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निकाय चुनाव 2019: आज की तुलना में 50 साल पहले बेहतर हालात थे अलवर के, सिस्टम से होते थे सभी कार्य

निकाय चुनाव के दौरान बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से तमाम वादें किए जाते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होते ही सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं. ऐसे में अलवर में भी हाल कुछ ऐसा ही है. इस कड़ी में शहर की ज्यादातर सड़कें टूटी हुई हैं और जगह-जगह कचरा जमा है.

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Published : Nov 14, 2019, 11:43 AM IST

30 साल पहले अलवर खासा बेहतर था, 30 years ago Alwar was much better

अलवर. शहर के निकाय चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की तरफ से बड़े-बड़े वादे किए जा रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत पर किसी का ध्यान नहीं है. आलम यह है कि शहर की ज्यादातर सड़कें टूटी हुई हैं और जगह-जगह कचरा जमा है. ऐसे में लोगों का कहना है कि आज से 30 साल पहले अलवर खासा बेहतर था.

अलवर में 50 साल पहले हालात थे बेहतर

उस समय अलवर की गिनती साफ और सुंदर शहरों में होती थी, लेकिन समय के साथ हालात खराब हो रहे हैं. ऐसे में अलवर को एक बेहतर बोर्ड की आवश्यकता है. बता दें कि अलवर नगर परिषद का इतिहास 100 साल पुराना है. लेकिन उस दौर में अलवर में सफाई बेहतर होती थी. अलवर की गिनती साफ और सुंदर शहरों में होती थी. प्रत्येक कार्य समय पर होता था और योजनाबद्ध कार्य पद्धति के तहत काम होता था.

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परकोटे में बसे अलवर के लोगों पर सफाई का जिम्मा रहता था और एक मुख्य सफाई निरीक्षक और 5 वृत निरीक्षक के भरोसे शहर की पूरी व्यवस्था थी. समय के साथ इस व्यवस्था में बदलाव हुआ. आज सफाई पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं, लेकिन उसके बाद भी शहर के हालातों में कोई सुधार नहीं है.

शहर में साल 1920 में मुंशीपार्टी एक्ट लागू हो गया था. तभी से अलवर नगर निकाय सफाई सार्वजनिक रोशनी और अन्य मूलभूत सुविधाओं को संभालती थी. उस समय बेहतर काम होता था. कहीं भी कचरा में धूल नजर नहीं आती थी. आज हालात खराब है, जगह-जगह नालियां कचरे से भरी हुई हैं और समय पर उनकी सफाई नहीं होती है.

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पुराने समय में अलवर के जगन्नाथ मंदिर से लेकर त्रिपोलिया, बजाजा बाजार सराफा बाजार मालाखेड़ा बाजार मुंशी बाजार आदि क्षेत्रों में प्रतिदिन सफाई होती थी. इतना ही नहीं सड़कों पर झाड़ू लगती थी और नालियों की प्रतिदिन पानी से धुलाई होती थी. उस समय सीवरेज और पक्के शौचालय की व्यवस्था भी नहीं थी. लेकिन सफाई कर्मी रोजाना सफाई करते थे.

अलवर में 50 साल पहले हालात थे बेहतर

इसके अलावा मोहल्लों में बाजारों में जमा होने वाले कचरे को पड्डा गाड़ी से उठाया जाता था. उस कचरे को जेल के चौराहे के पास एक जगह पर पटका ज्यादा था. इसके अलावा शहर में जगह-जगह पर लकड़ी के लैंप लगे हुए थे. जिनसे शहर में रोशनी की जाती थी. नगर पालिका के कर्मचारी प्रतिदिन शाम को इन लैंपो में केरोसिन डालकर लालटेन जलाते थे. जो रात भर चलता था.

नगरपालिका का हर साल एक बजट तैयार होता था. इससे पूर्व स्टेट के वित्त मंत्री बनाते थे. उस समय नगरपालिका की खासियत यह थी कि ज्यादातर निर्माण सर्वसम्मति से किए जाते थे. पूर्व अलवर रियासत में उस समय अलवर राजगढ़ नगर पालिका तथा 37 अन्य छोटी पालिकाएं होती थीं.

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निकाय चुनाव की तैयारियों में जुटे प्रत्याशी

वहीं अलवर शहर में निकाय चुनाव परवान चढ़ने लगा है. अलवर नगर परिषद में 65, भिवाड़ी में 60 और थानागाजी नगर पालिका में 25 वार्ड हैं. इन पर 16 नवंबर को चुनाव होने हैं. ऐसे में सभी प्रत्याशी चुनाव प्रचार में जुट चुके हैं. दिन निकलते ही प्रत्याशी अपने समर्थकों के साथ लोगों से घर-घर जाकर संपर्क करते हैं, तो वहीं शाम को कार्यालयों पर चौपाल सजती है. इन चौपाल पर वार्ड के बुजुर्ग और युवा रणनीति बनाते हुए नजर आ रहे हैं. वोटर लिस्ट के आधार पर एक प्रत्याशी दूसरे प्रत्याशी के वोट तोड़ने और अपने पक्ष में करने के लिए कार्य योजना बनाई जाती है. बीजेपी और कांग्रेस के नेता भी अपने प्रत्याशियों को जिताने में हर संभव प्रयास कर रहे हैं.

प्रत्याशियों के परिजन और समर्थक बड़ी संख्या में टोली बनाकर दिन भर पोस्टर लगाने, लोगों को पर्चे बांटने और वोटर लिस्ट के हिसाब से जनसंपर्क करने में जुटे हुए हैं. इस काम में महिलाएं भी पीछे नहीं है. सभी वार्डों में महिलाओं की टोली भी नजर आ रही है.

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देर रात तक कार्यालय कर रणनीति बनाई जाती है, तो वही दिन निकलते ही सभी लोग अपने स्तर पर वोट जुटाने में जुड़ जाते हैं. प्रत्येक प्रत्याशी ने अपने वार्ड में पांच से छह कार्यालय बनाए हैं. प्रत्येक पर हमेशा लोग बैठे रहते हैं. वहां आने वाले हो पानी, चाय और नाश्ते तक की व्यवस्था उपलब्ध रहती है. ऐसे में तेजी से दिनोंदिन अलवर में चुनावी रंग लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा है.

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