शिमला: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश बेशक 15 अप्रैल 1948 को अस्तित्व में आया, लेकिन यहां राजनीतिक चेतना का विस्तार रियासती समय से ही था. रियासतों के दौर में कुछ आंदोलन अहम स्थान रखते हैं. उन्हीं में से एक है धामी गोलीकांड,अस्सी साल पहले आज ही के दिन यानी 16 जुलाई को धामी में एक गोलीकांड हुआ था.
ये गोलीकांड राजसत्ता के खिलाफ था. कहा जा सकता है कि आजादी की लड़ाई में हिमाचल के दो जनांदोलनों का प्रमुखता से जिक्र किया जा सकता है.पहला सिरमौर का पझौता आन्दोलन और दूसरा शिमला का धामी गोली कांड. समय के उस दौर में धामी रियासत के राणा की दमनकारी नीतियों के खिलाफ प्रेम प्रचारिणी सभा, जो बाद में प्रजामंडल में रूपायित हो चुकी थी के मुखिया पंडित सीताराम ने राणा के समक्ष तीन मांगें रखीं.
ये मांगे थीं, बेगार प्रथा की समाप्ति, करों में 50% की कमी करना और रियासती प्रजामंडल धामी की पुनर्स्थापना. धामी के राणा दलीप सिंह से इन्हीं मांगों को मनवाने के लिए 1939 में 16 जुलाई के दिन करीब 1500 आन्दोलनकारियों के एक समूह ने भाग मल सोहटा के नेतृत्व में शिमला से धामी की ओर पैदल कूच किया.
आंदोलनकारियों की इस भीड़ के धामी पहुंचने पर बौखलाए राजा ने निहत्थे आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया. रियासती पुलिस की गोलीबारी में दो आंदोलनकारियों उमा दत्त और दुर्गा दास शहीद हो गए और अनेक घायल हुए.