शिमला:चार दशक से अधिक का समय बीत गया, लेकिन 25 जून की तारीख आते ही देश में लागू इमरजेंसी की यादें ताजा हो जाती हैं. वर्ष 1975 के बुधवार का दिन था, जब पूर्व पीएम स्व. इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू किया.
समय के उस दौर में बेशक इंटरनेट आदि का नाम नहीं था, लेकिन ये समाचार जंगल की आग की तरह फैला कि देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है. तब कई बड़े नेताओं को जेल में ठूंसने का काम शुरू हुआ. हिमाचल के कद्दावर नेता भी आपातकाल का विरोध करने पर गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए. हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले अभी चार ही साल का अरसा हुआ था.
खैर, राजनीतिक रूप से चेतन हिमाचल प्रदेश में जगह-जगह आपातकाल का विरोध शुरू हो गया और साथ ही शुरू हुआ गिरफ्तारियों का सिलसिला. विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शिमला में भी जारी था. यहां शहर के मुख्य प्रदर्शन स्थल नाज पर एक सभा रखी गई.
शिमला के नाज पर विरोध प्रदर्शन
पूरे देश में चर्चित जेपी आंदोलन की प्रेरणा से उपजी लोक संघर्ष समिति के बैनर तले शिमला के नाज पर विरोध प्रदर्शन हो रहा था. हिमाचल में बीजेपी सरकार में शिक्षा मंत्री रहे राधारमण शास्त्री यहां भाषण दे रहे थे. महज 32 साल के शास्त्री का भाषण अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
शास्त्री को गिरफ्तार करने के बाद शिमला से उन्हें सीधे सेंट्रल जेल नाहन ले जाया गया. राधारमण शास्त्री पूरे 19 महीने नाहन जेल में बंद रहे. वर्ष 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद ही वे जेल से बाहर आए. शास्त्री के अनुसार जेल में बंद राजनीतिक कैदियों के बीच जोरदार राजनीतिक चर्चा होती थी.
शांता ने जेल में लिख डाली किताबें
समय काटने के लिए सभी विभिन्न विषयों की पुस्तकों का अध्ययन करते. शांता कुमार ने तो जेल में रहते हुए पुस्तक रच डाली. शांता कुमार लेखन के क्षेत्र में भी सार्थक दखल रखते हैं और उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं.
वहीं, राधारमण शास्त्री ने जेल में आयुर्वेद का अध्ययन किया. शास्त्री ने पुरानी यादों का जिक्र करते हुए बताया कि जिस समय वे जेल गए उनकी जेब में कोई पैसा नहीं था. बैंक में भी मात्र अस्सी रुपये की मामूली रकम थी. जेल में उनके साथ शांता कुमार, दौलत राम चौहान, दुर्गा सिंह, पंडित संतराम, श्यामा शर्मा सहित एक अध्यापक रामदास भी थे.