जयपुर .लोकसभा चुनाव के सियासी जमीन पर चढ़ते राजनीतिक पारे के बीच कर्नल सोनाराम और हनुमान बेनीवाल का नाम खासा चर्चा में बना हुआ है. लोकसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं को लेकर
भाजपा ने जो फैसला किया है. उसने कई तरह की राजनीतिक चर्चाओं को जन्म दे दिया है. पांच साल पहले पार्टी में शामिल होने वाले सांसद कर्नल सोनाराम जहां इस बार टिकट की दौड़ में मात खा गए. वहीं, हनुमान बेनीवाल भाजपा के साथ गठबंधन करते हुए एनडीए का घटक दल बनने में कामयाब हो गए.
राजस्थान में मिशन 25 को बनाते हुए दोबारा 2014 के प्रदर्शन को दोहराने की उम्मीद लिए भाजपा हर रणनीति को अमलीजामा पहनाने में जुटी है. इस बीच दोनों दिग्गज नेताओं सोनाराम और बेनीवाल को लेकर पार्टी स्तर पर किए गए निर्णय ने सियासी चर्चाओं को बढ़ा दिया है. दोनों नेताओं का नाम सियासी चर्चाओं में इसलिए भी खास है, क्योंकि सोनाराम और बेनीवाल राजनीति के जमीन पर गहरे दोस्त माने जाते हैं. दोनों नेताओं की दोस्ती विधानसभा चुनाव के दौरान भी उस समय चर्चा में आई थी. जब बेनीवाल ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि अगर सोनाराम सीएम हों तो मैं उनके साथ आ जाऊंगा. उनके इस बयान के बाद पूरे चुनावभर बेनीवाल और सोनाराम की दोस्ती के चर्चे बने रहे. ऐसे में इस बार के लोकसभा के सियासी जमीन पर भी दोनों नेताओं पर सभी की निगाहें टिकी हुई थी. चुनावी घमासान के बीच सोनाराम के टिकट की दावेदारी को भाजपा ने इस बार सिरे से नकार दिया. बाड़मेर-जैसलमेर सीट से सोनाराम 2014 में सांसद बने. लेकिन, इस बार भाजपा ने उनकी जगह पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह के सामने मैदान में उतारा है. कर्नल सोनाराम जयपुर से दिल्ली तक तमाम भागदौड़ और मेल-मुलाकात के बाद भी टिकट हासिल करने में कामयाब नहीं रहे.