शिमलाः हिमाचल में विधानसभा चुनाव भले ही 2 साल दूर हों, लेकिन कांग्रेस-बीजेपी ने अभी से ही कमर कस ली है. दोनों पार्टियों ने अब चुनाव के लिए धरातल पर काम करना भी शुरू कर दिया है. बीजेपी विकास के दम हर मंच से 2022 का दंगल जीतने की दावा कर रही है, वहीं कांग्रेस ने सदन से लेकर सड़क तक बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
बुधवार 10 मार्च को शिमला में कांग्रेस ने आक्रोश रैली में सरकार को घेरने में पूरी ताकत लगा दी. वीरभद्र से लेकर कुलदीप राठौर तक तमाम बड़े नेता मंच पर एक साथ दिखे. कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला ने रैली के बाद पत्रकारों से कहा कि बीजेपी सरकार ने एक भी वादा पूरा नहीं किया. जनता बीजेपी सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार बैठी है.
महंगाई-बेरोजगारी के मुद्दे को भुना रही कांग्रेस
इन दिनों बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल के साथ रसोई गैस के बढ़ते दामों को भुनाने के लिए कांग्रेस तैयार बैठी है. कांग्रेस भी जानती है कि इन मुद्दों के सहारे ही अगले बरस सत्ता की राह बनाई जा सकती है. सड़क के साथ-साथ विधानसभा में भी सरकार कांग्रेस को घेर रही है.
कांग्रेस चुनाव के लिए तैयारी तो लग रही है, लेकिन हाल ही में हुए नगर निकाय और पंचायती राज के चुनाव कांग्रेस के लिए अच्छे नतीजे लेकर नहीं आए हैं. इन नतीजों से पता चलता है कि कांग्रेस अभी धरातल पर उतनी मजबूत नहीं है.
कौन करेगा कांग्रेस का नेतृत्व?
इसके साथ ही कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती नेतृत्व की है. अगले चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व कौन करेगा. कांग्रेस के पास अभी भी पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह के रूप में एक ही बढ़ा चेहरा है. वीरभद्र सिंह का पूरे हिमाचल में जनाधार है. वीरभद्र सिंह के अलावा कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसका पूरे हिमाचल में जनाधारा हो और उसके चेहरे पर चुनाव लड़ा जा सके.
इस उम्र में अपने कंधों पर कांग्रेस का बोझ ढो पाएंगे वीरभद्र?
10 मार्च को रैली में मंच से ही कुलदीप राठौर ने कहा था कि मैं अगर कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष हूं तो वीरभद्र हमारे सुप्रीम कमांडर हैं. अगला चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ेंगे और हिमाचल में सरकार बनाएंगे, लेकिन सवाल ये है कि क्या 86 साल की उम्र में वीरभद्र उतनी ताकत के साथ पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर प्रचार कर पाएंगे.
वीरभद्र सिंह एक ऐसे नेता हैं जिनका आज भी पूरे प्रदेश में जनाधार है, लेकिन इस उम्र में उनके अंदर क्या वो उर्जा बची है जिसकी चुनावी दंगल में आवश्यकता होती है. बजट सत्र में भी सदन के अंदर वीरभद्र सिंह उतने उर्जा से लबरेज नजर नहीं आए जिसके लिए उन्हें जाना जाता है.
गुटबाजी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती