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हिमाचल में पिछले साल 53 बार हिली धरती, तुर्की जैसा भूकंप आया तो शिमला का क्या होगा ?

तुर्की जैसा भयानक भूकंप अगर हिमाचल में आया तो क्या होगा ? सोचकर ही डर लगता है, खतरे की घंटी तब और बज जाती है जब पता चले कि हिमाचल में पिछले साल हर महीने औसतन 4 से 5 भूकंप आए. हिमाचल में कितना बड़ा है भूकंप का खतरा ? अगर तुर्की जैसा भूकंप आया तो शिमला और धर्मशाला जैसे शहरों का क्या होगा ? (turkey like earthquake in himachal) (earthquake in himachal)

शिमला में भूकंप आया तो क्या होगा ?
शिमला में भूकंप आया तो क्या होगा ?

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Published : Feb 11, 2023, 7:41 PM IST

शिमला: समूची दुनिया इस समय तुर्की और सीरिया में भूकंप से हुए विनाश को देखकर सिहर रही है. हिमाचल में भी भूकंप आते रहते हैं. इतिहास के आइने में देखें तो हिमाचल में तुर्की जैसा भूकंप आ चुका है. साल 1905 में हिमाचल के कांगड़ा में विनाशकारी भूकंप आया था जिसमें 20 हजार लोगों की मौत हुई थी. सोचिये अगर वैसा ही भूकंप हिमाचल में आया तो क्या होगा ? ये सोचने भर से ही इसलिये डर लगता है क्योंकि भूकंप के लिहाज से हिमाचल सबसे संवेदनशील क्षेत्र में आता है. जहां हर साल दर्जनों भूकंप आते हैं.

2022 में 53 बार हिली धरती- भूकंप की दृष्टि से हिमाचल संवेदनशील पांचवें जोन में आता है. यहां पिछले साल यानी 2022 में छोटे और मध्यम किस्म के 53 भूकंप आए. यही नहीं, नए साल यानी वर्ष 2023 की शुरुआत भी हिमाचल में धरती के कांपने से हुई. नेशनल सेंटर ऑफ सीस्मोलॉजी (NCS) के मुताबिक इस साल भी अब तक 8 बार हिमाचल में भूकंप आ चुका है.

तुर्की में आए भूकंप की तस्वीरें हिमाचल के लिए भी खतरे की घंटी

किस भूकंप ज़ोन में है हिमाचल- दरअसल भूकंप के खतरे को देखते हुए देश को 5 भूकंप जोन में बांटा गया है. सबसे कम रिस्क वाले क्षेत्रों को जोन-1 और सबसे अधिक रिस्क के क्षेत्रों को जोन-5 में रखा गया है. डराने वाली बात ये है कि हिमाचल भूकंप जोन-4 और जोन-5 में आता है. यानी भूकंप के लिहाज से हिमाचल हाई रिस्क जोन में है. खासकर जोन-5 में आने वाले क्षेत्रों के लिए तुर्की जैसे भूकंप खतरे की घंटी बजा रहे हैं.

जोन-5 में कौन से क्षेत्र- वैसे तो पूरा हिमाचल प्रदेश भूकंप के लिहाज से बहुत संवेदनशील है. लेकिन जोन-5 में आने वाले चंबा, लाहौल स्पीति, किन्नौर और कांगड़ा जिले इस जोन में आते हैं. इसके अलावा शिमला जिले का कुछ क्षेत्र भी अति संवेदनशील है. जबकि कुल्लू, मंडी, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, ऊना इत्यादि जिले जोन-4 में आते हैं.

भूकंप के लिहाज से जोन-4 और जोन-5 में आता है हिमाचल

कांगड़ा में आया था तुर्की जैसा भूकंप- देश-दुनिया में जब भी भूकंप आता है तो साल 1905 में कांगड़ा के भूकंप की बातें होने लगती है. दरअसल हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में 4 अप्रैल 1905 को 7.8 तीव्रता का भूकंप आया था. जिसमें 20 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. उस भूकंप के बाद का मंजर आज भी इंटरनेट पर मौजूद तस्वीरों में साफ देखा जा सकता है. बड़े-बड़े किले और मंदिर धूल में तब्दील हो गए.

