छिंदवाड़ा। मोटी फीस चुकाकर अच्छे संसाधनों वाले स्कूल तो आपने बहुत देखे होंगे, लेकिन छिंदवाड़ा के आदिवासी गांव घोघरी में शिक्षकों ने अपनी तनख्वाह से पैसे खर्च कर ऐसा मॉडल स्कूल (chhindwara government teacher initiative) तैयार किया है, जो बड़े-बड़े निजी स्कूलों को भी मात दे रहा है. शिक्षकों के इस नवाचार की अब हर जगह प्रशंसा हो रही है. साथ ही जो छात्र कभी स्कूल नहीं आते थे वह आज स्कूल में मन लगाकर पढ़ रहे हैं.
कैसे आया बदलाव का आइडिया ?
शिक्षकों का कहना है कि साल 2016 तक उनके स्कूलों में हर साल बच्चों की संख्या (chhindwara government school redeveloped) घट रही थी. उनका रुझान निजी स्कूलों की ओर हो रहा था. हालांकि कई ऐसे परिवार थे जो निजी स्कूल की मोटी फीस भरकर बच्चों को पढ़ाने में सक्षम हो. बच्चों के मन में हीन भावना न रहे और बच्चों का सरकारी स्कूल के प्रति रुझान बढ़े. यहां से अध्यापकों के जहन में बदलाव का आइडिया आया.
कहां से आया बजट ?
घोघरी के शासकीय मिडिल स्कूल में तीन शिक्षक हैं. प्रधान शिक्षक को स्कूल की बदहाल स्थिति (chhindwara middle school condition) को सुधारने का ख्याल दिमाग में आया, लेकिन बजट को लेकर वह रुक जाते थे. फिर सभी सह शिक्षकों से चर्चा कर 2016 से हर माह अपनी सैलरी से एक फीसदी की कटौती कर जोड़ना शुरू की. साल दर साल पैसा जुड़ता गया और वह स्कूल के कायाकल्प में लगना शुरू हो गया. आज पांच साल बाद स्कूल निजी स्कूल से भी बेहतर नजर आ रहा है.