शिमला: बदलते समय के साथ खेती के तरीके भी बदले हैं. ये दौर प्राकृतिक खेती, जहरमुक्त खेती का है. कृषि के ऋषि कहे जाने वाले डॉ. सुभाष पालेकर (Dr. Subhash Palekar) के मॉडल से हिमाचल के किसानों की दशा भी बदलेगी. राज्य सरकार का मिशन 2022 तक हिमाचल के किसानों की आय दोगुनी करने का है. इसके लिए डॉ. पालेकर का मॉडल सक्षम बताया जा रहा है. प्रदेश में इस समय सवा लाख से अधिक किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं. राज्य सरकार का लक्ष्य प्रदेश के सभी 9.61 लाख किसानों को नेचुरल फार्मिंग से जोड़ने का है. नेचुरल फार्मिंग के कई लाभ हैं. जहर मुक्त खेती का अभियान पूरे देश में चल रहा है और हिमाचल इसमें देश का रोल मॉडल बन सकता है. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी पूरी कोशिश कर रही है.
तीन साल पहले हुई शुरुआत
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल (Governor of Himachal Pradesh) रहे आचार्य देवव्रत प्राकृतिक खेती के बड़े मुरीद हैं. उन्हीं की पहल पर तीन साल पहले हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती का अभियान शुरू किया गया. कृषि की ऋषि की उपाधि से अलंकृत डॉ. सुभाष पालेकर आचार्य देवव्रत के मित्र हैं. फरवरी 2018 में वे हिमाचल आए और यहां एक सेमीनार हुआ. उसके बाद से हिमाचल में प्राकृतिक खेती (Natural Farming In Himachal) का चलन तेज हो गया. किसानों को प्रशिक्षण दिया जाने लगा. खुद सीएम जयराम ठाकुर ने भी इस प्रोजेक्ट में रुचि ली. बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर (Horticulture Minister Mahender Singh Thakur) ने आचार्य देवव्रत के कुरुक्षेत्र स्थित नेचुरल फार्म का दौरा किया.
हिमाचल की जरूरत है जीरो बजट प्राकृतिक खेती
हिमाचल प्रदेश में किसान (Farmers in Himachal Pradesh) सिंचाई सुविधा की कमी से परेशान हैं. इसके अलावा कीटनाशकों को दुष्प्रभाव ने भी हिमाचल में खेती व बागवानी को नुकसान पहुंचाया है. प्रदेश की अस्सी फीसदी से अधिक आबादी खेती व बागवानी सहित पशुपालन पर निर्भर है. कई संकटों से जूझ रहे हिमाचल के कृषि क्षेत्र को वैकल्पिक खेती की सख्त जरूरत है. ऐसे में जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming) यानी प्राकृतिक खेती (Natural Farming) हिमाचल के लिए उपहार साबित हो सकती है. जीरो बजट खेती में कम पानी में और बिना महंगे रासायनिक कीटनाशकों के खेती होती है. लागत कम व उत्पादन अधिक होता है. इससे न केवल खेती की उर्वर शक्ति बढ़ती है, बल्कि किसानों को मुनाफा भी खूब होता है.
कौन हैं कृषि के ऋषि और क्या है नेचुरल फार्मिंग का लाभ
सुभाष पालेकर को कृषि का ऋषि की उपाधि यूं ही नहीं दी गई है. विनम्र स्वभाव वाले सुभाष पालेकर देश भर के किसानों के लिए आस की किरण की तरह हैं. खेती-बागवानी में शानदार योगदान के लिए उन्हें पदमश्री सम्मान मिल चुका है. एग्रीकल्चर में बीएससी की डिग्री हासिल करने वाले सुभाष पालेकर ने जीरो बजट खेती का कंसेप्ट सबके लिए सुलभ बनाया है. उन्होंने सत्तर के दशक में देश के खेती मॉडल का विस्तार से अध्ययन किया है. पिता के साथ खेती करते हुए उन्होंने कृषि में पेश आ रही समस्याओं का गहराई से अध्ययन किया.
वर्ष 1972 से 1985 तक अध्ययन के बाद उन्होंने पाया कि रासायनिक खादों व कीटनाशकों के लगातार प्रयोग से कुछ समय तक तो फसलों की पैदावार बढ़ती है, लेकिन बाद में इसमें गिरावट शुरू हुई. साथ ही इको सिस्टम पर भी इसका बुरा असर पड़ा. लिहाजा उन्होंने पहले प्राकृतिक वनस्पति का अध्ययन किया तथा इसके बाद अध्ययनों के निष्कर्ष के आधार पर शून्य लागत प्राकृतिक खेती को अपनाया. इसके बाद खेती में फिर से पैदावार बढऩा शुरू हुई. किसानों ने उनके अध्ययन के बाद रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का उपयोग भी बंद कर दिया. सुभाष पालेकर दस तरह की पत्तियों का विशेष रूप से प्रयोग करते हैं. फसलों के लिए आवश्यक तत्व वे प्रकृति से ही जुटा लेते हैं. संकर बीजों की बजाय देशी बीजों का प्रयोग किया जाता है.
नीति आयोग भी कर चुका है बड़ा ऐलान
तीन साल पहले इसी समय यानी जुलाई माह में दस तारीख को नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया -National Institution for Transforming India) आयोग ने जीरो बजट नेचुरल खेती को लेकर बड़ा ऐलान किया था और इस मॉडल को पूरे देश में लागू करने की सिफारिश की. दिल्ली में हुए नेशनल सेमीनार के दौरान हिमाचल के तत्कालीन गवर्नर आचार्य देवव्रत गेस्ट ऑफ ऑनर थे. उन्होंने देश भर से आए प्रतिभागियों व अफसरों के बीच जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming) के अपने अनुभव साझा किए थे. तब नीति आयोग ने हिमाचल व आंध्र प्रदेश की तर्ज पर जीरो बजट खेती को व्यवहारिक बनाने के लिए सभी राज्यों से आग्रह किया था. इस पर काफी काम हो रहा है. जीरो बजट खेती वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने में एक अहम रोल अदा करेगी. इससे खेती की लागत कम होगी और किसानों को अधिक मुनाफा होगा.