हिमाचल में तुर्की जैसा भूकंप आया तो क्या होगा- 118 साल पहले कांगड़ा में आए भूकंप की तस्वीरें रूह कंपा देती हैं. सोचिये अगर वैसा भूकंप अब आया तो क्या होगा ? 1905 के मुकाबले मौजूदा आबादी, रिहायशी इलाके और पहाड़ों पर ताबड़तोड़ निर्माण कई गुना अधिक हैं. आपदा प्रबंधन से जुड़ी एजेंसियां मानती हैं कि हिमाचल में अगर हिमाचल में तुर्की जैसी भूकंप आया तो यहां भारी विनाश होगा. शिमला शहर में बेतरतीब निर्माण हुआ है. जो भूकंप के नजरिये से खतरे की घंटी बजाता रहता है.

भूकंप आया तो शिमला का क्या होगा ?

साल 2017 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि शिमला में कई मकान ढलान पर बने हैं. भूकंप आने पर यहां भारी नुकसान होगा. तत्कालीन प्रधान लेखाकार आरएम जोहरी ने कहा था कि कैरिबियाई देश हैती में इसी तरह का निर्माण था और वहां साल 2010 में आए भूकंप में लाखों की जान गई थी. वहीं, न्यूजीलैंड में ढलान पर कंस्ट्रक्शन नहीं थी, इसलिए हैती जितनी तीव्रता का भूकंप आने पर न्यूजीलैंड में अधिक तबाही नहीं हुई थी.

कुछ ऐसा दिखता है शिमला शहर

क्या कहते हैं एक्सपर्ट- हिमाचल सरकार में साइंस और तकनीकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक एसएस रंधावा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में भूकंप का खतरा तो निरंतर बरकरार है, क्योंकि ये संवेदनशील जोन में है. लेकिन वो प्रदेश में नियोजित निर्माण की वकालत करते हैं. उनके मुताबिक नियोजित निर्माण में भूकंप का ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए.

वहीं, नेपाल में आए भूकंप के दौरान यूएनओ के तहत राहत और बचाव कार्य में सक्रिय रही मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि भूकंप रोधी निर्माण के लिए सभी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. हिमाचल में जो अनियोजित निर्माण कार्य है, उसका ऑडिट कर समाधान निकालना जरूरी है. मीनाक्षी का कहना है कि हिमाचल में स्कूलों, कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में नियमित समय के अंतराल में भूकंप से बचाव के लिए मॉक ड्रिल होनी चाहिए. साथ ही आपदा प्रबंधन ढांचे को मजबूत किया जाना चाहिए.

धर्मशाला में निर्माण को लेकर भी उठ चुके हैं सवाल

मीनाक्षी रघुवंशी का कहना है कि जिला प्रशासन को सबसे पहले संवेदनशील होना होगा, क्योंकि आपदा के समय संबंधित जिला की ही अधिक भूमिका रहती है. मीनाक्षी का कहना है कि अब बेशक आधुनिक उपकरण आ गए हैं और आपदा प्रबंधन का ढांचा मजबूत हुआ है, लेकिन पहाड़ी राज्य में बचाव कार्य तेजी से करना फिर भी कठिन होता है, क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती. वो मानती हैं कि जागरुकता सिर्फ शहरों नहीं पंचायत और गांव स्तर तक होनी चाहिए. खासकर चंबा, किन्नौर, कांगड़ा और लाहौल में, भूकंप के लिहाज से जो सबसे संवेदनशील इलाके हैं.

