ग्वालियर। मुरैना का जहरीली शराब कांड देशभर में सुर्खियां हुआ है. जहरीली शराब से मरने वालों का आंकड़ा 25 के पार पहुंच चुका है, तो वहीं अभी भी कई लोग जलील शराब के कारण ग्वालियर और मुरैना के अस्पतालों में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है. लेकिन जिस आबकारी विभाग के मुखिया पर शराब माफियाओं पर अंकुश लगाने का जिम्मा था. वह अपने मुख्यालय ऑफिस पर बीते 3 महीने से नहीं पहुंचा. नतीजा यह हुआ कि प्रदेश में शराब माफिया बेखौफ होकर अवैध शराब के कारोबार में लग गए.
असंवेदनशील आबकारी आयुक्त
अब सवाल इस बात का है कि विभाग के मुखिया को शराब तस्करी रोकने का काम है. वह मुखिया अपने 3 महीने से दफ्तर में ही नहीं बैठा है, इससे साफ जाहिर होता है की आबकारी आयुक्त अपने काम के प्रति कितने लापरवाह और असंवेदनशील है.
कैंप ऑफिस से चला रहा आबकारी विभाग
मध्य प्रदेश के आबकारी विभाग का मुख्यालय दफ्तर ग्वालियर में है. बीते 2 नवंबर से विभाग के मुखिया यानी आबकारी आयुक्त राजीव चंद्र दुबे ने यहां कदम नहीं रखा है. राजीव चंद्र दुबे आबकारी विभाग का दफ्तर भोपाल के कैंप ऑफिस संचालित कर रहे हैं. हालात यह हो गये है की अवैध शराब की छापेमारी की कार्रवाई कुछ पन्नों में सिमटी हुई है, जिस पर विपक्ष और सरकार आबकारी आयुक्त को निशाने पर ले रहे हैं.
डाक के जरिए हो रहा फाइलों का आवागमन
आबकारी आयुक्त राजीव चंद्र दुबे की कार्रवाई पर सवाल इसलिए पैदा हो रहे हैं कि आबकारी आयुक्त का सीधा नियंत्रण शराब माफिया पर होना चाहिए, ताकि अवैध शराब के परिवहन निर्माण और उसकी बिक्री पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाया जा सके. लेकिन आयुक्त अपनी सुविधा को देखते हुए भोपाल से ही काम करते रहे. जरूरी फाइलों को डाक के जरिए मंगाते रहे और आबकारी का अमला उन्हें वह फाइल पहुंचाता रहा.