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लोकायुक्त ने नियुक्त किए थे सेवादार, सचिव ने रद्द कर दी थी नियुक्तियां, हाई कोर्ट ने निरस्त किया लोकायुक्त सचिव का फैसला - हिमाचल प्रदेश न्यूज

हिमाचल में राज्य लोकायुक्त ने कुछ सेवादार नियुक्त किए थे. इन नियुक्तियों को लोकायुक्त सचिव ने रद्द कर दिया था. हाई कोर्ट ने लोकायुक्त सचिव के फैसले को निरस्त कर दिया. क्या है पूरा मामला पढ़ें पूरी खबर... (Himachal High Court News) (Himachal Pradesh News).

Himachal High Court News
हिमाचल हाई कोर्ट (फाइल फोटो).

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 29, 2023, 9:32 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला किया है. राज्य लोकायुक्त ने कुछ सेवादार नियुक्त किए थे. इन नियुक्तियों को लोकायुक्त सचिव ने रद्द कर दिया था. प्रभावित सेवादार लोकायुक्त सचिव के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचे थे. हाई कोर्ट ने लोकायुक्त सचिव के फैसले को निरस्त कर दिया. अदालत ने कहा कि लोकायुक्त की शक्तियां भी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समान होती हैं. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य ने राज्य सरकार को आदेश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ताओं के मामले में फिर से अदालत के निर्णय के तहत फैसला लें.

इस मामले में हाई कोर्ट ने रमेश चंद व ललित शर्मा की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए उपरोक्त निर्णय दिया है. अदालत ने कहा कि लोकायुक्त के पास भी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के समान शक्तियां निहित हैं. हालांकि हिमाचल प्रदेश लोकायुक्त नियम-1984 में इसका विशेष रूप से प्रावधान नहीं है, लेकिन नियम-10 के तहत लोकायुक्त के पास भी हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की तरह शक्तियां निहित हैं. इसके तहत लोकायुक्त भी अपनी पसंद के सेवादार की नियुक्ति करने में सक्षम हैं.

अदालत को बताया गया कि लोकायुक्त ने याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति 27 अक्टूबर 2014 को सेवादार के पद पर की थी, लेकिन लोकायुक्त की सेवा अवधि पूरी होने के बाद सचिव ने 12 जुलाई 2017 को सेवादारों की नियुक्तियां रद्द कर दी थी. याचिकाकर्ताओं ने इस निर्णय को तात्कालिक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी. ट्रिब्यूनल की ओर से पारित अंतरिम आदेश के तहत वे अभी तक सेवादार के पद पर लोकायुक्त कार्यालय में सेवाएं दे रहे हैं.

कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति लोकायुक्त ने की थी, लेकिन उनकी सेवाओं को लोकायुक्त के सचिव ने रद्द किया है. अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को नौकरी से बर्खास्त करने से पहले उन्हें सुनवाई का मौका भी नहीं दिया गया. अब राज्य सरकार को हाई कोर्ट के फैसले के तहत आगामी निर्णय लेने के लिए कहा गया है.

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