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हिमाचल के 50 साल पूरे होने पर 'रॉयल' से रॉयल बने हिमाचल के बागवान

पूर्ण राज्यत्व के 50 साल तक पहुंचते-पहुंचते हिमाचल को एप्पल बाउल स्टेट के नाम से जाना जाने लगा है. हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत के दम पर सेब के स्वाद को देश के कोने-कोने के साथ विदेशों तक भी पहुंचाया है. हिमाचल का ये सेब बागवानों की जेब और सरकार के खजाने में भी अपनी भागीदारी निभाता है.

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हिमाचल के 50 साल पूरे होने पर 'रॉयल' से रॉयल बने हिमाचल के बागवान

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Published : Jan 25, 2020, 12:42 PM IST

शिमला:हिमाचल प्रदेश बेशक पूर्ण राज्यत्व के 50वें बरस में प्रवेश कर रहा है, लेकिन यहां पर लाल-लाल रसीले सेबों के उत्पादन का सफर एक सदी से भी पुराना हो गया है. हिमाचल में सेब को लाने का श्रेय भले ही एक अमेरिकन सैंमुअल्स ईवान स्टोक्स को जाता है, लेकिन हिमाचल को भारत का एप्पल बाउल बनाने में यहां के मेहनतकश पहाड़ियों को श्रेय दिया जाएगा.

पूर्ण राज्यत्व के 50 साल तक पहुंचते-पहुंचते हिमाचल को एप्पल बाउल स्टेट के नाम से जाना जाने लगा है. हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत के दम पर सेब के स्वाद को देश के कोने-कोने के साथ विदेशों तक भी पहुंचाया है. हिमाचल का ये सेब बागवानों की जेब और सरकार के खजाने में भी अपनी भागीदारी निभाता है.

सेब उत्पादन का सिरमौर बनने में हिमाचल को एक सदी से भी अधिक समय लग गया. आज सेब हिमाचल की मुख्य फसल मानी जाती है. हिमाचल प्रदेश में सेब का सबसे पहला व्यवसायिक बगीचा एक अंग्रेज सिपाही कैप्टन आरसी ली ने कुल्लू के बंदरोल में 1870 में लगाया था.

लगभग 1887 के आसपास शिमला जिला में भी एलेक्जेंडर कूटस ने मशोबरा में सेब का बगीचा लगाया, जो कि अब क्षेत्रीय बागवान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के नाम से जाना जाता है.

शुरूआती दौर में इंग्लैंड और यूरोप से आयात की गई सेब की प्रजातियां ज्यादातर हरे और पीले फल देने वाली थी और उनमें कुछ खास भी थी. भारतवासियों को यह ज्यादा पसंद आती क्योंकि उनको अनेक मीठे फल खाने की आदत थी.

व्यवसायिक से उत्पादन को एक नई दिशा तब मिली जब सत्यानंद स्टोक्स जो कि एक अमेरिकी नागरिक थे. उन्होंने अमेरिका से 1916 में रेड डेलीशियस प्रजाति के पौधे मंगवाए और कोटगढ़ इलाके के बारूबाग गांव में लगाकर उनका प्रचार किया. इस प्रजाति का फल लाल रंग का था और हरे फल के मुकाबले अधिक मीठा था.

यहां से हिमाचल की सेब पैदावार में क्रांति सी आ गई. कोटगढ़ से यह प्रजाति जल्द ही प्रदेश के दूसरे इलाकों में फैली और इसकी अन्य उन्नत किस्में प्रदेश में बड़े पैमाने पर लगाई गई. स्टोक्स ने एक लोकप्रिय प्रजाति गोल्डन डिलीशियस भी अमेरिका से आयात की थी जो अब हर सेब उत्पादन क्षेत्र में फैल चुकी है.

क्षेत्रीय बागवान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्रों ने भी कई उन्नत प्रजातियां विकसित की. हिमाचल ने अमेरिका इटली से भी पौधे आयात किए. 1960 में सेब की पैदावार 12 हजार टन थी जो 2018-19 में बढ़कर 4.46 लाख टन हो गई.

2019 में 2 करोड़ 74 लाख 79 हजार 669 से अधिक पेटियां बाजार में बिकी हैं. जबकि 2018 में 1 करोड़ 42 लाख पेटियां बाजार में उतरी थीं. वर्ष 2017 में 1 करोड़ 73 लाख सेब पेटियों का उत्पादन हुआ था.

देश में पैदा होने वाले सेब का 35 प्रतिशत हिस्सा हिमाचल ही पैदा करता है. हिमाचल में सेब की पैदावार 3500 से लेकर 9000 फीट तक की ऊंचाई पर होती है. शिमला, कुल्लू, सिरमौर, किन्नौर और चंबा में सेब की सबसे ज्यादा पैदावार होती है. सेब की बदौलत कई बागवान दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की कर चुके हैं.

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हिमाचल में प्रतिवर्ष 4000 करोड़ रुपयों के सेब का कारोबार होता है. 4 लाख बागवान परिवार ऐसे हैं जिनका रोजगार सेब पर ही निर्भर करता है. यहां तक कि सेब उत्पादन के कारण एशिया का सबसे अमीर गांव भी हिमाचल के शिमला जिला में स्थित मड़ावग गांव है.

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