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इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध से जुड़ा रहा है अलवर का इतिहास, आर्थिक मदद और हथियार कराए थे मुहैया

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद पुराना है और युद्ध 70 सालों से छिड़ा है. इस युद्ध के इतिहास में अलवर रियासत का भी विशेष महत्व रहा है. रियासत के महाराज तेज सिंह ने धनराशि जुटाने के साथ युद्ध में अपने सैनिकों को भी जंग के लिए भेजा था.

Role of the princely state of Alwar, अलवर रियासत की भूमिका
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Published : May 24, 2021, 3:53 PM IST

शिमला/अलवर:इजरायल और फिलिस्तीन के बीच 70 सालों से गाजा पट्टी सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर लगातार विवाद चल रहा है. ग्यारह दिन चले संघर्ष में दोनों देशों के बीच युद्ध जैसे हालात बने और मिसाइल हमले तक हुए. अमेरिका व रूस के दबाव और हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों में युद्ध विराम हो गया है. करीब 70 साल से भी पुरानी इजराइल और फिलिस्तीन की इस जंग में राजस्थान के अलवर का खास कनेक्शन रहा है.

बताते हैं कि 1947 से पहले अलवर रियासत के सैनिकों ने युद्ध में हिस्सा लिया था. इस दौरान अलवर रियासत की तरफ से युद्ध में लड़ाकू जहाज, राइफल, गोला-बारूद सहित अन्य जरूरी सामान उपलब्ध कराए गए थे. सैनिकों को युद्ध के लिए भेजा साथ ही इस दौरान फंड जुटाने के लिए अलवर रियासत में कई कार्यक्रम भी आयोजित हुए. द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर सन 1947 से पहले उस समय हुए युद्धों में अलवर की भूमिका के संबंध में इतिहासकार सह आचार्य डॉ. फूल सिंह सहारिया ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की.

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डॉ. फूल सिंह सहारिया अब तक 35 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र प्रस्तुत कर चुके हैंं और उनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें भी अलवर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर प्रकाशित हो चुकी हैं. डॉ. फूल सिंह ने बताया कि इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहा विवाद सालों पुराना है. उन्होंने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत काल के दौरान अलवर रियासत उनके अधीन थी. इस दौरान अंग्रेजों से हुई संधि के अनुसार अलवर रियासत के सैनिकों ने कई देशों के साथ मिलकर युद्ध लड़ा. पुराने अभिलेख और प्रकाशित अखबारों और शोध के माध्यम से उन्होंने बताया कि हांगकांग और सिंगापुर के शाही भारतीय तोपखाना ने कई हमले कर इटैलियन हवाई जहाज गिराए थे.

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अलवर रियासत काल में कई कार्यक्रम हुए

उन्होंने बताया कि जर्मनी की वायु सेना ने भी लंदन पर इटैलियन हवाई जहाज गिराए. जर्मनी की वायु सेना ने भी लंदन पर हमला किया. उसमें 400 व्यक्ति मारे गए तो वहीं 1400 सौ के लगभग घायल हुए थे. जुलाई 1940 के शुरू में भारत ने बड़ी संख्या में युद्ध सामग्री भेजी. इसमें 7 करोड़ 50 लाख रुपये के गोला बारूद, हथियार दिए गए थे. दो लाख सब प्रकार के गोले 600 राइफल एक लाख 10 हजार बोरियां भेजी गईं. इसके अतिरिक्त 95 वेव इंक्रीमेंट सेट भेजे गए. 3900000 कंबल 9000000 गज खाकी जीन चेहरे और 17000 काठिया भेजी गई. फंड इकट्ठा करने के लिए उस दौरान अलवर रियासत काल में कई कार्यक्रम हुए.

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उन्होंने कहा कि वाशिंगटन स्टार पोस्ट के माध्यम से बताया गया कि अमेरिका भी विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की ओर से शामिल होगा. इस दौरान जर्मनी की आशंकाओं के विरुद्ध जापान के साथ एक संधि हो चुकी थी. इसी में यह भी प्रकाशित किया गया था कि हिटलर 1941 में रूस पर आक्रमण करने का विचार कर रहा है. ग्रीन सेना की ओर से 7000 इटेलियन को कैद किया गया है. 29 नवंबर को ब्रिटिश पोस्ट ने 11 जर्मन हवाई जहाज नष्ट किए. मिस्र के पश्चिमी रेगिस्तान में हिंदुस्तानी फौज के सिपाहियों में खासा जोश देखने को मिला. सितंबर 1940 के अंत तक सप्लाई डिपार्टमेंट के दो खरीद करने वाले विभागों की ओर से सिविल और मिलिट्री के लिए लगभग 56 करोड़ 50 लाख के माल के ऑर्डर दिए जा चुके थे.

