भरतपुर.दो वक्त की रोटी कमाने निकला मजदूर एक ऐसी लाइलाज बीमार अपने साथ ले आए. जिसपर उसका पार पाना नामुमकिन है. कमाई की तलाश में घर को छोड़कर गए वो शख्स. आज जिंदगी और मौत के बीच लड़ाई लड़ रहा है. और ये सब दर्द दिया है सिलिकोसिस नाम की बीमारी ने.
भरतपुर के इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा लोग सिलिकोसिस की चपेट में
खदानों में काम करने वाले मजदूर इस मौत के जाल में फंस रहे है. प्रदेश में पत्थरों की मांग जैसे जैसे इमारतों में बढ़ रही है, वैसे-वैसे सिलकोसिस से हो रही गरीब मजदूरों की मौतों में भी इजाफा हो रहा है. भरतपुर जिले में सर्वाधिक बयाना, रूपबास, रुदावल और भुसावर क्षेत्र के लोग सिलिकोसिस बीमारी की चपेट में है. इन क्षेत्रों में लोग पत्थर की खदानों में और पत्थरों से जुड़े व्यवसाय में काम करते हैं.
भरतपुर में सिलिकोसिस बीमारी ने दो सालों में निगली 229 जिंदगियां पढ़ें- राजस्थान में नई सिलिकोसिस नीति लागू...देश में बना पहला राज्य, पीड़ितों को मिलेगी ये मदद
पिछले 2 साल में 229 लोगों की मौत
अगर बीते 2 साल की बात करें तो इस जानलेवा बीमारी से 229 लोगों की मौत हो गई. इनमें से 159 लोगों की मौत तो इसी वर्ष हो चुकी है. जबकि पिछले साल यानी 2018 में 70 लोगों की मौत हुई थी. वहीं जिले के करीब 1390 मरीजों की तो अभी तक जांच भी नहीं हो पाई है. पत्थर की खदानों में और पत्थरों से जुड़े व्यवसाय में काम करने से मजदूरों के फेफड़ों में जाने वाली पत्थर की डस्ट की वजह से सिलिकोसिस बीमारी होती है. लाइलाज बीमारी होने की वजह से उपचार के बावजूद लोग इस बीमारी से दम तोड़ रहे हैं.
1633 को सिलिकोसिस बीमारी प्रमाणित
वहीं जिला क्षय रोग अधिकारी भरतपुर, डॉक्टर हितेश बंसल ने बताया कि जिले में अब तक 5887 सिलिकोसिस मरीज पंजीकृत हुए हैं. इनमें से 1633 मरीज सिलिकोसिस प्रमाणित है. वर्ष 2018 में सिलिकोसिस से 70 लोगों की मौत और इस वर्ष अब तक 159 लोग अपनी जिंदगी गवा चुके हैं.
पढ़ें- जोधपुर में सिलिकोसिस पीड़ितों का प्रदर्शन...कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर मांगी सहायता राशि
स्क्रीनिंग के लिए नहीं पहुंच रहे मरीज
डॉक्टर हितेश बंसल के मुताबित जिले भर में करीब 1390 मरीज ऐसे हैं जिनकी सिलिकोसिस की स्क्रीनिंग की जानी है. लेकिन रजिस्ट्रेशन के बाद भी यह मरीज बीमारी की जांच कराने के लिए अस्पताल नहीं पहुंच रहे हैं. इनमें से करीब 800 मरीज तो ऐसे हैं. जिन्होंने 6 माह पहले सिलिकोसिस जांच के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया था. लेकिन उसके बाद भी अब तक अस्पताल में जांच कराने नहीं पहुंचे हैं. ऐसे में ना तो इन मरीजों की जांच हो पा रही है और ना ही पीड़ितों को प्रमाणित किया जा पा रहा है.
राजस्थान में नई सिलिकोसिस नीति लागू...देश में बना पहला राज्य
नई नीति के तहत सिलिकोसिस बीमारी से मौत पर मुआवजा राशि भी बढ़ाकर 5 लाख रुपए कर दिया गया है. इसके अनुसार तीन लाख रुपए पीड़ित को बीमार होने पर मिलेंगे और अगर किसी परिस्थिति में उसकी मौत होती है तो मृत्यु पश्चात मृतक परिवार को 2 लाख रुपए बतौर मुआवजा दिया जाएगा. इसके साथ ही मृतक आश्रित को पेंशन का भी लाभ मिलेगा. इस नई नीति से राज्य के करीब 11 हजार सिलिकोसिस पीड़ितों को फायदा होगा. पीड़ित परिवार को इलाज के लिए विभाग के सिलिकोसिस पोर्टल पर रजिस्टर करवाया जा सकेगा. इसके लिए उसके आवास के पास ही उपचार की व्यवस्था भी की जाएगी. राजस्थान में काम करने वाले अन्य राज्यों के लोगों और खदान के 2 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को भी इस नई नीति का लाभ मिलेगा.
पढ़ें- अलवर में बढ़ रही है सिलिकोसिस मरीजों की संख्या...बेहतर इलाज होगा
कैसे होती है सिलिकोसिस बीमारी
सिलिकोसिस फेफड़ों की बीमारी है. पत्थर या सीमेंट की खदानों जैसी धूल भरी जगहों पर लगातार काम करते रहने से नाक के जरिए धूल, सीमेंट या कांच के महीन कण फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. धीरे–धीरे व्यक्ति की शारीरिक क्षमता कम होती जाती है. वह हर दिन कमजोर होता जाता है और आखिर में मौत हो जाती है.