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स्पेशल: राजस्थान के सबसे बड़े मंदिर श्रीनाथजी जी के भंडार पर 'लॉक', 8 करोड़ से ज्यादा की आय प्रभावित

कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बीच प्रदेश के देवस्थानों की कमाई सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है. नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर जिसकी पिछले वित्तीय वर्ष में आय 90.68 करोड़ रुपये थी. इस लॉकडाउन में उसे 8 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ है.

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श्रीनाथजी मंदिर

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Published : May 6, 2020, 4:58 PM IST

नाथद्वारा (राजसमंद).प्रदेशके देवस्थानों पर कोरोना का ग्रहण लगा हुआ है. राजसमंद जिले के नाथद्वारा में स्थित श्रीनाथजी मंदिर के कपाट भी श्रद्धालुओं के बंद हैं. लेकिन प्रभु का नित्य सेवा क्रम पहले की तरह ही जारी है. श्रीनाथजी मंदिर को प्रभु की हवेली भी कहा जाता है. यहां दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से और खासकर गुजरात से सैकड़ों श्रद्धालु प्रतिदिन आते थे.

श्रीनाथजी मंदिर के भंडार पर कोरोना ने लगाया 'लॉक'

हर दिन यहां भक्तों का तांता लगा रहता था और दो से चार हजार लोग हर रोज श्रीनाथजी के दर्शन करते थे. वहीं, प्रमुख उत्सवों जैसे जन्माष्टमी, होली, दीपावली पर यह संख्या बढ़ कर लाखों में पहुंच जाया करती थी. इस दौरान श्रद्धालुओं की ओर से यहां चढ़ाए जाने वाला चढ़ावा मंदिर की आय का मुख्य स्त्रोत है. लेकिन एक महीने के अधिक समय से लागू लॉकडाउन के चलते मंदिर की आय पर असर पड़ा है.

मंदिर की आय पर लॉकडाउन का असर

जानकारी के अनुसार मंदिर को चढ़ावे, भेंट और प्रसाद की बिक्री के अलावा अन्य शहरों में स्थित मंदिरों से सालाना लगभग 30 से 40 करोड़ की आय होती है. वहीं, देश भर में फैली संपत्तियों जैसे दुकानों, मकानों और धर्मशाला, कॉटेज के किराए और एफडी पर ब्याज से 40 से 50 करोड़ की आय होती है. जबकि सेवा पूजा, भोग, वेतन, भत्ते और संविदाकर्मियों की तनख्वाह को मिला कर लगभग 50 से 60 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च होते है.

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मंदिर की आय में एक बड़ा हिस्सा वैष्णवों के चढ़ावे से आता था. साथ ही मंदिर की ओर से संचालित धर्मशालाओं, कॉटेजों और भोजनगृह से भी आय होती थी. लेकिन लॉकडाउन के चलते भक्तों के लिए मंदिर बंद है और मंदिर की आय भी. मंदिर मंडल के मुख्य निष्पादन अधिकारी जितेंद्र कुमार ओझा ने बताया कि मंदिर को पिछले वित्तीय वर्ष में 90.68 करोड़ की आय हुई थी, जबकि 59.52 करोड़ खर्च हुए थे.

इस तरह 31.16 करोड़ की बचत हुई थी, जो वर्ष 2017-2018 से 24.49 करोड़ अधिक थी. लेकिन इस वर्ष नुकसान होना तय है. अभी मंदिर मंडल की आय लगभग ना के बराबर है. जबकि गोशाला और कर्मचारियों की तनख्वाह पर 2 करोड़ प्रतिमाह और अन्य खर्च लगभग 50 से 60 लाख रुपये प्रतिमाह हो रहा है. ऐसे में अगर लॉकडाउन के दौरान मंदिर की आय को हुए नुकसान का आकलन किया जाए तो करीब 8 लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ है.

मदद के लिए आगे आया मंदिर

कोरोना महामारी के दौरान हर कोई अपने स्तर पर लोगों की मदद के लिए प्रयास कर रहा है. इसी कड़ी में श्रीनाथ जी मंदिर की ओर से प्रधानमंत्री राहत कोष और मुख्यमंत्री राहत कोष सहित विभिन्न राहत कोष में 40 लाख रुपए की मदद की गई है. इसके अलावा राशन सामग्री के पैकेट भी मंदिर की ओर से वितरित किए गए हैं. साथ ही मंदिर में बनने वाले प्रसाद को भी जरूरतमंद लोगों में वितरित किया जा रहा है.

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भले ही इस वक्त मंदिर में श्रद्धालुओं की आवाजाही नहीं है. लेकिन श्रीनाथजी की सेवा उसी रूप से जारी है जैसे आम दिनों में की जाती है. प्रभु वैसा ही ठाट भोग रहे हैं जैसे आम दिनों में होता है. क्योंकि पुष्टि संप्रदाय में प्रभु की सेवा किसी भी कारण, किसी भी परिस्थिति में बाधित नहीं होती है.

100 सालों में पहली बार लंबे समय तक मंदिर बंद

मंदिर के अधिकारी सुधाकर शास्त्री के मुताबिक इससे 100 वर्ष पूर्व स्पेनिश फ्लू महामारी के चलते तत्कालीन तिलकायत महाराज श्री ने मंदिर को आम दर्शनार्थियों के लिये बंद किया था. उन्होंने बताया कि वर्तमान में संक्रमण के खतरे और सरकार की गाइडलाइंस को देखते हुए मंदिर के कर्मचारियों को भी कम किया गया है. वहीं, अब केवल आवश्यक सेवा कार्य वालों को ही मंदिर में प्रवेश दिया जा रहा है.

मंदिर अधिकारी ने बताया कि प्रभु की अष्टयाम सेवा हर रोज की तरह ही जारी है. सेवा कर्मियों को पूर्व की भांति ही मेहनताने के रूप में प्रसाद और नगद राशि दी जा रही है, जो व्यक्ति प्रसाद नहीं लेना चाहते उन्हें उसके बदले नगद राशि दी जा रही है. सुधाकर शास्त्री ने कहा कि इस संकट के समय में सभी प्रभु से यही प्रार्थना कर रहे हैं, कि इस महामारी का जल्द अंत हो और भक्तों को श्रीनाथजी के दर्शन का लाभ मिल सके.

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क्या होती है अष्टयाम सेवा

अष्टयाम सेवा का अर्थ है कि प्रतिदिन प्रभु के 8 दर्शन होते हैं. जिसमें ऋतु अनुरूप प्रभु को राग, भोग और श्रंगार के माध्यम से प्रसन्न किया जाता है. श्रीजी को आठों दर्शन में अलग-अलग भोग लगाया जाता है. कीर्तनकार की ओर से अलग-अलग दर्शनों में अलग-अलग कीर्तन का गान किया जाता है. साथ ही आठों समय अलग श्रंगार से सुशोभित किया जाता है. इन कार्यों को करने के लिए सेवा वालों को प्रवेश दिया जा रहा है. वहीं, दर्शनार्थियों के ना होने से अल्प समय में ही सेवा करने वाले अपनी सेवा करके फिर लौट जाते हैं.

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