जयपुर. राजधानी में 3 दिन बाद रविवार को कुछ देर के लिए मौसम खुला तो जगह-जगह सड़कों पर कचरे के ढेर लगे नजर आए. ऐसे में जहन में सवाल आया कि स्वच्छता सर्वेक्षण 2020 का दूसरे चरण शुरू हो गया है. तो फिर सर्वेक्षण में शहर की रैंकिंग कैसे सुधर पाएगी. इसी सवाल का जवाब ढूंढने के लिए ईटीवी भारत जिम्मेदारों के पास पहुंचा. इस संबंध में स्वास्थ्य उपायुक्त नवीन भारद्वाज से जानकारी मिली कि निगम की ओर से स्वीपिंग, डोर टू डोर कचरा कलेक्शन, कचरे का डिस्पोजल और शौचालय को लेकर काम किया जा रहा है. स्वीपिंग के लिए बीट प्रणाली, घरों से कचरा उठाने के लिए डोर टू डोर और सेग्रीगेशन पर काम किया जा रहा है. साथ ही शहर में बने शौचालयों की भी दिन में दो बार सफाई हो रही है. हालांकि उन्होंने माना कि वाहनों की संख्या कम होने के चलते सड़क पर कचरा डिपो बढ़ गए हैं. ऐसे में अब उनके फेरे बढ़ाकर शहर को डिपो लैस किया जाएगा.
निगम की ओर से हर महीने तकरीबन 33 करोड़ रुपए सफाई व्यवस्था पर खर्च किए जा रहे हैं. इसमें घरों से कचरा उठाने के लिए बीवीजी कंपनी को करीब साढे़ छह करोड़ रुपए भुगतान किया जा रहा है. वहीं 8 हजार 875 सफाई कर्मचारियों को तकरीबन 25 करोड़ 94 लाख रुपए वेतन दिया जा रहा है. इसके अलावा निगम के संसाधनों पर भी 50 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं. इसके बाद भी शहर में सफाई व्यवस्था बेहाल नजर आती है. खुद डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज ने भी इस पर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा कि बीते 6 से 7 महीने से शहर के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. जो कचरा डिपो खत्म हो गए थे. वो दोबारा पनप रहे हैं. घरों तक हूपर भी नहीं पहुंच रहे हैं.