ईटीवी भारत डेस्क: आज हम बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मना रहे हैं. हर साल मनाते हैं और हर साल 'अंदर के रावण' को मार कर आस-पास के रावणों से मुंह मोड़ लेते हैं. मान लिया आपने अपने अंदर के रावण को खत्म कर दिया, लेकिन हमारा समाज जो रोज राक्षसी होता जा रहा है उसे राम कौन बनाएगा?
देवभूमि में नशे का दानव हर रोज और खतरनाक होता जा रहा है. कई बचपन, कई जवानियां, कई घर उजाड़ चुका है और हम न जाने कैसे आश्वस्त हैं कि ये एक दिन हमें या हमारे किसी अपने को नुकसान नहीं पहुंचाएगा? हमें ऐसे समाज में घुटन क्यों नहीं होती जहां बच्चों के टिफिन बॉक्स में नशे का सामान मिलता हो, जहां जवानी नशे की लत पूरी करने के लिए अपने घर में डाका डालती है, जहां घर का जिम्मेदार एक इंजेक्शन की आगोश में मौत की नींद सो जाता है? ऐसे समाज में हम पुतले को फूंक कर नाच रहे हैं और उम्मीद करते हैं कि इस आग में सारी बुराइयां जल गईं होंगीं. आंखें खोलिए वो आपके साथ ही झूम रही हैं और आमादा हैं इस समाज के राम को खत्म करने पर.
स्कूली वर्दी में भांग के नशे में झूम रहे लड़के को तो देखा होगा? हाथ में चिट्टे से भरी सिंरिंज जेब में नशे की गोलियां लेकर सड़क पर पड़ी 20 साल के लड़के की लाश देखी है? एक मजबूर मां को अपने नशे के आगे हार चुके बेटे की जिंदगी बचाने के लिए चिट्टा खरीद रही है ये सुना है? ये हमारे उसी समाज का सच है जो आज अच्छाई की जीत मना रहा है. मौजूदा हालातों को देखते हुए हमारा भविष्य कितना अंधेरा है ये सोच के डर लगना चाहिए.