शिमला:दीपों का पर्व दीपावली पर घरों को दीयों की रोशन करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. पहले जहां इसके लिए मिट्टी के बने दीये इस्तेमाल किए जाते थे. वहीं, अब बदलते समय में अब मिट्टी के दीयों का स्थान आर्कषक दिखने वाले चाइनीज दीयों ने ले लिया है, लेकिन इस बार एक अलग ही तरह के दीये दिवाली के इस खास पर्व के लिए तैयार किए जा रहे हैं जो ना तो मिट्टी के बने हैं ना ही चाइना मेड हैं बल्कि यह दीये गाय के गोबर से तैयार हो रहे हैं. जिनका इस्तेमाल इस दीवाली पर आप अपने घरों को रोशन करने के लिए कर सकते हैं.
- लोकल फॉर वोकल
स्वदेशी को अपनाया जा सके और इसकी महत्ता को लोग समझ सके इसी को देखते हुए इस बार यह अलग और अनोखी पहल की जा रही है. राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की ओर से शुरू की गई इस पहल में शिमला के टूटू स्थित श्री कामनापूर्णि गौशाला समिति भी शामिल हुई है और यहां समिति के सदस्यों की ओर से 10 हजार गोबर के दीये तैयार किए जा रहे हैं.
गौशाला के यह सदस्य अपने हाथों से इन दीयों को आकर्षक डिजाइन में तैयार कर रहे हैं, ताकि लोगों के घर इस बार इन दीयों की रोशनी हो सके. इस काम में महिलायें भी उन्हें सहयोग कर रही हैं जिससे कि जो लक्ष्य 10 हजार दीयों को तैयार करने का रखा गया है वह पूरा हो सके.
- ये है दीयों की खास बात
इन दीयों की खास बात यह है कि यह दिवाली पर घरों को ना केवल रोशन करने का ही काम करेंगे बल्कि इन दीयों के जलने से सही मायनों में घर पर लक्ष्मी जी का वास होगा और सकारात्मक ऊर्जा भी घर में प्रवाहित होगी. इसके पीछे की वजह है गाय के गोबर में विद्यमान वह गुण जिससे कि घरों पर इन दीयों के जलाने मात्र से ही इसका प्रभाव देखा जा सकता है.
- बेहद ही कम लागत
बेहद ही कम लागत पर इन दीयों को लोगों को श्री कामनापूर्णि गौशाला समिति की ओर से मुहैया करवाया जाएगा. 10 रुपए की कीमत का एक दीया तैयार किया जा रहा है जिसे जला कर दीपावली का पर्व मनाया जा सकता है. इन दीयों को तैयार करने में जुटे श्री कामनापूर्णि गौशाला समिति के सदस्य रंजन ने कहा कि इन दीयों को बनाने के लिए गाय के गोबर के साथ बुरादा, चावल का आटा और मुल्तानी मिट्टी यानी चिकनी मिट्टी का इस्तेमाल किया जा रहा है.