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राजद्रोह कानून को लेकर सामाजिक संगठनों ने गहलोत सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

राजद्रोह कानून को लेकर प्रदेश के सामाजिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सामाजिक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि सरकार राजद्रोह कानून का प्रयोग अपने विरोधियों के खिलाफ न करे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने 2 अप्रैल 2019 को जारी अपनी चुनावी घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि 124 A का दुरुपयोग सरकार द्वारा अपने विरोधियों के विरुद्ध किया जा रहा है.

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गहलोत सरकार के खिलाफ खोला मोर्चा

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Published : Jul 18, 2020, 7:54 PM IST

जयपुर. राजद्रोह कानून को लेकर प्रदेश के सामाजिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. सामाजिक संगठनों ने सरकार से मांग की है कि राजद्रोह कानून का प्रयोग अपने विरोधियों के खिलाफ न करे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने 2 अप्रैल 2019 को जारी अपनी चुनावी घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि 124 A का दुरुपयोग सरकार द्वारा अपने विरोधियों के विरुद्ध किया जा रहा है. जबकि वर्तमान समय में इस कानून की कोई आवश्यकता नहीं हैं और इसे हटाया जाएगा. हमारी मांग है कि कांग्रेस सरकार अपने घोषणा पत्र मतदातओं को दिये गये वचन की पालना करे और पुलिस को इस धारा के अन्तर्गत कार्रवाई करने से रोके.

सामाजिक कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा कि पिछले कुछ हफ्तों में देखा गया है कि राजस्थान में सत्ता दल के कुछ विधायक और विपक्षी दल मिलकर कांग्रेस की निर्वाचित सरकार को तथाकथित रूप में गिराने का प्रयास कर रहे हैं. सरकार को अस्थिर करने का यह घिनौना खेल ऐसे समय खेला जा रहा है जबकि प्रदेश कोरोना संक्रमण से ग्रस्त है और सबसे पहले जनता के जीवन एवं स्वास्थ्य की रक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

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सत्ता की राजनीति को लेकर चल रहे इस घृणित प्रयास के दौर में पीयूसीएल को यह जानकार धक्का पहुंचा है कि राजस्थान सरकार ने 120 B षडयंत्र और 124 A राजद्रोह कानून के अन्तर्गत तीन एफआईआर दर्ज करवाई हैं. ये एफआईआर महेश जोशी मुख्य सचेतक, कांग्रेस पार्टी द्वारा संख्या 47/20 दिनांक 10.07.2020, 48/20 दिनांक 17.07.2020 और 49/2020 दिनांक 17.07.2020 द्वारा SOG थाना, ATS & SOG डिस्ट्रिक्ट में दर्ज की गई है. हमारे लिए यह गंभीर बात है कि राजद्रोह का कानून का उपयोग सरकार अपने विरोधियों के विरुद्ध कर रही है. पीयूसीएल 2011 से लगातार राजद्रोह कानून को निरस्त किये जाने की मांग करती आई है. हजारों लोगों से इसके विरुद्ध हस्ताक्षर एकत्रित कर राष्ट्रपति को भेजे गये हैं. राज्य सभा में भी इसे हटाने की याचिका विचाराधीन है और विभिन्न संसदीय समितियों और विधि आयोगों को भी इस धारा को हटाने के लिए अनेक बार लिखा गया है.

विधायकों के विरुद्ध पहली बार प्रयोग

भारत में यह पहली बार हुआ है कि इसे कानून का दुरुपयोग निर्वाचित विधायकों के विरुद्ध किया जा रहा है. वह भी राजस्थान में. यदि हम कानून के स्तर पर बात कहें तो केदार नाथ सिंह बनाम बिहार (सरकार) 1962 सर्वोच्य न्यायालय एआई 0955 A जिसमें इस कानून की वैधता स्वीकार की गई थी. जिसमें कहा गया है कि इसकी वैधता तभी है जब विरोध के द्वारा हिंसा भड़काई गई हो. यह स्पष्ट है कि राजस्थान में कोई हिंसा नहीं हुई है. अतः यह कानून का सरासर दुरुपयोग है.

