात कही. ये सभी आदिवासी सिरोही के वासा, मिंगलवा फली और होक्कफली गांव के रहने वाले हैं.

आदिवासी क्षेत्रों के लोग कर रहे वर्क फ्राम होम

संस्था के अध्यक्ष रितेश के मुताबिक जब आदिवासियों ने संस्था के लोगों के सामने काम करने की इच्छा जाहिर की तो फिर संस्था ने भी इस पर विचार किया और आदिवासियों को मास्क, थैले, विभिन्न गिफ्ट आइटम्स और फेस शील्ड बनाने का कार्य सौंपा गया.

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शुरूआत में समस्या आई, क्योंकि इन्हें मास्क बनाना नहीं आता था. लेकिन इसका भी हल निकालते हुए वीडियो कॉल के जरिए आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को ट्रेनिंग दी गई. इसके साथ ही महिलाओं को फेस शिल्ड बनाने की ट्रेनिंग भी दी गई. ट्रेनिंग मिलने के बाद बड़ी तादाद में महिलाएं मास्क और फेस शील्ड बना रही हैं.

पुरूष भी निभा रहे अपनी भागीदारी

गायों और कुत्तों के लिए बना रहे रोटी

संस्था ने इन आदिवासियों को जानवरों के लिए रोटियां बनाने का भी काम सौंपा है. जिसके बदले लोगों को गेहूं, बाजरा, मक्का और गुड़ दिया जा रहा है. इसके साथ ही आदिवासियों ने स्थानीय भाषा में चौपड़ कहे जाने वाले एक रजिस्टर में अपने नाम भी रिकॉर्ड में लिखवाए हैं. ताकि वह इस कठिन समय में लिए गए राशन को किसी गरीब को वापस देकर इसका कर्ज चुका सकें.

खुद ही चक्की से पिटते हैं आटा

आदिवासी क्षेत्र के लोग खुद ही चक्की से गेहूं पीसकर आटा तैयार कर रहे हैं और फिर उससे बड़ी तादाद में रोटियों का निर्माण किया जा रहा है. आदिवासी क्षेत्र में हर उम्र के लोग जोर शोर से काम करने में जुटे हुए हैं. जिनका जज्बा देखने लायक है. इन रोटियों को सिरोही और आबू के शहरी इलाकों में जानवरों के लिए भिजवाया जा रहा है.

लड़कियां कर रही मास्क बनाने का काम

स्वाभिमान से बड़ा कुछ नहीं

आदिवासी क्षेत्र की युवतियां भी बढ़-चढ़कर मास्क और थैले बनाने का काम कर रही हैं. युवतियों और महिलाओं का कहना है कि लॉकडाउन के चलते उनका रोजगार छिन गया था और जब 'मैं भारत' संस्था के लोग उन्हें राशन देने के लिए गांव पहुंचे, तो गांव के सभी लोगों ने मुफ्त का राशन लेने से साफ इनकार कर दिया. इसके साथ ही अपने स्वाभिमान के खातिर गांव के लोगों ने संस्था के लोगों से रोजगार उपलब्ध कराने की मांग की.

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कुछ लोग करते थे खाना बनाने का ही काम

संस्था के द्वारा रोजगार उपलब्ध करवाए जाने के बाद सब खुशी-खुशी अपना अपना काम करने में जुटे हुए हैं और काम के बदले राशन भी पा रहे हैं. इसके साथ ही गांव के कुछ युवा ऐसे भी हैं. जो खाना बनाने का काम करते थे. लेकिन लॉकडाउन के चलते उनका यह काम छूट गया. ऐसे युवाओं को भी संस्था के द्वारा खाना बनाने का काम सौंपा गया है.

संस्था कर रही पूरा सहयोग

सिरोही के आदिवासियों को 'मैं भारत' संस्था का पूरा सहयोग मिल रहा है और संस्था के प्रयास के चलते ही आदिवासियों को रोजगार उपलब्ध हो सका है. संस्था के द्वारा मास्क बनाने के लिए कपड़ा, रोटियों के लिए अनाज आदि सामान भी गांव से ही खरीदा जा रहा है. संस्था के अध्यक्ष रितेश शर्मा का कहना है कि यदि उनका यह मॉडल सफल रहा तो इसे अन्य गांव में भी वह जल्द शुरू करेंगे.

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