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'किसान का सीधा ATM है व्यापारी, सरकार को किसान के हितों में सोचने की आवश्यकता'

अलवर सहित देशभर का किसान परेशान है. हर साल मौसम, आंधी और तूफान की किसान पर मार पड़ती है. सरकार की तरफ से किसान की हर संभव मदद के दावे किए जाते हैं. लेकिन किसान तक कोई मदद नहीं पहुंच पाती है. इन सबके बीच सरकार ने हाल ही में किसान की बिकने वाली फसल पर 2 प्रतिशत का टैक्स लगाया है. इस पर प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं.

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Published : Jun 3, 2020, 9:21 AM IST

अलवर.देश की अर्थव्यवस्था किसान पर निर्भर रहती है. अगर देश में बेहतर फसल होती है, तो देश की अर्थव्यवस्था भी बेहतर रहती है. देश का अन्नदाता खुशहाल रहे, इसके लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं शुरू की जाती हैं. लेकिन उन योजनाओं का लाभ आम किसान को नहीं मिल पाता है.

किसान आयोग के गठन की जरूरत : मंडी व्यापारी

हर साल फसल में किसान को नुकसान पहुंचता है और किसान दिनोंदिन कर्ज में डूबता जा रहा है. इन सब के बीच हाल ही में प्रदेश सरकार की तरफ से किसान की बिकने वाली फसल पर 2 प्रतिशत का टैक्स लगाया गया है. ऐसे में ईटीवी भारत की टीम ने मंडी व्यापारी और फसलों के जानकार पप्पू सैनी से खास बातचीत की.

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सैनी ने बताया कि एसी में बैठने वाले लोग सरकार की नीतियां बनाते हैं. उनको धरातलीय स्तर की जानकारी नहीं होती है. सरकार को किसान और मंडी आढ़ती व्यापारियों से बात करनी चाहिए. जिससे सरकारी योजना का लाभ जरूरतमंद तक पहुंच सके. उन्होंने देश की संसद में भाजपा नेता सुषमा स्वराज द्वारा कही हुई बात दोहराते हुए कहा की किसान का एटीएम आज भी व्यापारी है. किसान को जब भी बेटी के विवाह और बहन का भात भरना होता है, या अन्य कार्य होते हैं, तो किसान को उसके लिए पैसे की आवश्यकता होती है. वो सबसे पहले व्यापारी के पास जाता है. हालांकि कानूनी तौर पर इस तरह से पैसे देना गलत है. लेकिन फिर भी सालों से यह कार्य चलते आ रहे हैं.

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उन्होंने कहा कि सरकार ने जो टैक्स लगाया है, उसका लाभ किसान को कैसे मिलेगा. सरकार की तरफ से अभी तक यह साफ नहीं किया गया है. सरकार को किसान आयोग का गठन करना चाहिए. जिससे किसानों के हित में नई योजना बनाकर उस पर काम किया जा सके. इन दिनों किसानी सर्वे होते हैं, जिनमें किसान बाजार से खरीदारी करता है. बाजार किसान पर निर्भर रहता है. लेकिन किसान के पास पैसा नहीं है. इसलिए बाजार भी पूरी तरीके से ठप है. सरकार द्वारा किसान के हित में जो नीति और योजना बनाई जाती है, उसमें व्यापारी और किसान की भागीदारी होनी चाहिए. जिससे किसान को होने वाली परेशानी के बारे में पता चल सके.

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