जयपुर. प्रदेश में 22 मार्च से लगे लॉकडाउन के कारण 70 दिनों से घरों में कैद लोग बाहर झांककर खुली हवा में सांस लेने की कोशिश कर रहे हैं. दुकानदार 1 जून से दो जून की रोटी के इंतजाम में लग गए हैं. हालांकि मजदूर वर्ग अभी भी रोजगार की बांट जोह रहा है.
दो जून की रोटी के लिए मोहताज है परिवार इसका कारण साफ है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लगाए गए लॉकडाउन के बाद अभी तक ना तो कंस्ट्रक्शन का काम शुरू हुआ है और ना ही शादी समारोह हो रहे हैं. ऐसे में सिटी पैलेस के पास खुले आसमान के नीचे अपने 6 बच्चों के साथ रह रहे सागर को दो जून की रोटी का इंतजाम करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. सामाजिक सरोकार से जुड़े अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए ईटीवी भारत जब इस परिवार के पास पहुंचा तो उन्होंने अपना दुख बयां किया.
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सागर ने बताया कि वो नजदीक के ही एक ठेकेदार के पास मसालची का काम करते हैं, लेकिन शादी समारोह या कोई अन्य आयोजन नहीं हो पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसके कारण उनके पास रोजगार नहीं है और ना ही मजदूरी का कोई दूसरा काम मिल पा रहा है. कुछ लोगों की मदद से उनका गुजर-बसर चल रहा है.
वहीं, सागर की मासूम बच्ची पूनम ने बताया कि वो 6 भाई-बहन हैं, लेकिन कोई भी पढ़ाई नहीं करता है. सिटी पैलेस का खुला क्षेत्र ही उनका घर है जहां वो दिनभर खेलकर अपना समय व्यतित करते हैं. उन्हें ना तो कोरोना वायरस के बारे में पता है और ना ही उस लॉकडाउन के बारे में जिसकी वजह से उसके पिता का रोजगार छिन गया है.
सागर और उनका परिवार एकमात्र ऐसा परिवार नहीं है, जिसके सामने ऐसा संकट है. राजधानी में ऐसे सैकड़ों परिवार हैं जो रोज कमाकर दो वक्त के खाने का इंतजाम कर पाते थे, लेकिन फिलहाल ये परिवार दूसरों की रहमत पर पल रहे हैं और इंतजार कर रहे हैं कि आखिर कब सरकार इन पर रहमत बरसाएगी.