शिमला: प्रदेश की राजधानी शिमला में मकान मालिकों और किराएदारों के बीच कानूनी विवाद अकसर चर्चा में रहते हैं. अब हाई कोर्ट ने एक मामले में बहुत अहम व्यवस्था दी है. हाई कोर्ट ने व्यवस्था देते हुए कहा है कि जर्जर व खस्ताहाल भवन से किराएदार को बाहर करने के लिए यह जरूरी नहीं कि पहले मकान मालिक भवन निर्माण का नक्शा पास करवाए.
अदालत ने साथ ही ये भी कहा कि यदि भवन काफी जर्जर और खस्ताहाल में हो तो मकान मालिक कभी भी भवन को खाली करवाने का हक रखता है. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने एक किराएदार की तरफ से बेदखली आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए ये व्यवस्थाएं दी हैं.
न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने अपने फैसले में कहा है कि यदि मकान खस्ताहाल है तो मालिक ये हक रखता है कि किराएदार से भवन को खाली करवाए. अदालत ने किरायेदार के फिर से मकान में एंट्री यानी री-एंट्री के हक वाले बिंदू को भी स्पष्ट किया है. अदालत ने कहा है कि किरायेदार को कानून के तहत दिया गया री-एंट्री का हक कई अन्य पहलुओं पर निर्भर करता है.
हाई कोर्ट ने यह भी साफ कहा है कि जर्जर मकान से किरायेदार को बेदखल करने के लिए मकान मालिक के लिए यह भी जरूरी नहीं है कि वह भवन के फिर से निर्माण का निर्धारित समय किरायेदार को बताए. शिमला में मकान मालिकों और किराएदारों के बीच चल रहे विभिन्न अदालती मामलों में ये व्यवस्थाएं बहुत अहम साबित होंगी.
क्या है पूरा मामला-अदालत के समक्ष आए मामले के अनुसार शिमला की वाईएमसीए (यंग मैन क्रिश्चियन एसोसिएशन) संस्था ने अपने 80 साल पुराने खस्ताहाल सर्वेंट क्वार्टर से किरायेदार को निकालने के लिए रेंट कंट्रोलर के समक्ष याचिका दाखिल की थी. वाईएमसीए संस्था का कहना था कि विवादित मकान अपनी आयु पूरी कर चुका है और रहने लायक नहीं है.
इसके स्थान पर अधिक कमाई के लिए नया मकान बनाने की बात भी मकान मालिक की ओर से कही गई थी. वहीं, इस मामले में किराएदार का कहना था कि मकान मालिक ने नए मकान का नक्शा मंजूर नहीं करवाया है. साथ ही किराएदार ने ये भी कहा कि मकान मालिक ने उसके साथ इस बारे में कोई चर्चा भी नहीं की है.
इस याचिका की सुनवाई में रेंट कंट्रोलर ने किरायेदार को इस शर्त पर बाहर करने के आदेश दिए कि पहले मकान मालिक नक्शा स्वीकृत करवाएगा और किरायेदार के लिए री-एंट्री का हक भी होगा. रेंट कंट्रोलर के उक्त आदेश को दोनों पक्षकारों ने अपील के माध्यम से चुनौती दी. अपीलीय अदालत ने किरायेदार की अपील खारिज कर दी और मकान मालिक वाईएमसीए संस्था की अपील को स्वीकार करते हुए उन्हें मकान के नए सिरे से निर्माण करने की समय सीमा भी तय कर दी.
फिर से दोनों पक्षकारों ने अपीलीय अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर के समक्ष हुई. न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने अपनी व्यवस्थाओं में स्पष्ट किया कि जर्जर भवन से मकान मालिक किराएदार को बाहर करने का हक रखता है. वहीं, किराएदार की री-एंट्री के हक के संदर्भ में भी हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ये हक कई पहलुओं पर निर्भर करता है.
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