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निकाय चुनाव 2019: अलवर में नगर परिषद के चेयरमैन को नहीं मिलता दूसरा मौका

अलवर में निकाय चुनाव को लेकर कांग्रेस और भाजपा की तरफ से पूरी ताकत झोंकी जा रही है. वहीं, जिले में नगर परिषद के चेयरमैन का चुनाव होना है, लेकिन दोनों ही पार्टियों की ओर से अबतक सभापति का चेहर घोषित नहीं किया गया है. माना जा रहा है कि इस बार भी सभापति कुर्सी का नया चेहरा हो सकता है.

अलवर सभापति न्यूज, Alwar Chairman News

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Published : Nov 11, 2019, 7:19 PM IST

अलवर. जिले में निकाय चुनाव की हलचल तेज हो गई है. निकाय चुनाव में कांग्रेस और भाजपा की तरफ से पूरी ताकत झोंकी जा रही है. स्थानीय नेता प्रत्येक वार्ड में जाकर लोगों से जनसंपर्क कर रहे हैं. वहीं, जिले में अब तक के निकाय चुनाव में ऐसा देखा गया है कि अलवर की जनता चेयरमैन को दूसरा मौका नहीं देती है. माना जा रहा है कि इस बार भी सभापति कुर्सी का नया चेहरा हो सकता है.

अलवर में नगर परिषद के चेयरमैन को नहीं मिलता दूसरा मौका

अलवर के इतिहास के अनुसार जनता नगर परिषद के चेयरमैन को दोबारा मौका नहीं देती है. बता दें कि वर्ष 1994 में सामान्य सीट पर योगेश सैनी सभापति बने थे. लेकिन इनके कार्यकाल में ही न्यायालय में सरकार के हस्तक्षेप के बाद संजय और शिवलाल ने शहर की सरकार के मुख्य की कुर्सी को संभाला था. वहीं, साल 1999 में ओबीसी महिला आरक्षित सीट पर बनी उनके कार्यकाल में ही शकुंतला सोनी ने कुर्सी संभालने का मौका मिला. इसके बाद 2004 में सामान्य सीट पर भाजपा के अजय अग्रवाल सभापति बने और उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.

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वहीं, वर्ष 2009 में ओबीसी महिला आरक्षित सीट पर हर्षपाल कौर को अलवर की जनता ने सीधे सभापति के लिए चुना था. लेकिन आधे कार्यकाल के बाद उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. उसके बाद सरकार ने कमलेश सैनी को सभापति बना दिया और फिर सुनीता कामरा सभापति बनी थी. लेकिन, कार्यकाल के आखिरी दौर में वापस हर्षपाल कौर आ गई. उधर, वर्ष 2014 में सामान्य सीट पर भाजपा की ओर से अशोक खन्ना को सभापति बनाया गया और वह पूरे कार्यकाल में सभापति रहे.

बता दें कि अभी फिर से अलवर नगर परिषद के चेयरमैन का चुनाव होना है. वहीं, माना जा रहा है कि इस बार भी सभापति कुर्सी का नया चेहरा हो सकता है. हालांकि, अभी तक दोनों ही पार्टियों ने सभापति का चेहरा घोषित नहीं किया है. बता दें कि पार्षद चुनाव परिणाम में जीतने वाले पार्षदों की संख्या के आधार पर सभापति का चयन होता है. उधर, सरकार ने सभापति का चुनाव कराने का फैसला लिया था लेकिन पार्षदों की हस्तक्षेप के बाद पार्षदों की ओर से ही सभापति के चयन का फैसला लिया गया.

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