नाहनः अक्सर आपने देखा होगा कि एक दुल्हा दुल्हन के घर बारात लेकर जाता है, लेकिन सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र के कई हिस्सों में आज भी ठीक इसके विपरीत अनूठी परंपरा को निभाया जा रहा है. यहां दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन लड़के के घर बारात लेकर जाती है.
इस परंपरा को स्थानीय भाषा में जाजड़ा कहा जाता है. उतराखंड के जौनसार बाबर की तर्ज पर आज भी गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में यह अनूठी परंपरा निभाई जा रही है. दरअसल उत्तराखंड की तर्ज पर गिरीपार क्षेत्र के कई इलाकों में आज भी लड़की पक्ष के लोग बारात लेकर लड़के के घर जाते हैं, जिसे जाजड़ा परंपरा कहा जाता है.
सुनने में तो बड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह हकीकत है. इस अनूठी परंपरा का ताजा उदाहरण शनिवार को भी देखने को मिला, जहां शिलाई तहसील के गांव परली की एक लड़की उत्तराखंड की चकराता तहसील के कुवाणु गांव में बारात लेकर पहुंची. यह विवाह कबायली संस्कृति के तहत जाजड़ परंपरा से संपन्न हुआ. इस विवाह में दुल्हा नहीं बल्कि दुल्हन पक्ष की ओर से बारात दुल्हे के गांव पहुंची. करीब 4 दर्जन लोग दुल्हन पक्ष की ओर से बारात में शामिल हुए.
पारंपरिक कबायली अंदाज में संपन्न हुए इस विवाह समारोह में एक ओर खास बात देखने को यह मिली कि यहां पूरे गांव की करीब 120 महिलाओं को अलग भोज दिया गया, जिसे रहिंन जिमाना कहते है. कबायली संस्कृति में नारियों का उच्च स्थान माना जाता है. यह गिरिपार के लोगों के पास जनजातीय दर्जा लाने के पुख्ता सबूत हैं. भले ही फिलहाल सरकार से इन्हें उनका हक नहीं मिला दिया हो.