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उन्होंने कहा कि यूनाइटेड किंगडम साम्राज्य के देशों तथा साम्राज्य के बाहर के देशों के लिए इराक, मिश्र और भारत की रक्षा करने वाले फौजियों के लिए कुल मिलाकर युद्ध के प्रथम 14 महीने के अंदर 108000 ठेके दिए जा चुके थे. अलवर रियासत की तरफ से लड़ाकू विमान भी दिए गए. हवाई जहाज उड़ाने की ट्रेनिंग के लिए पहला ट्रेनिंग स्कूल अंबाला छावनी में खोला गया. उसके बाद लाहौर में ट्रेनिंग दी गई. लाहौर के प्राथमिक ट्रेनिंग स्कूल में 74 भारतीय अफसर भर्ती किए गए जिसमें 15 मुसलमान थे.

अलवर रियासत से दी गई थी 2 लाख 36096 की राशि

केंद्रीय असेंबली में कांग्रेस सदस्यों ने बहस के दौरान कहा कि जर्मनी की हुकूमत कोई नहीं चाहता है. उसके बाद 16000 इटालियन कैदी भारत लाए गए थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश फौजों ने इरिट्रिया की राजधानी असमस मारा पर कब्जा कर लिया था. उस दौरान ब्रिटिश फौजियों के भय से 5000 इटालियन सैनिकों ने घुटने टेक दिए थे. अलवर रियासत ने भी लगातार अपना सहयोग दिया. 9 जुलाई 1940 में युद्ध प्रारंभ हुआ और उस दौरान अलवर रियासत के राजा के आदेश पर 3 माह 10 दिन में 2 लाख 36096 राशि एकत्रित किए गए. 31 मार्च 1941 तक ₹350157 पहुंचाए गए.

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अलवर महाराज की अध्यक्षता में मीटिंग

19 अक्टूबर 1940 को अलवर महाराज की अध्यक्षता में वार परपजेस प्रदेश कमेटी की जनरल मीटिंग हुई जिसमें ₹140000 ग्रेट ब्रिटेन को लड़ाकू जहाज तैयार करने के लिए दिए गए. इंडियन आर्मी की एक मोटर ट्रांसपोर्ट यूनिट के लिए जवान उपलब्ध कराए गए. इसके तहत 106 लोग शुरुआत में भेजे गए. 11 नवंबर 1940 को सवाई महाराजा अलवर रेंज को पत्र भेजा और लिखा कि आप की 6 नवंबर की छुट्टी के लिए धन्यवाद. सेंट्रल अलवर वार कमेटी ने जो फंड एकत्रित किया है उसको काम में लिया जाएगा. फंड इकट्ठा करने के लिए अलवर के राजगढ़, तिजारा, अलवर टाउन हॉल में लाइब्रेरी स्थापित की गई. युद्ध समाचार व अलवर राजकीय गजट छापने के साथ कई टूर्नामेंट कराए गए.

अलवर रियासत में महिलाओं का भी अहम रोल रहा है

प्रोफेसर फूल सिंह सहारिया ने बताया कि दोनों देशों के बीच सालों से सीमा कब्जे को लेकर विवाद होते रहे हैं. दोनों देश तेल उत्पादित राज्य हैं. पूरे विश्व में यहां से तेल सप्लाई होता है. ऐसे में विश्व के अन्य देश भी इन दोनों के बीच शांति चाहते हैं. क्योंकि लगातार हो रही बमबारी दो मिसाइलों के हमलों के दौरान आम लोगों की जान जा रही है. उन्होंने कहा कि अलवर रियासत शुरू से ही खासी अहम रही है. विश्व में होने वाले युद्ध में राजस्थान की अलवर रियासत के सैनिकों ने सबसे अधिक हिस्सा लिया है. अलवर रियासत की तरफ से गोला बारूद फंड सहित अन्य सामान उपलब्ध कराए गए. अलवर रियासत में महिलाओं का भी अहम रोल रहा है. महिलाओं ने समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से सहयोग किया और फंड जमा करने में भी उनकी अहम भूमिका रही.

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