शिमला: पत्थर की दीवार पर फूल उगाने की जिद का दूसरा नाम है रत्न मंजरी. संघर्ष के नाम से लोग कतराते हैं, लेकिन रत्न मंजरी के संघर्ष का विस्तार तीन दशक से भी अधिक समय का है. यह संघर्ष जनजातीय महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने का है.
देवभूमि हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिलों में किन्नौर और लाहौल-स्पीति में महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं है. इसी अधिकार को दिलाने के लिए रत्न मंजरी ने जमीन-आसमान एक कर दिया. लड़ाई कानूनी पचड़ों में उलझी है, लेकिन रत्न मंजरी का संघर्ष का हौसला झुका नहीं है.
पंचायत से लेकर देश के संवैधानिक मुखिया तक उन्होंने अपनी आवाज पहुंचाई है. संपन्न परिवार में जन्म लेने वाली मंजरी की नारी सशक्तिकरण की लड़ाई मिसाल है. ईटीवी से बातचीत में रत्न मंजरी ने अपने संघर्ष की गाथा साझा की है.