जयपुर.राजधानी के सांगानेर निवासी शरद माथुर को जब रामचरित मानस को पढ़ने में बड़ी दिक्कत आई तो उन्होंने पेंट व ब्रश से बड़े शब्दों में पूरी रामचरित मानस लिख दी. छः साल में 3 हजार ए-3 साइज के पन्नों पर 1.5 इंच के बड़े-बड़े अक्षरों में मानस के सभी काण्ड व चौपाईयों को माथुर ने बड़ी खूबसूरती से लिख दिया. महाकाव्य के हर काण्ड को उन्होंने 21 खण्डो में तैयार किया है जिसका कुल वजन करीब 150 किलो है.
घर में सुरक्षित जगह रखे रामचरित मानस के 21 खण्ड संगीत की शिक्षा देने वाले शरद ने बताया कि वे अपने साथियों के साथ रामचरित मानस और सुंदरकांड का पाठ करते हैं. चश्मा लगा होने के कारण उन्हें पुस्तकों के अक्षर छोटे और धुंधले दिखाई देते थे. ऐसे में सबसे पहले उन्होंने सुंदरकाण्ड को बड़े अक्षरों में लिखना शुरू किया. जिसके बाद उनमें आत्मविश्वास बढ़ गया. और फिर उन्होंने पूरी रामचरितमानस को लिखने की ठानी.
अयोध्या मंदिर में करेंगे भेंट!
शरद माथुर बताते है कि उन्होंने इसकी शुरुआत तब तब की थी जब साल 2014 में नरेन्द्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे. तब अयोध्या राम मंदिर के निर्माण की आस जगी थी. ऐसे में उन्होंने पेंट और ब्रश से रामचरित मानस की चौपाइयों को लिखना शुरू किया और लिखते चले गए. शरद को विश्वास है कि अयोध्या में राम मंदिर बनेगा और वे अपनी इस अनूठी कृति को वहां भेंट करेंगे.
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शरद को शुरूआती दौर में ये सब करना असंभव लगा लेकिन उनकी धर्मपत्नी पूनम और दोनों बेटों ने उनके इस कार्य में हाथ बंटाया. शरद खुद चौपइयों को ब्रश से लिखते तो बाकी लोग पन्ने पर बॉर्डर बनाने और लेमिनेशन का काम करते. जैसे-जैसे ये महाकाव्य रूप लेने लगा तो शरद के मित्र व अन्य लोग भी इस पुनित कार्य के लिए आगे आने लगे.
सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल...
खास बात यह है कि इस रामचरितमानस की रचना में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी छुपी है. क्योंकि मानस के बड़े पन्नों को बांधने का काम लेने को कोई भी तैयार नहीं था. इसके लिए वे अच्छा पैसा देने को भी तैयार थे लेकिन अंत में एक मुस्लिम कारिगार ने ही मानस को बांधने का काम किया. इतना ही नहीं बाइंडिंग करने वाले शख्स मुबारक खान ने इसका मेहनताना भी महज 350 रुपए ही लिया.
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शरद माथुर ने जो कर दिखाया वो वाकई काबिले तारीफ है. जिसे लोग नामुमकिन बता रहे थे शरद ने उसे मुमकिन कर दिखाया. माथुर पर इस अनूठी कृती के लिए ये लाइने बिलकुल स्टीक बैठती हैं. कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों