शिमला:प्रदेश उच्च न्यायालय ने आजादी से पहले ''पशु पड़ाव'' नाम से जानी जाने वाली संपत्ति की बिजली व पानी बहाल करने के आदेश जारी किए है. इसके अलावा हाईकोर्ट ने इस संपत्ति के मालिकाना हक का निर्धारण करने के लिए लंबित अपील को निपटाने के आदेश भी दिए हैं. हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने नगर निगम शिमला के समहर्ता को आदेश दिए कि वह छह महीनों के भीतर अपील का निपटारा करें.
नगर निगम ने 21 फरवरी 2023 को बेदखली आदेश पारित किए:अदालत ने याचिकाकर्ता ऊषा शर्मा की याचिका का निपटारा करते हुए यह आदेश पारित किए. याचिका में आरोप लगाया गया था कि नगर निगम शिमला ने उसे गलत तरीके से बेदखल किया है. अदालत को बताया गया कि निगम को कई शिकायतें मिली कि प्रार्थी ने सरकारी संपत्ति ''पशु पड़ाव'' पर अवैध कब्जा किया है. निगम ने प्रार्थी के खिलाफ बेदखली का कार्रवाई की और 21 फरवरी 2023 को बेदखली आदेश पारित किए. इन आदेशों को प्रार्थी ने मंडलायुक्त शिमला के पास अपील के माध्यम से चुनौती दी. अपील के साथ बेदखली आदेशों को स्थगन किए जाने के लिए आवेदन भी किया गया.
बिजली व पानी का कनेक्शन काट दिया: मंडलायुक्त शिमला ने बेदखली आदेशों को स्थगन करने से इंकार कर दिया. इसी बीच निगम ने याचिकाकर्ता को बलपूर्वक बेदखल कर दिया और संपत्ति का बिजली व पानी का कनेक्शन काट दिया. निगम की ओर से अदालत को बताया गया कि आजादी से पूर्व इस संपत्ति पर निगम का हक था. निगम का गठन 1851 में किया गया था. उस समय यह संपत्ति पशु पड़ाव के लिए रखी गई थी. इस संपत्ति की देखरेख का जिम्मा लखू राम को दिया गया था. अदालत को बताया गया कि लखू राम की मृत्यु के बाद इस संपत्ति की कोई भी लीज नहीं बनाई गई.
निगम की संपत्ति पर अवैध कब्जा:निगम की ओर से दलील दी गई कि प्रार्थी लखू राम की बहू है और उसने निगम की संपत्ति पर अवैध कब्जा किया है. प्रार्थी ने इस संपत्ति पर घर, डेयरी फार्म, नर्सरी आदि बनाकर कब्जा किया है. अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन पर पाया कि जब मंडलायुक्त शिमला के पास अपील के साथ बेदखली आदेशों के स्थगन के लिए आवेदन किया गया था, तो ऐसी स्थिति में संपत्ति का बिजली व पानी काटना गलत है.
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