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ब्राह्मण समुदाय की महिलाओं ने मनाया ऋषि पंचमी पर्व, गाए ऋषि पंचमी के गीत

आनी में ब्राह्मण परिवार की गृहणियों ने परंपरागत रीति-रिवाजों व संस्कृति तौर-तरीके से ऋषि पंचमी पर्व मनाया. इस पारंपरिक संस्कृति को कायम रखने में ब्राह्मण समाज के लोग अहम भूमिका निभा रहे है. कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के खतरे से बचाव करते हुए आनी के गांवों में लोगों ने यह उत्सव सामाजिक दूरी के नियम का पालन करते हुए, मास्क लगाकर पूरी सभी सावधानी के साथ मनाया.

ऋषि पंचमी पर्व
ऋषि पंचमी पर्व

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Published : Aug 23, 2020, 7:53 PM IST

रामपुर/शिमला:आनी में ब्राह्मण परिवार की गृहणियों ने परंपरागत रीति-रिवाजों व संस्कृति तौर-तरीके से ऋषि पंचमी पर्व मनाया. इस पारंपरिक संस्कृति को कायम रखने में ब्राह्मण समाज के लोग अहम भूमिका निभा रहे है.

रविवार को आनी उपमंडल के अधिकतर ब्राह्मण समुदाय के गांओं थबोली, हरिबाग, ठोगी, श्मेशा, कराना, तुमन, चखाना, रिवाड़ी, चपोल, गुहान रों,ओलवा, जलोड़ी बटाला आदि सभी जगहों पर शाख (भद्ररोंझो) पर्व मनाया गया है.

गौ माता की होती है पूजा

इस पर्व पर सबसे पहले सुबह गौ माता को स्नान करवाया जाता है. इसके बाद गौ माता की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है. गौ माता की पूजा के बाद पशुओं को खेल के लिए दौड़ाया जाता है. शाम 4 बजे के आसपास शुभ घड़ी में (शाख) ऋषि पंचमी का विसर्जन कार्यक्रम पारंपरिक वेशभूषा और मंगल गीत गाकर विधिवत रूप से किया जाता है.

वीडियो रिपोर्ट.

कोरोना के नियमों का किया पालन

आपको बतो दें कि इस साल कोरोना वायरस संक्रमण फैलने के खतरे से बचाव करते हुए आनी के गांवों में लोगों ने यह उत्सव सामाजिक दूरी के नियम का पालन करते हुए, मास्क लगाकर पूरी सभी सावधानी के साथ मनाया.

क्यों मनाई जाती है ऋषि पंचमी

यह पर्व हर साल भद्रपद मास की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. मान्यता के अनुसार यह पर्व विशेष रूप से भारत के ऋषियों का सम्मान करने के लिए मनाया जाता है. ऋषि पंचमी का शुभ अवसर मुख्य रूप से सप्त ऋषियों को समर्पित है. यह उत्सव विशेषकर ब्राह्मण परिवार की महिलाओं की ओर से ही मनाया जाता है. अगले सात दिनों के दौरान महिलाएं सुबह स्नानादि करके पूजा पाठ करती हैं और ऋषियों पर आधरित कहानियां सुनाती हैं.

इस तरह की जाती है पर्व की समाप्ति

वहीं, कहानियों के अनुसार ऋषि पंचमी पर्व की पूजा अर्चना का उल्लेख सतयुग से चला आ रहा है. ऋषि पंचमी के दिन शाम को विदाई गीत गाते हुए, लकड़ी की पट्टी के उगाई जाती है. इसके बाद फसल स्वरूप शाख का स्नानादि करके विसर्जन किया जाता है और अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेकर सभी को दुआ बांट कर मंगल कामना करते हैं. उत्सव के अंत में सभी को विशेष भोग फलाहार बांटा जाता है.

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