शिमला:17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रों की शुरुआत हो रही है. इन नवरात्रों में शिमला के प्रसिद्ध कालीबाड़ी मंदिर में मां काली की पूजा अर्चना के साथ-साथ मां दुर्गा की भी विशेष पूजा की जाती है. यह पूजा स्थानीय लोगों, कोलकाता और शिमला में रह रहे बंगाली समुदाय के लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है, लेकिन इस बार कोविड-19 के चलते कालीबाड़ी मंदिर शिमला में मां दुर्गा नहीं विराजेगी.
100 सालों से भी अधिक है मंदिर का इतिहास
शिमला के कालीबाड़ी मंदिर में होने वाली यह दुर्गा पूजा देशभर में प्रसिद्ध है. इस बार कोरोना के खतरे को देखते हुए मां काली की पूजा अर्चना नहीं की जाएगी. इसके चलते कोलकाता से पर्यटक भी इस बार दुर्गा पूजा में नहीं आ रहे हैं. 100 सालों के इतिहास में दूसरी बार मां दुर्गा की मूर्ति के साथ-साथ मां लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिक की मूर्तियां मंदिर के हाल में स्थापित नहीं कि जाएंगी. मंदिर हॉल में दुर्गा पूजा के लिए भव्य पंडाल भी नहीं सजाया जाएगा. लोग मां दुर्गा के दर्शन भी नहीं कर पाएंगे. मंदिर के पुजारी अंदर ही दुर्गा पूजा से जुड़े विधान पूरे करेंगे. घट स्थापना कर मां दुर्गा की पूजा की जाएगी.
कोलकाता से मूर्तियां बनाने आते हैं कलाकार
कालीबाड़ी मंदिर में हर साल शारदीय नवरात्रों पर मां दुर्गा की विशाल मूर्ति स्थापित की जाती है. इन मूर्तियों को बनाने के लिए विशेष रूप से कोलकाता से कलाकार आते हैं. नवरात्रों से पहले ही मूर्तियों को तैयार करके, उनमें रंग भरकर मां का श्रृंगार किया जाता है. मंदिर के हॉल में विशाल पंडाल भी सजाया जाता है. छठे नवरात्रि के दिन मां दुर्गा के साथ मां लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक और गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाती है, जिसके बाद दुर्गा पूजा की शुरुआत होती है. पंडाल में मां दुर्गा की भव्य पूजा की जाती है.
अष्टमी के दिन की जाती है संधि पूजा
पूजा में बंगाली समुदाय के लोगों के साथ-साथ कोलकाता से भी काफी संख्या में श्रद्धालु भाग लेने के लिए पहुंचते हैं. अष्टमी के दिन विशेष रूप से मां दुर्गा के पंडाल में संधि पूजा की जाती है, जिसमें 108 कमल के फूल चढ़ाए जाते हैं. वहीं, नवमी के दिन मां दुर्गा की मूर्तियों को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है और इस दिन सुहागिन महिलाएं मंदिर में सिंदूर खेलकर माता रानी से अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना करती हैं.
मंदिर के अंदर पूरा किया जाएगा विधान