शिमला: चिकित्सक को धरती पर भगवान की संज्ञा दी गई है. सफेद पोशाक की गरिमा बनाए रखने के साथ डॉक्टर के कंधे पर पीड़ित मानवता की सेवा का भार भी होता है. उजली सफेद पोशाक की इसी गरिमा को डॉ. ओमेश भारती ने चार चांद लगाए हैं.
हिमाचल के जिला कांगड़ा के छोटे से कस्बे और विख्यात शक्तिपीठ ज्वालामुखी में जन्में ओमेश भारती ने चिकित्सा संसार की बड़ी सेवा की है. रेबीज से होने वाली मौतों के आंकड़े को थाम कर अनमोल जीवन बचाए हैं.
रेबीज की रोकथाम का सस्ता उपाय खोजने के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी अलंकृत किया गया है. अब वे सांप के काटने से होने वाली दुखद मौत को रोकना चाहते हैं. सांप के काटने पर रिसर्च के लिए डॉ. ओमेश भारती का शोध शुरू हो चुका है. इसके लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च से मंजूरी मिल चुकी है. सांप के काटने से होने वाली मौत और बचाव के उपाय पर ये विश्व का पहला शोध होगा.
सुखद बात ये है कि डॉ. भारती महामारी विशेषज्ञ भी हैं. कोरोना संकट में उनकी छोटी छोटी सलाहें कारगर साबित हुई हैं. डॉक्टर्स डे पर ईटीवी भारत ने उनसे खास बातचीत की. डॉ. ओमेश भारती ने शिमला के आईजीएमसी अस्पताल से एमबीबीएस की है. वे रेबीज की रोकथाम के सस्ता उपाय व इलाज तलाशने के कारण चर्चा में आए थे. डब्ल्यूएचओ से उनके शोध को मान्यता मिली. इसके चलते 35 हजार रूपये में होने वावा रेबीज का इलाज अब महज 350 रुपये में हो जाता है. हिमाचल में तो ये निशुल्क है.
जानते हैं डॉ. ओमेश के रेबीज की रोकथाम के उपाय का विस्तृत ब्यौरा
हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डॉ. ओमेश भारती को अपने शोध के लिए ब्रिटिश मेडिकल जनरल की ओर से एशिया बेस्ट रिसर्च पेपर का अवॉर्ड भी मिल चुका है. अपने इस शोध को लेकर वैसे तो कई अवार्ड डॉ. भारती को मिल चुके हैं, लेकिन साउथ एशिया में मिला यह अवार्ड इस शोध को लेकर काफी अहम रहा है.
डॉ. ओमेश भारती लगभग 17 सालों से एंटी रेबीज वैक्सीन पर काम कर रहे थे. इस शोध में इन्होंने एक ऐसे सीरम को खोजा, जिसे पागल कुत्ते के काटने से होने वाले घाव पर लगाने से असर जल्द होगा. इससे पहले जहां पागल कुत्ते या बंदर के काटने पर सीरम को घाव और मासपेशियों में लगाया जाता था, लेकिन डॉ. भारती ने अपने शोध से ये साबित किया कि रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन सीरम को घाव पर लगाने से असर जल्दी होगा.
डॉ. ओमेश भारती के इस शोध को जल्द ही वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर से मान्यता दी गई. अब विश्व स्तर पर इसी नई तकनीक से पागल कुत्ते के काटने का इलाज हो रहा है. डॉ. ओमेश भारती ने अपने शोध से साबित किया है कि रेबीज इमोग्लोबिन नाम के सीरम को सीधे घाव या जख्म पर लगाने से ये जल्द असर भी करता है. इसमें दवाई की मात्रा भी कम इस्तेमाल होती है. हिमाचल में बीते 3 साल से इसी तकनीक से इलाज किया जा रहा है. प्रदेश सरकार पूरी तरह से इस इलाज को फ्री करवा रही है.
डॉ. भारती ने कहा कि 17 सालों के अपने शोध के दौरान उन्होंने कई मरीजों पर प्रयोग किया, लेकिन वर्ष 2013 के बाद डॉ. भारती ने 269 मरीजों पर इस सीरम का उपयोग किया जिसके बेहतर परिणाम सामने आए. उन्होंने कहा कि इस इलाज के बाद प्रदेश में एक भी मामला रेबीज का नहीं आया है. साथ ही इस बीमारी से किसी की मौत नहीं हुई है.