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International Women's Day: कविता के जरिए राष्ट्रीय कवि नरेन्द्र दाधीच ने की कन्या भ्रूण हत्या रोकने की मांग

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर महिला सशक्तिकरण, कन्या भ्रूण हत्या को लेकर भीलवाड़ा से राष्ट्रीय कवि नरेंद्र दाधीच ने ईटीवी भारत पर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए विशेष कविता की प्रस्तुति दी. जहां कवि ने कहा कि वर्तमान संसार में लोगों की सोच बदलने की जरूरत है. जिससे लोग बेटी और बेटे में फर्क नहीं समझे और कन्या भ्रूण हत्या पर लगाम लग सके.

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Published : Mar 8, 2020, 10:20 AM IST

National poet Narendra Dadhich women poem
राष्ट्रीय कवि नरेंद्र दाधीच की महिलाओं पर कविता

भीलवाड़ा. "अरे क्यों ममता की दृष्टि बेटियों से हट रही है, लहराती पतंगों वाली डोरी कट रही है, तो बेटी बिना रिश्तों का संस्कार कहां है", कुछ ऐसी ही कविताएं राष्ट्रीय कवि नरेंद्र दाधीच ने ईटीवी भारत पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर बेटियों की महत्ता बताते हुए पढ़ीं. जिससे लोग बेटी और बेटे में फर्क नहीं समझें.

राष्ट्रीय कवि नरेंद्र दाधीच की महिलाओं पर कविता

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर राष्ट्रीय कवि ने ईटीवी से खास बातचीत करते हुए कहा कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए मैंने एक कविता लिखी है. उन्होंने कहा कि इस रचना को लिखने की आवश्यकता पड़ी कि जब अपने शहर में इस प्रकार की घटना को देखता हूं की कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं या कन्या को पैदा होने के बाद मार दिया जाता है. उस पीड़ा को लेकर मेरा कवि मन जागृत हुआ और एक कविता लिखी.

कविता -

सूर्य रोया होगा बादलों की ओट में ।
चांदनी ना छोड़ी चंदा के विरोध में ।।

वेदना की आंखें भर आई ही होगी।
तारों ने रूदाली राग गायी होगी ।।

जबकि कोई कन्या भ्रूण हत्या हुई है ।
आदर्शों की बात केवल मिथ्या हुई है।।

तो सविधान में ऐसा परिवर्तन लाइए ।
ऐसे हत्यारों को सूली पर चढ़ाए ।।

बेटी का परिवार में महत्व-

सृष्टि की नयाब कृर्ती होती है बेटियां।
मनु की मधुर कृती होती है बेटियां ।।

बाकी कोख बेटियों से बोझल हो रही ।
ब्रह्मा की नायाब कृती ओझल हो रही ।।

मानवता पीड़ित शब्द मोन खड़ी है ।
आच से सवाल पूछने की घड़ी है ।।

अरे क्यों ममता की दृष्टि बेटियों से हट रही।
लहराती पतंग वाली डोरी कट रही ।
तो बेटी बिना रिश्तो का संसार कहां है।
तो बेटी बिना रिश्तो का संसार कहां है।।

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समाज में बेटी की क्यों आवश्यकता-

बेटी बिना रिश्तो का संसार कहां है।
बेटी परिवार पर भार कहां है ।
जिस घर में ना बेटी सी बहार खिलखिलाई।
बाप का आंगन सुना है ओर भाई की कलाई।।

मां का दाया हाथ और सहेली बेटियां।
फिर कैसे कहें कि पहेली बेटियां ।।

तो फिर रेशम की डोरी के फंदे हो गए और मानव की संताने हम दरिंदे हो गए और फिर मानव की संताने हम दरिंदे हो गए।।

बेटी पैदा होते ही सवाल बन गई।
मां की आंख आंसुओं से ताल बन गई।।

पीड़ा के समंदर की गहराई बढ़ गई ।
खुशियों के दरवाजे पर वह ताले जड़ गई ।।

कैसा है समाज वो दस्तूर देखिए ।
बेकसूर बेटी का कसूर देखिए ।।

जन्म से ही बेटी अभिशाप बन गई।
पुण्य देने वाली कन्या पाप बन गई।

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हमारे देश में कैसी-कैसी बेटियां रही, जिसने विश्व में भारत का नाम ऊंचा किया -

पर ना समझो धरती पर भार बेटियां ।
दुर्गा लक्ष्मी जैसा अवतार बेटियां ।

प्रेम में प्रतिपा दिया मीरा ने ।
देशभक्ति का संदेश दिया पन्ना ।।

जोहर पद्मिनी का स्वाभिमान के लिए ।
राजपूती आन बान शान के लिए।।

जीजाबाई ने दिया शिवा सरदार ।
भारत की बेटियो की महिमा अपार।।

बेटियां आगे बढ़ी झांसी रानी हो गई ।
सिर कटा कर हांडी रानी हो गई।।

अंतरिक्ष नाप कर बनी वो कल्पना ।
किरण बेदी ने पूरा किया वह सपना ।।

सभी परीक्षाओं में अव्वल बेटियां।
फिर कैसे खहे सब्बल बेटियां।।

तो पीटी उषा जैसी महान बेटियां ।
और लता जैसी सुरों की तान बेटियां ।।

आओ जन्म बेटी का महान बनाएं ।
होली व दीवाली सी बाहर बनाये।।

जो कन्या के भ्रूण में इंसाफ ना करें।
ऐसे नीचे परिवार को माफ नहीं करें ।।

डॉक्टर जो भी भ्रूण हत्या करें।
ऐसे क्रूर के संतान मरे हैं।।

जिन्हें नहीं बेटी का उपहार चाहिए ।
ऐसे परिवारों को धिक्कार चाहिए ।।

ओर जिनके संग बहू के दहेज चाहिए।
उन्हें दीवारों में जिंदा चुनिए।।

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