शिमला:हिमाचल प्रदेश बेशक पूर्ण राज्यत्व के 50वें बरस में प्रवेश कर रहा है, लेकिन यहां पर लाल-लाल रसीले सेबों के उत्पादन का सफर एक सदी से भी पुराना हो गया है. हिमाचल में सेब को लाने का श्रेय भले ही एक अमेरिकन सैंमुअल्स ईवान स्टोक्स को जाता है, लेकिन हिमाचल को भारत का एप्पल बाउल बनाने में यहां के मेहनतकश पहाड़ियों को श्रेय दिया जाएगा.
पूर्ण राज्यत्व के 50 साल तक पहुंचते-पहुंचते हिमाचल को एप्पल बाउल स्टेट के नाम से जाना जाने लगा है. हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत के दम पर सेब के स्वाद को देश के कोने-कोने के साथ विदेशों तक भी पहुंचाया है. हिमाचल का ये सेब बागवानों की जेब और सरकार के खजाने में भी अपनी भागीदारी निभाता है.
सेब उत्पादन का सिरमौर बनने में हिमाचल को एक सदी से भी अधिक समय लग गया. आज सेब हिमाचल की मुख्य फसल मानी जाती है. हिमाचल प्रदेश में सेब का सबसे पहला व्यवसायिक बगीचा एक अंग्रेज सिपाही कैप्टन आरसी ली ने कुल्लू के बंदरोल में 1870 में लगाया था.
लगभग 1887 के आसपास शिमला जिला में भी एलेक्जेंडर कूटस ने मशोबरा में सेब का बगीचा लगाया, जो कि अब क्षेत्रीय बागवान अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र के नाम से जाना जाता है.
शुरूआती दौर में इंग्लैंड और यूरोप से आयात की गई सेब की प्रजातियां ज्यादातर हरे और पीले फल देने वाली थी और उनमें कुछ खास भी थी. भारतवासियों को यह ज्यादा पसंद आती क्योंकि उनको अनेक मीठे फल खाने की आदत थी.
व्यवसायिक से उत्पादन को एक नई दिशा तब मिली जब सत्यानंद स्टोक्स जो कि एक अमेरिकी नागरिक थे. उन्होंने अमेरिका से 1916 में रेड डेलीशियस प्रजाति के पौधे मंगवाए और कोटगढ़ इलाके के बारूबाग गांव में लगाकर उनका प्रचार किया. इस प्रजाति का फल लाल रंग का था और हरे फल के मुकाबले अधिक मीठा था.