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विवादों के बावजूद हिमाचल में सरकारें नियुक्त करती रही हैं सीपीएस, पहले भी कोर्ट पहुंचे हैं मामले, वीरभद्र सरकार ने बनाए थे 10 CPS - Virbhadra Govt

हिमाचल प्रदेश में सीपीएस मामला इस समय गर्माया हुआ है. हिमाचल हाई कोर्ट में इसकी जहां सुनवाई हो रही है. वहीं, प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने सीपीएस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. हिमाचल में विभिन्न सरकारों द्वारा सीपीएस नियुक्ति का मामला बहुत पुराना है. (Himachal CPS appointment case)

Himachal CPS appointment case
पूर्व सीएम स्वर्गीय वीरभद्र सिंह, पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल, सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Nov 4, 2023, 7:09 AM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सीपीएस की नियुक्ति का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. छोटे पहाड़ी राज्य में ये विवाद नया नहीं है. यहां पहले भी सीपीएस की नियुक्तियां होती रही हैं और मामले अदालत तक जाते रहे हैं. एक दशक पहले वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में दस सीपीएस बनाए गए थे. मौजूदा समय में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार ने भी छह विधायकों को सीपीएस बनाया है. इनकी नियुक्ति को भाजपा विधायक सतपाल सिंह सत्ती व अन्य ने हिमाचल हाई कोर्ट में चुनौती दी है. शनिवार यानी आज इस मामले में हाई कोर्ट सुनवाई करेगा. इस बीच, शुक्रवार को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लिस्टेड था, लेकिन सुनवाई नहीं हो सकी. आइए, जानते हैं कि हिमाचल में आखिरकार सीपीएस की नियुक्ति की नौबत क्यों आती है और हर बार विवादों में घिरने के बावजूद सत्तासीन दल सीपीएस क्यों बनाता है?

वीरभद्र सिंह सरकार ने बनाए थे 10 सीपीएस: हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने साल 2013 में दस सीपीएस नियुक्त किए थे. सत्ता में आते ही तत्कालीन सीएम वीरभद्र सिंह ने जनवरी, मई व अक्टूबर 2013 में सीपीएस बनाए. उस समय सुंदरनगर से विधायक सोहनलाल ठाकुर, रामपुर से नंदलाल, ज्वाली से नीरज भारती, घुमारवीं से राजेश धर्माणी, श्री रेणुकाजी से विनय कुमार, सुलह से जगजीवन पाल, जुब्बल से रोहित ठाकुर, बड़सर से आईडी लखनपाल, चिंतपूर्णी से राकेश कालिया व करसोग से मनसाराम को सीपीएस बनाया गया था. तब पीपुल्स फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस नामक संस्था ने इन नियुक्तियों को हिमाचल हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

2014 में राजेश धर्माणी ने छोडा सीपीएस का पद:उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में भी भाजपा विधायकों के अलावा उपरोक्त संस्था ने नियुक्तियों को चुनौती दी हुई है. खैर, वीरभद्र सिंह सरकार के समय नियुक्त सीपीएस के मामले में हाई कोर्ट में 28 दिसंबर 2016 को सुनवाई में तत्कालीन सरकार ने जवाब दाखिल कर कहा था कि सारी नियुक्तियां कानून के दायरे में हुई हैं. उस समय वीरभद्र सिंह सरकार ने हिमाचल हाई कोर्ट में कहा था कि संस्था का याचिका दाखिल करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता और संस्था ने काफी देर बाद याचिका दाखिल की है. तब हाई कोर्ट ने मार्च 2017 को सुनवाई तय की थी. इस तरह मामला लटकता रहा और सरकार का कार्यकाल पूरा हो गया. अलबत्ता 14 मार्च 2014 को राजेश धर्माणी ने अपनी सीपीएस की कुर्सी छोड़ दी थी. उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था. धर्माणी का कहना था कि ये पद महज दिखावा है.

जयराम सरकार में बने थे चीफ व डिप्टी चीफ व्हिप: दिसंबर 2017 में सत्ता परिवर्तन हुआ और जयराम ठाकुर के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी. जयराम सरकार ने सीपीएस तो नहीं बनाए, अलबत्ता विधानसभा में फ्लोर मैनेजमेंट के लिए चीफ व्हिप व डिप्टी चीफ व्हिप जरूर नियुक्त किए. नरेंद्र बरागटा चीफ व्हिप बनाए गए थे. कोरोना काल में साल 2021 में नरेंद्र बरागटा के देहावसान के बाद विधायक विक्रम जरयाल को चीफ व्हिप बनाया. महिला विधायक कमलेश कुमारी को डिप्टी चीफ व्हिप बनाया गया था.

