उमरिया। प्रदेश के वन मंत्री ने भले ही अपने बयान के साथ बांधवगढ़ के अग्निकांड को समाप्त कर दिया हो, लेकिन जिस आग ने बांधवगढ़ के पत्ते-पत्ते को झुलसाया है उसकी तपिश द बर्निंग बांधवगढ़ के रूप में हमेशा महसूस होती रहेगी. द बर्निंग बांधवगढ़ को एक चित्र के रूप में उकेरने का निर्णय आदिवासी चित्रकार जोधइया बाई बैगा ने लिया है.
जोधइया बाई कैनवास पर उकेरेंगी 'द बर्निंग बांधवगढ़'
बांधवगढ़ के अग्निकांड को भले ही प्रदेश के वन मंत्री भूल गए हों, लेकिन जोधइया बाई बैगा के जहन में ये आज भी धहक रही है. ऐसे में उन्होंने द बर्निंग बांधवगढ़ को एक चित्र के रूप में उकेरने का निर्णय लिया है.
जंगल की आग से आहत हैं जोधइया
दरअसल, जंगल में लगी आग के बाद से ही जोधइया बाई बैगा यह जानने को हर समय उत्सुक रहीं कि आग पर काबू पाया गया या नहीं, हर आने-जाने वालों से उन्होंने इसके बारे में चर्चा की और अपना दुख जताया. आग बुझने में हुई देरी से उन्होंने जंगल में हुए नुकसान का अनुमान लगा लिया, और उस पर चित्र बनाने का निर्णय ले लिया.
जंगल में खपा जोधइया का पूरा जीवन
बता दें कि, जोधइया बाई ने अपना पूरा जीवन जंगल में ही खपा दिया. उन्होंने बैठे-बैठे अनुमान लगाकर नुकसान का अंदाजा भी लगा लिया. वे कहती हैं जैसे सड़क में गाड़ी दौड़ती है वैसे जंगल में लगी आग दौड़ती है. सड़क में जो सामने आ जाता है वो गाड़ी का शिकार हो जाता है, वैसे ही जंगल में आग के रास्ते में आने वाला हर पेड़ प्रभावित होता है. उनका कहना है कि जंगल में जब एक पेड़ जलता है, तो वह अपने आसपास के दस पेड़ों को प्रभावित करता है, और वो दस सौ को, इस तरह आग विकराल रूप ले लेती है.
दिखाएंगी आग का विकराल रूप
जोधइया बाई ने बताया कि वे अपने चित्र में आग का विकराल रूप दिखाएंगी. किस तरह जंगल में आग चलती है और किस तरह जंगल नष्ट होता है. साथ ही जंगल में आग किन कारणों से लगती है इसे भी चित्र में दिखाने की कोशिश वे करेंगी. उन्होंने कहा कि अगर जंगल सुरक्षित रहेंगे, तो हम सब सुरक्षित रहेंगे, इसलिए जंगलों को बचाया जाना बेहद आवश्यक है.