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Published : Dec 18, 2021, 7:58 PM IST

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Historical clock of jaipur: यादों में न रह जाए 'यादगार' की ऐतिहासिक घड़ी, वर्षों से बंद पड़ी है जयपुर...न जाने कब बदलेगा 'वक्त'

कभी जयपुर की ऐतिहासिक घड़ियां (Historical clock of jaipur) ही शहर की रफ्तार तय किया करती थीं. लेकिन सरकार की अनदेखी के कारण अब ये घड़ियां शोपीस बनकर रह गई हैं. वर्ष 1912 में इंग्लैंड के नॉटिंघम से लाई गई ऐतिहासिक घड़ी कभी शहर अजमेरी गेट पर बने किंग एडवर्ड मेमोरियल (यादगार) की शान हुआ करती थी लेकिन अब वर्षों से बंद पड़ी है. जयपुर के इतिहासकारों का कहना है कि सालों से बंद पड़ी ये घड़ी शहर आने वाले पर्यटकों को क्या संदेश देती होगी. सरकार को इस ऐतिहासिक धरोहरों की ओर ध्यान देना चाहिए.

Historical clock of jaipur
यादों में न रह जाए 'यादगार' की ऐतिहासिक घड़ी

जयपुर. सालों पहले लोगों के पास घड़ियां नहीं हुआ करती थीं. बमुश्किल किसी के पास घड़ियां हुआ करती थीं. जयपुर में भी घड़ियां आम आदमी की पहुंच से दूर रहती थी. जंतर-मंतर पर धूप-छांव से समय का अंदाजा लगाने के साथ ही जयपुर में मौजूद सभी दरवाजों पर लगे घंटों के टंकार ही समय सूचकांक हुआ करते थे. हालांकि 1912 में इंग्लैंड के नॉटिंघम से 3 घड़ियां लाकर जयपुर के अजमेरी गेट पर बने किंग एडवर्ड मेमोरियल (यादगार), चांदपोल स्थित सेंट एंड्रयूज चर्च और सिटी पैलेस में लगाई गई थी जो जयपुर के इतिहास का हिस्सा बन गई है. हालांकि इनमें से यादगार की सालों से बंद पड़ी घड़ी जयपुर की साख पर बट्टा लगा रही है.


आधुनिक भारत में घड़ी होना एक आम बात है. दीवार घड़ी, रिस्ट वॉच हर घर में देखी जा सकती है. हालांकि अब तो स्मार्ट वॉच का जमाना आ गया है, लेकिन पहले घड़ी स्टेटस सिंबल हुआ करती थी. दहेज में दी जाने वाली दीवार घड़ी को भी अन्य सामान के साथ ठेले पर सजा कर बैंड-बाजे के साथ घुमाया जाता था. अंग्रेजों की पॉकेट वॉच भी किसी अजूबे से कम नहीं थी. जयपुर में भी घड़ियां सिर्फ रसूखदारों की हवेलियों की शोभा बढ़ाती थी. आम आदमी तो महज जयपुर के दरवाजों पर घंटों की टंकार से ही अपनी दिनचर्या निर्धारित करता था.

इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत से बातचीत

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जब जयपुर में अजमेरी गेट पर किंग एडवर्ड मेमोरियल यादगार (Historical clock of King Edward Memorial 'Yadargaar') की इमारत बनी तो यहां सार्वजनिक घड़ी लगाने के लिए पश्चिम दिशा में मीनार बनाकर इंग्लैंड के नॉटिंघम से लाई गई घड़ी को यहां लगाया गया. ऐसे ही दो अन्य घड़ियों को चांदपोल के सेंट एंड्रयूज चर्च और सिटी पैलेस में भी लगाया गया. बताया जाता है कि यादगार किंग एडवर्ड की याद में बनाया गया था और शुरुआत में ये विदेशी पावणों के ठहरने की जगह थी. ऐसे में यहां पर एक घड़ी लगाई गई चूंकि अंग्रेज क्रिश्चियन थे और चांदपोल के बाहर बनाई गई चर्च में ही प्रार्थना करते थे. ऐसे में यहां घड़ी लगाने को प्राथमिकता दी गई. जब इन दो स्थानों पर घड़ी लगी तो जयपुर राज परिवार के निवास स्थान सिटी पैलेस में भी घड़ी लगना जरूरी समझा गया. ऐसे में तीसरी घड़ी के लिए सिटी पैलेस स्थान को चुना गया.

इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत से बातचीत

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इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि अंग्रेजों के शासन में नई व्यवस्था और नई तकनीकी साधन स्थापित हुए. शुरुआत में जिन तीन स्थानों पर घड़ियां लगाई गईं, उनके लिए अलग से मीनार और उस मीनार में एक कमरा तैयार किया गया. इसमें घड़ी के लीवर और दूसरे इंस्ट्रूमेंट लगाए गए थे. शुरुआत में तीनों की घड़ियां चालू हालत में थी. हालांकि एक बार सिटी पैलेस की घड़ी खराब हुई तो कोई उसे सुधार नहीं सका. तब दर्जियों के मोहल्ला निवासी छोटेलाल घड़ीसाज ने इस घड़ी को सुधारा था. जिसपर महाराजा मानसिंह ने छोटेलाल को ₹60 मासिक वेतन पर रखकर पेंशन और जागीर भी दी. बाद में सिटी पैलेस की घड़ी के पुराने इंस्ट्रूमेंट हटाकर नए और आधुनिक इंस्ट्रूमेंट लगा दिए गए.

इतिहासकार शेखावत ने व्यंग्य करते हुए कहा कि वर्तमान में सिटी पैलेस और चांदपोल की घड़ी सही चल रही है, क्योंकि वे प्राइवेट हाथों में है. लेकिन यादगार की घड़ी सरकारी हो गई है. जयपुर के पूर्व सांसद गिरधारी लाल भार्गव ने इस घड़ी पर ध्यान दिया था. उन्होंने इसे जयपुर की शान बताते हुए ठीक कराने के लिए ₹50000 सांसद कोष से जयपुर कलेक्टर को भिजवाए थे, लेकिन इसे आज तक ठीक नहीं कराया जा सका है. उन्होंने सवाल उठाए कि किंग एडवर्ड मेमोरियल यादगार की इमारत जयपुर के बीच में मौजूद है. जयपुर आने वाले पर्यटकों की इस पर नजर जरूर पड़ती होगी. ऐसे में बंद पड़ी घड़ी देखकर वे यहां के प्रशासन की क्या छवि लेकर लौटते होंगे.

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