हाई कोर्ट में पहुंचा था मामला: दिलचस्प बात ये रही कि नरेंद्र बरागटा व बाद में बनाए गए चीफ व डिप्टी चीफ व्हिप यानी मुख्य सचेतक व उप मुख्य सचेतक की नियुक्ति को भी हिमाचल हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. चीफ व्हिप व डिप्टी चीफ व्हिप को कैबिनेट रैंक दिया गया था. हालांकि इस मामले में भी कोई निर्णायक फैसला नहीं आया. नियुक्ति पाने वाले नेताओं से हाई कोर्ट ने जवाब तलब किया था. राज्य सरकार ने तर्क दिया था कि इनकी नियुक्ति के लिए सैलरी अलाउंस एंड अदर बेनिफिट्स ऑफ चीफ व्हिप एंड डिप्टी चीफ व्हिप इन लेजिसलेटिव असेंबली ऑफ हिमाचल प्रदेश एक्ट-2018 बनाया गया है. इसमें मुख्य सचेतक व उप मुख्य सचेतक की नियुक्ति और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का प्रावधान है.

प्रेम कुमार धूमल सरकार में भी बने थे सीपीएस: प्रेम कुमार धूमल साल 2007 में दूसरी बार सत्ता में आए तो उनके नेतृत्व वाली सरकार ने 18 महीने के कार्यकाल के बाद 2009 में तीन सीपीएस की नियुक्ति की थी. इनमें सतपाल सिंह सत्ती, वीरेंद्र कंवर व सुखराम चौधरी शामिल थे. हिमाचल में साल 2007 में सीपीएस की नियुक्ति के लिए हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्ति, सुविधा व एमेनिटीज एक्ट बना था. इसके तहत ही नियुक्तियां होती आई हैं.

सीपीएस का वेतन:सीपीएस का मूल वेतन 65 हजार रुपए है. भत्ते आदि मिलाकर ये वेतन 2.20 लाख रुपए महीना है. इसके अलावा गाड़ी, स्टाफ अलग से मिलता है. विधायकों से सीपीएस का वेतन दस हजार रुपए अधिक है. विधानसभा अध्यक्ष का वेतन 2.54 लाख महीना, उपाध्यक्ष का 2.49 लाख रुपए महीना है. सीएम को 2.69 लाख रुपए वेतन मिलता है. कैबिनेट मंत्रियों का वेतन भी 2.54 लाख रुपए महीना है. हिमाचल प्रदेश में आखिरी बार वीरभद्र सिंह सरकार के समय माननीयों के वेतन व भत्ते बढ़े थे. फिर जयराम सरकार के समय यात्रा भत्ता बढ़ा था. हिमाचल हाई कोर्ट में याचिका के बाद जयराम सरकार के समय से ही माननीय अपने वेतन पर टैक्स खुद भरते हैं. पहले ये टैक्स भी सरकार ही भरती थी.

विधायकों को एडजस्ट करने का जरिया है सीपीएस का पद:राज्य में सत्तासीन दल एक खास संख्या में ही मंत्री बना सकता है. यह कुल विधायकों की संख्या का 15 फीसदी होता है. हिमाचल में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं. इस लिहाज से ये संख्या 12 होती है. एक निश्चित संख्या से अधिक नेता एडजस्ट न होने की स्थिति में सीपीएस बनाए जाते हैं. इन्हें झंडी वाली कार, स्टाफ व ऑफिस मिलता है. इससे कैबिनेट मंत्री वाली फील आती है. वरिष्ठ मीडिया कर्मी धनंजय शर्मा का कहना है कि संतुलन साधने के लिए सीपीएस सरीखी नियुक्तियां करनी पड़ती हैं. पूर्व में पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ऐसी नियुक्तियों को अमान्य ठहरा चुका है. हिमाचल में इन नियुक्तियों को दी गई चुनौती क्या रूप लेती है, ये कोर्ट के फैसले पर निर्भर है.

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