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देवभूमि में अभी भी मौजूद है जातिवाद का दंश, मंदिर जाने से झिझके थे जयराम सरकार के मंत्री

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Published : Jan 8, 2020, 2:56 PM IST

हिमाचल विधानसभा के विशेष सत्र में संसद और विधानसभाओं में एससी-एसटी आरक्षण की अवधि बढ़ाने के अनुसमर्थन के लिए विधेयक लाया था. इसी पर विधानसभा में चर्चा के दौरान सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने अपना अनुभव साझा किया. राजीव सैजल अपनी ही पार्टी के विधायक विनोद कुमार के साथ नाचन विधानसभा के दौरे पर थे. वहां इलाके के एक मंदिर में प्रवेश करने के लिए कैबिनेट मंत्री राजीव सैजल झिझक गए.

rajeev saizal statement on castism
मंदिर जाने से झिझके थे जयराम सरकार के मंत्री

शिमला:देवभूमि के बड़े मंदिरों और शक्तिपीठों में बेशक हर जाति-धर्म के व्यक्ति को बेरोकटोक प्रवेश का हक है, लेकिन ग्रामीण अंचल के कई मंदिरों में जाने के लिए समाज के प्रभावशाली लोग भी झिझकते हैं. ऐसे ही एक वाकये का जिक्र हिमाचल सरकार के सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री राजीव सैजल ने किया.

मंगलवार को हिमाचल विधानसभा के विशेष सत्र में संसद और विधानसभाओं में एससी-एसटी आरक्षण की अवधि बढ़ाने के अनुसमर्थन के लिए विधेयक लाया था. इसी पर विधानसभा में चर्चा के दौरान सामाजिक न्याय व आधिकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने अपना अनुभव साझा किया. राजीव सैजल अपनी ही पार्टी के विधायक विनोद कुमार के साथ नाचन विधानसभा के दौरे पर थे. वहां इलाके के एक मंदिर में प्रवेश करने के लिए कैबिनेट मंत्री राजीव सैजल झिझक गए. ऐसा नहीं था कि उन्हें किसी ने रोका था, लेकिन राजीव सैजल ने कहा कि मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि स्थानीय जनता बुरा मान सकती है.

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राजीव सैजल ने कहा कि ऐसा महसूस होने पर उन्होंने खुद ही मंदिर में प्रवेश नहीं किया. मंत्री ये कहना चाह रहे थे कि बेशक किसी ने रोका न हो, परंतु मन में झिझक तो थी ही. यही भावना है, जिसे दूर करने की जरूरत है. जातिवाद के कारण ऊंच-नीच की भावना घर कर जाती है. बता दें कि राजीव सैजल आयुर्वेद चिकित्सक भी हैं. वे अध्ययनशील नेता हैं और अपने विनम्र स्वभाव के लिए जाने जाते हैं. कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद वे कई बार बसों में भी सफर करते देखे जा सकते हैं. कुछ समय पहले उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे हारमोनियम लेकर कबीर का भजन गा रहे थे.

हालांकि हिमाचल प्रदेश में बड़े और विख्यात मंदिरों में ऐसा नहीं है कि किसी को प्रवेश से रोका जाए, लेकिन ग्रामीण अंचलों में देवताओं के मंदिरों में अभी भी भेदभाव की खबरें सुनने को मिलती हैं. इक्कीसवीं सदी में सामाजिक ढांचे में कई बदलाव आए हैं. अब जातिवाद के कारण किसी से अपमानजनक व्यवहार की घटनाएं काफी कम हुई हैं.

दूरदराज के इलाकों में यदा-कदा मिडडे मील परोसने को लेकर दलित छात्रों के साथ भेदभाव के समाचार आते हैं. पिछले साल कुल्लू में देव उत्सव के दौरान भी देवता का फूल एक दलित युवक की गोद में गिरने का मामला सुर्खियों में रहा था. फिलहाल, विधानसभा के विशेष सत्र में यदि एक कैबिनेट स्तर के मंत्री जातिवाद को लेकर असहज महसूस करते हैं तो हिमाचल के लिए ये मुद्दा विचार का विषय है.

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