कोर्ट भी उठा चुका है सवाल- कैग ने अनियोजित निर्माण और ग्रामीण स्तर पर आपदा प्रबंधन की पुख्ता व्यवस्था न होने को लेकर चिंता जताई थी. यही नहीं, धर्मशाला में बेतरतीब और अंधाधुंध निर्माण को लेकर हिमाचल हाईकोर्ट ने भी चेताया है. हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 26 नवंबर 2022 को एक याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि अदालत भूकंप के नजरिए से संवेदनशील धर्मशाला में ऐसे निर्माण कार्यों की इजाजत नहीं दे सकती.

हिमाचल में 1905 में आया था 7.8 तीव्रता का भूकंप

यही नहीं, वर्ष 2018 में भी तत्कालीन कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल ने प्रदेश सरकार को धर्मशाला में अवैध निर्माण को लेकर कड़ी फटकार लगाई थी. तब हाईकोर्ट ने कहा था कि क्या सरकार नींद में सोई हुई है, जो भूकंप के लिहाज से संवेदनशील धर्मशाला में ऐसे निर्माण हो रहे हैं ? खैर, तुर्की और सीरिया में आए भूकंप के बाद हिमाचल के सिर पर मंडराने वाले खतरे पर बात करना जरूरी है.

हिमाचल में भूकंप- बीती एक सदी में हिमाचल में 41 भूकंप ऐसे थे, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5 से अधिक रही है लेकिन नेपाल, कच्छ या तुर्की जैसा नुकसान नहीं हुआ. इस साल भी अब तक 8 बार तो पिछले साल 53 बार हिमाचल की धरती डोल चुकी है. हिमाचल प्रदेश में हर साल औसतन 15 से 50 के करीब भूकंप आते हैं. गनीमत ये है कि इनकी तीव्रता कम ही रही है. यही कारण है कि कोई बड़ा जानी नुकसान पिछले कई दशकों में नहीं हुआ है. देखा गया है कि हिमाचल में धरती सर्दियों के मौसम में अधिक डोलती है.

जनवरी से मार्च के बीच भूकंप आते हैं. जिसमें सबसे ज्यादा चंबा और कांगड़ा की धरती हिलती है. हालांकि रिक्टर स्केल पर इनकी तीव्रता 2 से 4 के बीच ही रहती है. पिछले साल मार्च महीने में किन्नौर और चंबा में 3 दिन में तीन बार भूकंप के झटके महसूस किए गए. पिछले साल ही नवंबर में 24 घंटे में 3 बार हिमाचल की धरती हिली. कई बार केंद्र हिमाचल की धरती के नीचे होता है तो कई बार अफगानिस्तान, नेपाल जैसे पड़ोसी देशों के साथ-सात जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे पड़ोसी राज्यों में भूकंप का केंद्र होता है. स्पष्ट है कि हिमालयन रेंज में होने के कारण अन्य स्थानों पर आने वाले भूकंप का असर हिमाचल में भी होता है.

1905 में कांगड़ा के भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी

साल 1920 से लेकर 2020 तक की सदी का आकलन करें तो इस दौरान 1286 छोटे-बड़े भूकंप आए हैं. स्टेट साइंस एंड टेक्नोलॉजी विभाग के मुताबिक दशक दर दशक देखें तो वर्ष 2006 से 2016 तक हिमाचल में 75 बार भूकंप आए. इनमें से 40 बार रिक्टर स्केल पर तीव्रता चार से कम रही. यही कारण है कि कोई नुकसान नहीं हुआ. हैरानी की बात है कि उस दौरान भूकंप का केंद्र 60 बार हिमाचल ही था. वहीं, कुल 75 में से बाकी 15 दफा इसका केंद्र नेपाल, जम्मू-कश्मीर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान रहा. भूकंप की प्रकृति और प्रवृति का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि लाहौल स्पीति जिला और जम्मू-कश्मीर से लगती सीमा 23 प्रतिशत बार भूकंप का केंद्र रही है. फिर कांगड़ा आठ प्रतिशत, किन्नौर पांच प्रतिशत, मंडी व शिमला छह-छह फीसदी व सोलन दो फीसदी भूकंप का केंद्र रहा.

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