जयपुर.सियासी संकट के दौरान प्रदेश अध्यक्ष बन कांटों का ताज पहनने वाले गोविंद सिंह डोटासरा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अपना पहला जन्मदिन 1 अक्टूबर को मनाएंगे. डोटासरा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अपील की है कि उनके जन्मदिन पर लोगों को मास्क बांटे और कोरोना गाइडलाइन के प्रति लोगों को जागरूक करें. डोटासरा 56 साल के हो गए हैं.
वकीलगिरी छोड़कर राजनीति में आए थे डोटासरा राजस्थान में सियासी महासंग्राम के बीच 14 जुलाई को गोविंद सिंह डोटासरा ने प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी संभाली थी. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद उनका यह पहला जन्मदिन होगा जिसे उनके समर्थक और कांग्रेस कार्यकर्ता जोर शोर और धूमधाम से बनाने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन कोरोना संकट के चलते डोटासरा ने अपने समर्थकों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से अपील की है कि वह उनका जन्मदिन सादगी से मनाएं.
पढ़ें:गहलोत कैबिनेट की बैठक, किसानों को राहत देने को लेकर चर्चा
डोटासरा ने अपने समर्थकों से कहा है कि अगर वो उनका जन्मदिन मनाना ही चाहते हैं तो इस मौके पर वो लोगों को कोरोना के बारे में जागरूक करें. साथ ही खुद भी मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें. डोटासरा ने कहा कि उनके जन्मदिन पर उनको सार्थक तोहफा ये होगा कि अगर उनके समर्थक जिन लोगों के पास मास्क नहीं है उनको मास्क वितरित करें.
डोटासरा का राजनीतिक सफर
1 अक्टूबर 1964 को गोविंद सिंह डोटासरा जन्म हुआ था. डोटासरा प्रदेश कांग्रेस के वैसे तो 29 में अध्यक्ष है लेकिन अगर दो बार या ज्यादा बार अध्यक्ष बने नेताओं के नाम हटा दिया जाए तो डोटासरा राजस्थान कांग्रेस के 24वें अध्यक्ष हैं. साल 2005 में वकालत के पेशे से राजनीति में आए और फिर प्रधान बने. 2008 में पहली बार वह लक्ष्मणगढ़ विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते. पहली बार उनकी जीत का मार्जिन भले ही कम रहा हो लेकिन अब लक्ष्मणगढ़ की सीट को गोविंद सिंह डोटासरा की परंपरागत सीट और गढ़ के रूप में माना जाता है.
डोटासरा लगातार तीन बार इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं, इससे पहले तीसरी बार चुनाव में जीतने और विपक्ष में रहते हुए लगातार सत्ताधारी दल को घेरने के रिवॉर्ड के तौर पर उन्हें प्रदेश का शिक्षा मंत्री बनाया गया. जब राजस्थान में सियासी तूफान आया तो प्रदेश अध्यक्ष पद संभालने के के लिए कांग्रेस पार्टी को सबसे योग्य उम्मीदवार गोविंद सिंह डोटासरा ही दिखे. हालांकि यह पद डोटासरा के लिए कांटों के ताज से कम नहीं है क्योंकि एक तो उन्हें नए सिरे से कांग्रेस का संगठन खड़ा करना है, दूसरा सभी गुटों को साध कर चलना है जो अपने आप में एक बड़ी चुनौती है.