जयपुर. नींदड़ आवासीय योजना को लेकर एक बार फिर से किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है. किसानों ने मंगलवार को प्रभावित भूमि पर गड्ढे खोदकर जमीन में समाधि ली है. साथ ही किसानों की मांग है कि उनकी जमीन का नए भूमि अधिग्रहण बिल के तहत मुआवजा दिया जाए.
नींदड़ के किसानों ने ली जमीन समाधि 2 अक्टूबर 2017, ये वही दिन था जब देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मना रहा था और नींदड़ का किसान अपनी जमीन बचाने के लिए जमीन समाधि ले रहा था. करीब ढाई महीने तक चले उस प्रदर्शन के दौरान तत्कालीन बीजेपी सरकार चौतरफा घिरती हुई नजर आई.
जिसके बाद आखिर में सरकार को अपना फैसला वापस लेते हुए किसानों की मांग माननी पड़ी. सरकार से मिले आश्वासन के बाद इस आंदोलन को खत्म किया गया था. वहीं, उस वक्त विपक्ष में मौजूद कांग्रेस के अशोक गहलोत ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया था.
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फिलहाल, इस समय राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और प्रदेश के मुखिया भी खुद अशोक गहलोत हैं. बावजूद इसके करीब 2 साल बाद नींदड़ के किसानों को एक बार फिर अपनी जमीन बचाने के लिए जमीन में समाधी लेनी पड़ी है. नींदड़ के किसानों ने मंगलवार को जमीन के मुआवजे के लिए प्रदर्शन शुरू किया है.
दरअसल, जेडीए शहर के सीकर रोड पर प्रस्तावित नींदड़ आवासीय योजना के लिए 1300 बीघा जमीन का कब्जा ले रहा है. इस पर कब्जा लेने के बाद योजना का हाईवे पर फ्रंट मिल जाएगा. क्योंकि जेडीए की आर्थिक स्थिति खराब है और नए भूमि अवाप्ति कानून के बाद जमीन लेने में दिक्कत है.
ऐसे में जेडीए पहले से अवाप्त प्रक्रिया में चल रही जमीन पर कब्जा लेने की जुगत में है और इसी का नींदड़ के किसान और ग्रामीण विरोध कर रहे हैं. किसानों की मांग है कि जब केंद्र सरकार की ओर से नए भूमि अधिग्रहण बिल को लागू किया जा चुका है तो फिर पुराने भूमि अधिग्रहण बिल के अनुसार उनकी जमीन को क्यों अवाप्त किया जा रहा है.
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बता दें कि साल 2020 के पहले ही दिन से जेडीए ने नींदड़ आवासीय योजना के तहत काश्तकारों और ग्रामीणों की जमीन का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया था. दावा था कि ग्रामीणों से समझाइश कर योजना में बाधा बन रहे अतिक्रमण को हटाया जा रहा है. यही नहीं जेडीए ने किसानों को भविष्य में होने वाले लाभों की जानकारी दिए जाने का भी दावा किया था.
लेकिन इसके विपरीत किसानों का आरोप है कि जेडीए प्रशासन ने एक बार सुनवाई तक नहीं की. यही वजह है कि किसानों को एक बार फिर से जमीन में समाधि लेते हुए आंदोलन की राह पर उतरना पड़ा है.