अलवर.मोदी सरकार का एक साल पूरा हो चुका है. देश के लिए मोदी सरकार ने कई बड़े फैसले लिए, लेकिन अलवर को मोदी सरकार का कोई खास फायदा नहीं मिला. एक साल के दौरान अलवर में कोई बड़ी योजना शुरू नहीं हुई. सांसद की भूमिका केवल सांसद निधि के कार्य तक सीमित रही. ऐसे में अलवर के लोगों को पिछले एक साल में निराशा हाथ लगी है.
दरअसल, प्रदेश मेंएनसीआर प्लानिंग बोर्ड का गठन हुआ था तो अलवर को इसमें शामिल किया गया था. अलवर को राजस्थान की औद्योगिक राजधानी राजस्थान का 'सिंह द्वार' कहा जाता है. सीमावर्ती जिला होने के कारण हरियाणा में उत्तर प्रदेश का हस्तक्षेप भी अलवर में रहता है. साथ ही औद्योगिक राजधानी होने के कारण अलवर में 15,000 से अधिक औद्योगिक इकाइयां हैं. जिनमें लाखों लोग काम करते हैं. वहीं जिले से प्रतिदिन हजारों यात्री दिल्ली सफर करते हैं, लेकिन आज भी लोकल ट्रेन की सुविधा नहीं है. अलवर में आसपास के जिलों के लोग इलाज कराने के लिए आते हैं, लेकिन जिले में मेडिकल कॉलेज नहीं है.
बता दें कि 800 करोड़ रुपए की लागत से ईएसआईसी मेडिकल कॉलेज भवन का निर्माण तो हुआ था, लेकिन राजनीति के चलते वो आज भी बंद पड़ा हुआ है. उसमें केवल 50 बेड का अस्पताल चल रहा है. जबकि राजस्थान के कई छोटे जिलों में मेडिकल कॉलेज तैयार होकर शुरू भी हो चुका है. इसके अलावा अलवर में मूलभूत सुविधाओं की खासी जरूरत है. सांसद की ओर से अलवर में करोड़ों रुपए के काम कराए गए, लेकिन सभी कार्य केवल नाली व सड़क तक सिमट कर रह गए. सांसद द्वारा अलवर को कोई परियोजना नहीं दिलवाई गई, जबकि अलवर में अपार संभावनाएं हैं.
अलवर के साथ हुआ सौतेला व्यवहार
यूपीए सरकार के कार्यकाल में अलवर में सभी सेनाओं के मुख्यालय खोले गए. वहीं कई ऐसी बड़ी योजनाएं शुरू की गई, जिनसे अलवर की दिशा व स्वरूप बदल सकता था. लेकिन केंद्र में सरकार बदलने के साथ ही सभी योजनाओं पर ब्रेक लग गया. इसका खामियाजा अलवर की जनता को उठाना पड़ा है. अलवर के नेताओं और आम जनता की माने तो मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान अलवर को कोई फायदा नहीं हुआ. जबकि अलवर को जोड़ने के लिए डीएमआईसी रेल प्रोजेक्ट, लोकल ट्रेन सहित कई बड़ी योजनाओं से जोड़ते हुए यहां काम शुरू होना चाहिए था, लेकिन अलवर के साथ सौतेला व्यवहार हुआ है.
अलवर के लोगों का कहना है कि कांग्रेस कार्यकाल में अलवर को दर्जनों बड़ी योजनाएं मिली. जिसका अलवर के लोगों को फायदा भी मिला. अलवर की औद्योगिक इकाइयों में देसी विदेशी लोग भी काम करते हैं. इस लिहाज से अलवर की पुलिसिंग से लेकर तमाम बड़े बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है.
कोरोना काल में सांसद की भूमिका