यह कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र 2019 के विरूद्ध

कांग्रेस पार्टी ने 2 अप्रैल 2019 को जारी अपनी चुनावी घोषणा पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि 124 A का दुरुपयोग सरकार द्वारा अपने विरोधियों के विरुद्ध किया जा रहा है. जबकि वर्तमान समय में इस कानून की कोई आवश्यकता नहीं हैं और इसे हटाया जाएगा. हमारी मांग है कि कांग्रेस सरकार अपने घोषणा पत्र मतदातओं को दिये गये वचन की पालना करे और पुलिस को इस धारा के अन्तर्गत कार्रवाई करने से रोके.

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भ्रष्टाचार निरोधक कानून का प्रयोग करे

भारतीय दंड संहिता में सरकार को अस्थिर करने के प्रयास को आपराधिक कार्रवाई नहीं बताया गया है. अगर सरकार राजस्थान में हो रही घटनाओं और मध्यप्रदेश, कर्नाटक में घटे घटनाक्रम आदि को आपराधिक बनाना चाहती है तो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के अध्याय 3 के अन्तर्गत रिश्वत लेने और देने के प्रयास के तहत कार्रवाई कर सकती है. विधायकों को भ्रष्टाचार निरोधक कानून में लोक सेवक माना गया है और उनके विरुद्ध इसमें कार्रवाई हो सकती है.

सरकार अस्थिर करने के विरूद्ध कानून बनाए

विधिक रूप से स्थापित सरकार को धन और अन्य प्रलोभन देकर अस्थिर बनाए जाने की गतिविधियों के रोकथाम करने के लिए संविधान में समुचित संशोधन करना होगा. क्यूंकि दल बदल विरोधी कानून इस तरह को परिस्थिति को रोकने के लिए प्रभाववारी नहीं रहा है. अतः कानून में परिवर्तन लाए जाए. पीयूसीएल का स्पष्ट मान्यता है कि राजद्रोह कानून का उपयोग ऐसी परिस्थिति में पूर्णतः अनुचित है. हमारी मांग है इसका दुरुपयोग रोके और इस कानून में दंड संहिता से पूरी तरह बाहर किया जाए.

इस कानून के दुरुपयोग की पृष्ठभूमि

यह प्रमाणित तथ्य है कि विभिन्न पुरानी और वर्तमान सरकारों द्वारा सेक्शन 124 A का उपयोग सरकार की गतिविधियों और नीतियों की आलोचना करने वालों के विरुद्ध किया जाता रहा है. ब्रिटिश सरकार के साम्राज्यवादी पृष्ठभूमि में बनाए गए इस कानून का उपयोग ब्रिटिश काल में स्वाधिनता सेनानियों के विरुद्ध किया गया और वर्तमान में मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ-साथ आम नागरिकों के विरुद्ध किया जा रहा है.

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इसके अन्तर्गत उन्हें जेलों में ठूंसा जा रहा है. यहां तक कि कई बच्चों के खिलाफ भी इसका इस्तेमाल किया गया है. एनडीए की सरकार आने के बाद इसका खुलेआम दुरुपयोग और बढ़ गया है और जो भी सरकार की आलोचना करने के लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करता है, वह इसका शिकार बन जाता है. यह ध्यान रखने की बात है इंग्लैण्ड में अपनी साम्राज्यवादी सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए 1870 में यह भारतीय दण्ड संहिता में यह कानून बनाया था.

लेकिन उसने खुद राजद्रोह को इस आधार पर समाप्त कर दिया था कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत अधिकारों को दुष्प्रभावित करता है. यह महत्वपूर्ण है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1951 में धारा 124 A को अत्यन्त आपत्तिजनक बताया था और कहा था कि व्यावहारिक और ऐतिहासिक रूप से इसका कोई स्थान नहीं है.

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