शिमला: राजनीतिक दल बेशक परिवारवाद की परिभाषा अपनी सुविधा के अनुसार गढ़ते रहे हैं, लेकिन ये स्थापित तथ्य है कि देश की राजनीति में अब नेताओं के परिजनों का खासा बोलबाला है. इस बार पहाड़ यानी हिमाचल की सियासत में फिर से लोगों की नजरें नेताओं के परिजनों की हार-जीत पर लगी हैं. वर्ष 2017 में हिमाचल की राजनीति में सबसे कद्दावर राजनेता वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह की चुनावी राजनीति में एंट्री हुई. विक्रमादित्य सिंह ने पहली बार चुनाव लड़ा और वे शिमला ग्रामीण सीट से विधायक चुने गए. पालमपुर से कांग्रेस के कद्दावर नेता बीबीएल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल भी पहली बार विधायक बने. इस बार के चुनाव में विक्रमादित्य सिंह और आशीष बुटेल फिर से चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस के पूर्व मंत्री और विधायक सुजान सिंह पठानिया के निधन से खाली हुई सीट पर उनके बेटे भवानी सिंह पठानिया उपचुनाव में विजय हासिल कर विधानसभा पहुंचे. (Himachal Pradesh poll result) (Familyism in Himachal politics )
इस बार के चुनाव की बात करें तो उक्त वर्णित नामों के अलावा भाजपा से वरिष्ठ नेता और जयराम ठाकुर सरकार में सबसे पावरफुल मंत्री रहे महेंद्र सिंह ठाकुर ने अपने बेटे रजत ठाकुर को टिकट दिलाने में सफलता हासिल की. भाजपा में बड़सर से पूर्व विधायक बलदेव शर्मा की धर्मपत्नी माया शर्मा चुनाव लड़ रही हैं. जुब्बल-कोटखाई से पूर्व मंत्री स्व. नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा भाजपा प्रत्याशी हैं. उपचुनाव में वे निर्दलीय के तौर पर लड़े थे, क्योंकि पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया था. (Himachal Pradesh Election news) (Himachal Election 2022 Result) (Politics in Himachal)
वहीं, कांग्रेस से दिग्गज नेता स्व. जीएस बाली के बेटे रघुवीर सिंह बाली पहली दफा चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के दावेदार और वरिष्ठ राजनेता कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर फिर से चुनाव मैदान में हैं. वे मंडी सदर सीट से चुनाव लड़कर पहली बार जीतने की हसरत पाले हुए हैं. यदि कौल सिंह ठाकुर व चंपा ठाकुर, दोनों ही विजय हासिल करने में सफल होते हैं तो पिता-पुत्री की जोड़ी विधानसभा में देखी जा सकेगी. इससे पूर्व 2017 में वीरभद्र सिंह विक्रमादित्य सिंह के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी विधानसभा में रही. (Virbhadra Singh Family in Himachal Politics)